गोत्र क्या है और इसकी उत्पत्ति | जाती से गोत्र का रिश्ता
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हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार गोत्र के जरिये वंश का पता लगाया जाता है। गोत्र जानने की सबसे प्राचीन पद्धति यही है। इस पद्धति से अपने मूल अर्थात प्रथम पिता और परिवार के नीवं का पता चलता है। प्राचीन काल से ही हमारे देश में 4 वर्णो को माना जाता है।
- ब्राह्मण
- क्षत्रिय
- वैश्य
- क्षुद्र
प्रत्येक जाती किसी न किसी गोत्र से जुड़ी है। प्राचीन वंश तथा गोत्र का यही एक प्रमाण है जो इस बात की पुष्टि करता है, और हमे यह बताता है कि किसी भी जाती में हमारा जन्म क्यों न हो पर हमारा आदि काल एक मूल अर्थात प्रथम पिता से रिश्ता रखता है।
आइये जानते है, गोत्र और वर्ण में क्या अंतर है?
इस संसार में सबसे पहले गोत्र का उदय हुआ उसके बाद ही वर्णो की व्यवस्था हुई। जिन्होंने अपने कर्म-गुण-योग्यता के आधार पर जिस वर्ण को चुना, वो वही वर्ण के हो गए बाद में बहुत सारे कारणों के वजह से वर्ण परिवर्तन होता रहा। किसी प्रांत का कोई मुख्य व्यक्ति ब्राह्मण वर्ण का बन गया तो कहीं क्षत्रिय बन गया और कही वैश्य तथा क्षुद्र कहलाये और इनसब के बाद वर्ण विभाजन जाती प्रथा के आधार पर होकर रह गयी। और यही मुख्य कारण है की प्रत्येक गोत्र प्रत्येक वर्ण में मिलेंगे। कश्यप गोत्र आपको ब्राह्मण, क्षत्रिय, राजपूत तथा पिछड़ी और छोटी जातियों में भी मिलेंगे और इसी प्रकार कौशिक, वशिस्ठ तथा अन्य गोत्र भी अलग-अलग जातियों में आसानी से मिल जायेंगे। क्षुद्र अर्थात दलितों में आपको ब्राह्मण तथा क्षत्रिय जाती के गोत्र देखने को मिल जायेंगे। उदाहरण के तौर पर अगर देखे तो बनिया जाती के लोगो में आपको कश्यप गोत्र (Kashyap Gotra) भी मिलेंगे और अत्रि तथा वशिष्ठ भी देखने को मिल जायेंगे । चलिए एक और उदाहरण देखते है :
कोरी जाती का गोत्र क्या है?
किसी भी जाती में सिर्फ एक गोत्र नहीं होता, वैसे तो कोरी अर्थात बुनकर जाती, इनमे आपको कश्यप गोत्र भी मिलेंगे तथा अगस्त्य और वशिष्ठ गोत्र भी मिलेंगे। इसलिए, हम कह सकते है कि एक ही जाती में आपको हर एक तरह के गोत्र देखने को मिल जायेंगे।
गोत्र कैसे पता करे?
आपका गोत्र क्या है, ये आप अपने पिता या दादा से पूछ सकते है और यदि उन्हें भी नहीं मालुम तो अपने गांव और अपने रिश्तेदारों से भी पता कर सकते है। जिन्हें उनका गोत्र का पता नहीं होता उन्हें कश्यप गोत्र से मान लिया जाता है।
कहाँ उपयोगी है ये गोत्र?
गोत्र का उपयोग विवाह तथा धार्मिक पूजा-पाठ के समय होता है। हिन्दू मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है कि एक ही गोत्र में विवाह नहीं होता, एक गोत्र अर्थात सब एक ही पिता के संतान कहलाते है, परन्तु इसका अपवाद भी है – कश्यप गोत्र। कश्यप गोत्र के लोग कश्यप गोत्र में ही विवाह करते है।
इसके साथ-साथ धार्मिक कार्य पूजा-पाठ में भी पुरोहित पहले गोत्र जान कर ही भगवान की पूजा अर्चना करते है तथा ईश्वर को भोग लगाते है।
गोत्र का जन्म तथा इसके पीछे की कहानी
गोत्र सम्बंधित है, ब्राह्मणों के द्वारा बनाये 7 कुल अथवा वंश से। गोत्र का जन्म आदि युग के 7 ऋषियों के द्वारा हुआ है। सात ऋषियों के नाम इस प्रकार है:
- महर्षि अत्रि
- महर्षि भरद्वाज
- महर्षि भृगु
- महर्षि गौतम
- महर्षि कश्यप
- महर्षि वशिष्ठ
- महर्षि विश्वामित्र
सात गोत्रों के बाद इसमें एक और गोत्र को सम्मिलित किया गया – महर्षि अगस्तय का गोत्र, और इस तरह से गोत्रों की संख्या बढ़ती ही चली गई। अगर हम जैन धर्म की बात करे तो उसमें भी 7 गोत्रों ही मिलेंगे। जो, इस प्रकार है:
- कश्यप
- गौतम,
- वत्स्य
- कुत्स
- कौशिक
- मंडव्य
- वशिष्ठ.
