अधिक मास से जुड़ी हिन्दू मान्यताएं (Adhik Maas Se Judi Hindu Manyataye)
हिन्दू धर्म पंचांग के अनुसार प्रत्येक 3 वर्ष में एक अतिरिक्त माह को जोड़ देते है जिसे “अधिक मास ” या “मल मास” कहते है। अधिक मास को “पुरुषोत्तम मास” भी कहा जाता है, ‘’पुरुषोत्तम’’ भगवान विष्णु का ही एक अन्य नाम है। इस माह का अपना अलग नियम और महत्व है। पूरे भारत के हिन्दू धर्म के लोग अधिक मास में पूजा पाठ तथा धार्मिक कार्य को ही करते है।
हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार, अधिक मास में किये गए पूजा पाठ तथा धर्म-कर्म के कार्य का फल बाकी अन्य महीने में किये गए धार्मिक कार्यों से 10 गुना ज्यादा मिलता है और यही कारण है की पूरे अधिक मास भर हिन्दू धर्म के लोग सिर्फ पूजा पाठ में ही ध्यान लगाए रहते है ताकि ईश्वर को प्रसन्न कर पाए और अपने बुरे कर्मों से छुटकारा पा सके तथा मनोनुकूल वरदान की प्राप्ति कर सके।
परन्तु, अधिक मास में कुछ नियमों के पालन भी करने होते है जैसे की – अधिक मास में क्या करें तथा अधिक मास में वर्जित कार्य का सही रूप से ध्यान रख सके ।
अधिक मास में क्या करें :
अधिक मास में हमे कुछ सामान्य नियमों का सच्चे मन से पालन करना चाइये, जो इस प्रकार है :
- अधिक मास में भगवान सूर्य नारायण की पूजा पूरे विधि विधान से संपन्न करे , इससे भगवान सूर्य नारायण की कृपा प्राप्त होती है।
- अधिक मास में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना विशेष रूप से फलदायी होती है, कहते है, जहाँ नारायण की पूजा होती है माता लक्ष्मी का आगमन वहाँ अपने आप ही हो ज़ाता है।
- अधिक मास में सेवा करने का फल 10 गुना ज्यादा बढ़ जाता है। अधिक मास के महीने में में गुरु, साधु, ब्राह्मण, गरीब की सेवा अवश्य करनी चाहिए।
- अधिक मास में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए, ऐसा करने से धन-वैभव तथा सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती है।
- अधिक मास में माता तुलसी की पूजा अवश्य करनी चाहिए तथा संध्या समय माता तुलसी के सामने घी का दीपक अवश्य जलाएं।
अधिक मास में वर्जित कार्य :
अधिक मास में कुछ सामान्य कार्यों को करने से मनाही है, जो इस प्रकार है :
1. अधिक मास में गृह प्रवेश, मुंडन, भूमि पूजा,तिलकोत्सव, विवाह, तथा कोई भी मांगलिक कार्य की शुरुवात भी ना करे। इस माह में जैसा भी शुभ कार्य हो परनाम अशुभ ही प्राप्त होगा ।
2. अधिक मास में बिस्तर अथवा पलंग पर नहीं सोनी चाहिए। अधिक मास के महीने में भूमि पर ही सोये जिससे की भगवान सूर्य नारायण की कृपा प्राप्त होती है।
3. अधिक मास में किसी भी धातु के थाली में खाना ना खाकर पत्तल में खाना खाये। पत्तल में खाना खाने को शुभ माना जाता है।
4. अधिक मास में भूल से भी झूट नहीं बोलनी चाहिए तथा जितना संभव हो सके झगड़े झमेले से दूर रहना चाइये ।
5. अधिक मास में शराब तथा मांस के सेवन की मनाही है।
अधिक मास का नाम को पुरुषोत्तम मास कैसे पड़ा?
इस विषय के पीछे एक पौराणिक कथा है, एक बार की बात है जब सनातन महर्षियों ने गणना कर प्रत्येक चंद्र मास के लिए एक देव को निर्धारित किया। अधिक मास चंद्र और सूर्य के मध्य एक संतुलन को बनाए रखने के लिए ही प्रकट हुआ, परन्तु इस अधिक मास का अधिपति बनने के लिए कोई भी देव तैयार न हुए तब जाकर सनातन महर्षि भगवान विष्णु के पास गए और उनसे आग्रह करने लगे, इस अधिक मास का आधिपत्य लेने के लिए। भगवान विष्णु ने महर्षियों के इस आग्रह को स्वीकार तथा भगवान विष्णु के ही एक अन्य नाम “पुरुषोत्तम‘ पर इस मास का नाम रखा गया और इसी कारणवश अधिक मास को पुरुषोत्तम मास का नाम मिला।
अधिक मास का महत्व :
सनातन धर्म में अधिक मास का अपना एक अलग और विशेष महत्व है। हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार प्रत्येक जीवित प्राणी पांच तत्वों से मिलकर बना हुआ होता है। ये 5 तत्व है – अग्नि, पवन, जल, पृथ्वी तथा आकाश। ये पांचो तत्व प्रत्येक जीव में अलग-अलग अनुपात में होते है। अधिक मास में मनुष्य धार्मिक कार्यों, योग, ध्यान तथा चिंतन मनन के द्वारा अपने शरीर में 5 तत्वों का संतुलन को सही अनुपात में बनाये रखने का प्रयास करते है। अधिक मास में हर इंसान ही अपनी आध्यात्मिक तथा धर्म के प्रयासों के द्वारा अपने मानसिक, आध्यात्मिक तथा भौतिक उन्नति के तरफ अग्रसर होता है और इस प्रकार मनुष्य हर तीन सालों के बाद अधिक मास के महीने में अपने आप को अंदर तथा बाहर से स्वच्छ कर के अपने आप में नयी ऊर्जा को भर लेता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार अधिक मास में किये गए धार्मिक प्रयासों के द्वारा मनुष्य अपने जन्म कुंडली के दोषों से भी मुक्ति पा लेता है।
Frequently Asked Questions
1. अधिक मास कितने सालों के बाद लगता है?
अधिक मास 3 सालों के बाद लगता है।
2. क्या अधिक मास में विवाह करनी चाहिए?
जी नहीं, अधिक मास में विवाह नहीं करनी चाहिए।
3. क्या अधिक मास में गृह प्रवेश तथा भूमि पूजन करना चाहिये?
जी नहीं, अधिक मास में गृह प्रवेश तथा भूमि पूजन नहीं करनी चाहिए।
4. पुरुषोत्तम मास में ‘पुरुषोत्तम’ किस भगवान का नाम है?
पुरुषोत्तम मास में ‘पुरुषोत्तम‘ भगवान विष्णु का एक अन्य नाम है।