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दशरथकृत शनि स्तोत्र (अर्थ सहित )| Dasharathkrat Shani Stotra | FREE PDF Download

दशरथकृत शनि स्तोत्र (अर्थ सहित )| Dasharathkrat Shani Stotra | FREE PDF Download

दशरथकृत शनि स्तोत्र (अर्थ सहित )

नम:  कृष्णाय नीलाय शितिकण् निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥


इस स्त्रोत्र के द्वारा सूर्यवंशी राजा दशरथ ने भगवान शनि देव के रूप का वर्णन करते हुए कहा है कि ” हे श्यामवर्ण अर्थात सावले रंग वाले तथा हे “शितिकण्ठनिभाय” अर्थात नीलकंठ ( जिनके गर्दन का रंग भगवान भोलेनाथ के तरह नीला है), मैं आपको नमस्कार करता हूँ। तथा हे “कालाग्निरूपाय” अर्थात सृष्टि का विनाश कर सकने वाली अग्नि के रूप के समान तथा बहुत ही हल्के शरीर वाले भगवान शनि देव, आपको मैं प्रणाम नमस्कार हूँ। हे सुकर्म अथवा अच्छे कर्म के देव, आप हमारे मन में विराजते हो, हे भगवान शनि देव आप मेरा प्रणाम स्वीकार करे।“

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्रय शुष्कोदर भयाकृते॥2॥


इस स्त्रोत के द्वारा राजा दशरथ कहते है कि ” हे “निर्मांस देहाय” अर्थात कंकाल के स्वरूप जैसे और बिना मांश के शरीर वाले, भगवान शनि देव मैं आपको नमस्कार करता हूँ।  हे “दीर्घश्मश्रुजटाय च” अर्थात लम्बे-लम्बे दाढ़ी, मूंछ तथा जटा वाले भगवान शनि देव आपको मैं नमस्कार करता हूँ।  हे ” विशालनेत्राय” अर्थात बड़े-बड़े नेत्रों वाले तथा हे “शुष्कोदर”  अर्थात जिनका पेट उनके पीठ से सटा हुआ है, आपका ये रूप बहुत ही डरावना है, तथा आपका ये भयानक रूप पापियों को भय देता है और उनका अंत करता है, हे भगवान शनि देव आप मेरा प्रणाम स्वीकार करे।“ 


नम: पुष्कलगात्रय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते॥3॥


इस स्त्रोत के द्वारा राजा दशरथ कहते है कि ” हे “पुष्कलगात्राय ” अर्थात जिनका शरीर बहुत ही बड़ा तथा पुष्ट है। हे “स्थूलरोम्णेऽथ ” अर्थात देह पर मोटे तथा घने रोम या रोयें लिए हुए, हे भगवान शनि देव मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ। हे लम्बे – चौड़े पर जर्जर देह वाले तथा जिनकी दाढ़ें काल के सामान और काल से जुड़ी हुई है, मैं उस भगवान शनि देव को बार-बार प्रणाम करता हूँ।“ 

नमस्ते कोटराक्षाय दुख्रर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥


इस स्त्रोत के द्वारा राजा दशरथ कहते है कि ” हे “कोटराक्षाय” अर्थात कोटर के समान आँखों वाले ( जिनकी आँखे बहुत ही काली तथा गहरी है ), तथा हे ” दुर्निरीक्ष्याय”  अर्थात आपके रूप के तरफ देखना भी कठिन है । हे बज्र के समान देह वाले आप ही सुयश, सफलता और सौभाग्य देते है।  हे भगवान शनि देव आपको मैं बार – बार नमस्कार करता हूँ।  हे रौद्र रूप वाले, भीषण और विकारल रूप वाले, भगवान शनि देव आपको मैं बार – बार नमस्कार करता हूँ ।“  

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ॥5॥


इस स्त्रोत के द्वारा राजा दशरथ कहते है कि ” हे ” सर्वभक्षाय वलीमुखाय” अर्थात हे भगवान शनि देव आपके मुख में इतना बल है कि सारे संसार का भी भक्षण करने में आप सक्षम है। हे भगवान शनि देव आपको मैं बार – बार नमस्कार करता हूँ । हे भगवान सूर्यनारायण के पुत्र आपको मैं नमस्कार करता हूँ। हे अभय देने वाले भगवान शनि देव, हे भगवान भास्कर के पुत्र आपको मैं बार – बार प्रणाम करता हूँ ।“ 

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते ॥6॥


इस स्त्रोत के द्वारा राजा दशरथ कहते है कि ” हे “अधोदृष्टे:” अर्थात अधोमुखी दृष्टि रखने वाले भगवान शनिदेव मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ। हे “संवर्तक” अर्थात विनाश करने वाले, भगवान शनिदेव मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ। हे मंदगति से चलने वाले तथा तलवार जैसे प्रतीक को धारण करने वाले भगवान शनि देव, मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ।“ 

 

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥


इस स्त्रोत के द्वारा राजा दशरथ कहते है कि ” हे तपस्या में लीन भगवान शनि देव आपने योग करके अपने शरीर को गला दिया है । हे भगवान शनि देव मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ। हे भगवान शनि देव आप हमेशा अपने तपस्या में आतुर तथा तत्पर रहते है , आप तपस्या में इतने लीन है कि आप भूख से आतुर और अतृप्त रहते है। हे भगवान शनि देव मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ ।“

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥


इस स्त्रोत के द्वारा राजा दशरथ कहते है कि ” हे ऋषि कश्यप के नंदन भगवान सूर्यनारायण के पुत्र भगवान शनि देव , आपकी आँखे ज्ञान स्वरूप है तथा आप पावन प्रकाश वाले है।   हे भगवान शनि देव मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ ।  हे भगवान शनि देव आप  प्रसन्न होने पर आपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते है  तथा आप आपने भक्तों को वरदान में राज्य भी दे देते है।  परन्तु आप अगर रुष्ट अथवा गुस्सा हो जायें तो उनसे सबकुछ छीन भी लेते है। हे भगवान शनि देव मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ ।“


देवासुरमनुष्याश्च सि विद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:॥9॥


इस स्त्रोत के द्वारा राजा दशरथ कहते है कि ” हे भगवान शनि देव यदि देव, असुर, मानव, सिद्ध, विद्याधर तथा मनुष्य पर आपकी दृष्टि पड़ जाए  तो उनका नाश हो जाता है। हे भगवान शनि देव मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ ।  तथा जिनकी भी दुर्बुद्धि होती है, आपके द्वारा उनका पूरी तरह से विनाश हो जाता है, ऐसे  भगवान शनि देव मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ ।“  

प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥


इस स्त्रोत के द्वारा राजा दशरथ कहते है कि ” हे भगवान शनि देव, आप अपने इस भक्त से प्रसन्न होइए तथा मुझे अपने शरण में लीजिये।  मैं आपसे वर पाने के योग्य हूँ और इसीलिए मैं आपके शरण में आया हूँ।  हे भगवान शनि देव  आप मुझसे प्रसन्न होकर ये वरदान दीजिये कि हर बजरंग भक्त को आप अपने शरण में लेंगे तथा आप उन्हें अभय प्रदान करेंगे। हे  सारे ग्रहों के स्वामी आप अपना यश, अपनी कीर्ति बचालें ।


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