पर, निम्न स्तर के ऋषियों तथा साधुओं को जोड़कर पुरे 115 गोत्र है।
क्या सभी गोत्रों का जन्म एक साथ हुआ?
गोत्रों का जन्म न तो एक साथ हुआ और ना ही एक जगह। इसका वर्णन आपको मिलेगा महाभारत के शांतिपर्व (296-17,18) में, जहाँ यह उल्लेख किया गया है कि मूल रूप से 4 गोत्र ही थे, जिनमें- अंग्रिश, कश्यप, भृगु तथा वशिष्ठ थे, इनके बाद इसमें और 4 शामिल जो गए अत्रि, जमदग्नि, विश्वामित्र और अगस्तय। जाती व्यवस्था के कठोर हो जाने के कारण गोत्रों की प्रमुखता और ज्यादा बढ़ गई। साथ ही साथ लोगो को यह विश्वास हो गया कि सारे आदि ऋषि ब्राह्मण थे।
गोत्र और विवाह सम्बन्ध
हिन्दूधर्म अनुसार एक ही गोत्र के लोगो के बिच विवाह की मनाही है, एक ही गोत्र के बिच विवाह करने से बहुत सारे दोष लगते है और उन्हें दूर करने के लिए ही दूसरे गोत्र के साथ वैवाहिक सम्बन्ध बनाये जाते है।
समय के साथ गैर-ब्राह्मण भी इस प्रथा को अपनाने लगे, इनके साथ-साथ क्षत्रिय तथा वैश्यों ने भी इस प्रथा को अपनाया। और इस कार्य के लिए बहुत सारे लोगो ने अपने समीप के ब्राह्मणों तथा गुरुओं के गोत्रों को ही अपना गोत्र मान लिया।
विवाह के लिए गोत्र को किस प्रकार मिलाये?
विवाह के लिए सिर्फ लड़के और लड़कियों के ही गोत्र नहीं देखे जाते बल्कि लड़की के गोत्र के साथ लड़के की माँ और दादी का गोत्र भी मिलाया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि 3 पीढ़ियों में किसी का भी गोत्र नहीं मिलना चाहिए तब ही विवाह संभव है।
पर अगर लड़के और लड़की का गोत्र मिल जाए या किसी भी तरह माँ या दादी से गोत्र मिल जाए तो विवाह नहीं करने की सलाह दी जाती है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि यदि कुल और गोत्र मिल जाए तो इसका अर्थ है कि लड़का और लड़की एक ही मूल पिता के संतानो की संतान है और इस कारण उनमें बहुत सारे अनुवांशिक दोष भी पाए जायेंगे, साथ ही साथ लड़का और लड़की दोनों के विचारधारा में कोई असमानता नहीं पायी जाएगी, ना ही उनके व्यवहार तथा पसंद में ही कोई भी असमानता पायी जाएगी।
एक ही कुल में अलग-अलग गोत्र का बनना
जी हाँ, एक ही कुल में पहले जो गोत्र आपको सुनने को मिलेंगे, आठ पीढ़ी बाद उसी कुल का गोत्र बदल जाता है। मनुस्मृति के अनुसार, 7 पीढ़ी के बाद रिश्ते में सगापन खत्म हो जाता है अर्थात 7 पीढ़ी बाद गोत्र बदल जाते है और आठवीं पीढ़ी के प्रथम पुरुष के नाम से नए गोत्र की शुरुवात होती है। लेकिन, आमतौर पर लोग गोत्र की गणना नहीं जानते इसलिए प्राचीन ऋषियों के नाम पर ही अपने गोत्र का निर्धारण कर लेते है और इसी कारण विवाह में समस्या भी उत्पन्न हो रही है।
गोद लिए हुए बच्चे का कौन सा गोत्र होता है?
हिन्दू धर्म और मान्यताओं के अनुसार पिता का गोत्र ही बच्चे को प्राप्त होता है और अगर हम गोद लिया हुआ बच्चा अर्थात दत्तक पुत्र की बात करे तो उस बच्चे को वही गोत्र प्राप्त होगा जो गोत्र उस पिता की है जिसने बच्चे को गोद लिया है।
Frequently Asked Questions
1. क्या गोत्र परम्परा सारे हिन्दू जाती पर लागू होते है?
हाँ, गोत्र परम्परा सारे हिन्दू जाती पर ही लागू होते है।
2. बच्चे को किसका गोत्र मिलता है, माता या पिता का?
बच्चे को हमेशा पिता का गोत्र ही मिलता है, दक्षिण भारत के कुछ समुदायों को छोड़कर जो मातृपक्ष का गोत्र अपनाते है।
3. जिनके गोत्र का कहीं से भी पता न चले, उनका गोत्र क्या है?
जिनके गोत्र का कहीं से भी पता न चले उन्हें कश्यप गोत्र का मान लिया जाता है।