हरतालिका तीज व्रत कथा : इस व्रत के फलस्वरूप माता पार्वती ने शिवजी को पाया (Haritalika Teej Vrat Katha : Es Vrat Ke Falswarup Mata Parvati Ne Shivji Ko Paya)
हिन्दू धर्म में बहुत सारे व्रत है पर एक सुहागन के लिए हरतालिका तीज व्रत का अपना एक अलग ही विशेष महत्व है। मान्यता है कि हिन्दू धर्म की महिलायें अपनी सुहाग की लम्बी उम्र के लिए हरतालिका तीज व्रत के द्वारा भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती है, जिसके की भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होकर उनकी इच्छाएँ पूर्ण करें। सिर्फ शादी-सुदा महिलायें ही नहीं बल्कि कुवारी कन्याएं भी मनचाहे वर से विवाह के लिए “हरतालिका तीज” व्रत को करती है। परन्तु, हरतालिका तीज व्रत को करने के सा- साथ हरतालिका तीज व्रत कथा सुनना अथवा पढ़ना भी बेहद जरुरी है।
आइये आज हम आपको, हरतालिका तीज व्रत कथा बतलाते है : (hartalika teej katha in hindi)
बहुत पहले की बात है, एकबार भगवान शिव ने माता पार्वती को उनके पूर्वजन्म का स्मरण करवाने के लिए हरतालिका तीज व्रत कथा सुनाई थी। कथा इस प्रकार थी कि-शिव जी ने माता पार्वती से कहा -हे गौरी, तुमने अपनी बाल्यावस्था में पर्वतराज हिमालय पर स्थित “गंगा नदी” के तट परअधोमुखी होकर 12 वर्षो तक घोर तप किया था। इतने समय तक तुमने अन्न का त्याग कर वृक्ष की सुखी पत्तियों को खाकर अपना जीवन व्यतीत किया। माघ मास की विकराल शीतलता में निरंतर तुमने जल में प्रवेश कर कठिन तप किया। वैशाख माह की जला देने वाली गर्मी में तुमने अपने शरीर को पंचाग्नि मे तपाया तथा श्रावण मास की मूसलाधार वर्षा में तुमने खुले आसमान के निचे खड़े होकर, अन्न जल सब त्याग कर कठिन तप किया। तुम्हारे पिता तुम्हारी इस कष्ट पूर्ण तप को देखकर अत्यंत दुखी हुए थे और उनके मन में बड़ा क्लेश उत्पन्न हो जाता था। एक दिन नारदमुनि जी तुम्हारे इस कठिन योग साधना और तुम्हारे पिता के दुःख को देखकर तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने देवऋषि नारदमुनि का अतिथि सत्कार भी किया और उनसे उनके आने का कारण पूछा ।
देवऋषि नारदमुनि ने कहा कि गिरिराज मै तो यहाँ भगवान विष्णु के भेजने के कारण आया हूँ। आपकी पुत्री का कठिन तप देखकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते है। अतः इस बात पर अब आप अपनी राय दे ।
देवऋषि नारदमुनि की बातें सुनकर राजा गिरिराज बहुत प्रसन्न हुए। उनके मन के सारे दुःख इस बात को सुनकर अपने आप ही दूर हो गए। राजा गिरिराज ने प्रसन्नता से देवऋषि नारदमुनि को कहा कि “एक पिता को और क्या चाहिए अपनी पुत्री के लिए और जब स्वयं भगवान विष्णु मेरी पुत्री का वरण करना चाहते है तो इससे ज्यादा प्रसन्नता की बात और क्या हो सकती है?, भगवान विष्णु तो जग के पालनकर्ता है वो तो परम ब्रह्म है ।
भगवान शिव कहते है की पार्वती ” तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर देवऋषि नारदमुनि भगवान विष्णु के समक्ष जाते है और उनसे गिरिराज जी का विवाह के सम्बन्ध में सहमति जताने की बात कहते है परन्तु इस विवाह की बात जब तुम्हारे कानों में पड़ती है तो तुम अत्यधिक दुखी हो जाती हो। तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारे इस हालत को देखकर तुमसे कारण पूछा और तुमने उससे कहा कि “मैंने सच्चे मन से शिव जी का वरण किया है परन्तु मेरे पिताश्री ने मेरा विवाह भगवान विष्णु से तय किया है । मै तो बहुत बड़े संकट में हूँ। अब तो प्राण त्यागने के आलावा कोई भी मार्ग नहीं दिख रहा परन्तु तुम्हारी सखी एक सूझ-बूझ वाली समझदार नारी थी। सखी ने कहा – “सखी इसमें प्राण को त्यागने वाली बात ही कहा है? संकट भरी परिस्थिति में अपने धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे भी अपने ह्रदय से एक बार पति रूप में वरण कर लिया, जीवनभर उसी के साथ जिए। एकनिष्ठता तथा सच्ची आस्था देखकर तो ईश्वर को भी समर्पण करना ही पड़ता है। मै तुम्हे एक बड़े से घनघोर जंगल में लिए चलती हूँ जहाँ पर तुम अपनी साधना भी कर सको और तुम्हारे पिता तुम्हे ढूंढ भी न पाए। मुझे विश्वास है कि ईश्वर तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे।” सखी की बात सुनकर तुमने वही किया और तुम्हारे पिता तुम्हे घर पर न देखकर अत्यधिक दुखी तथा चिंतित भी हुए। वो यह भी सोचने लगे कि “जाने पुत्री कहाँ चली गई? और मैंने तो पुत्री का विवाह भगवान विष्णु से तय किया है। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर यहाँ चले आये और पुत्री यहाँ घर पर नहीं हुई तो घोर अपमान हो जाएगा और कहीं भी मुहँ दिखाने के लायक नहीं रह जाऊंगा।” ये सब सोचकर गिरिराज हर दिशा में अपनी पुत्री की खोज करने लगे ।
चारों तरफ तुम्हारी खोज चल रही थी और तुम अपनी सखी के संग नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना कर रही थी। भाद्रपद शुक्ल की त्रित्या में हस्त नक्षत्र थी और तुमने व्रत भी रखी हुई थी तथा रेत की शिवलिंग भी बनाया था और सारी रात जागते हुए मेरी ही स्तुति के गीत गाये जा रही थी। तुम्हारे घोर कष्टप्रद साध्ना को देखकर मेरी समाधी ही टूट गई और मै तुम्हारे व्रत से प्रसन्न होकर तुम्हारे समक्ष गया और वरदान मांगने को कहा।
अपने घोर तपस्या के फलस्वरूप तुमने मुझे अपने सामने देखकर कहा कि ” मै ह्रदय से आपको अपने पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ। यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ पधारे है तो मुझे अपनी अर्धांग्नी के रूप में स्वीकारें।”
तब मै तुम्हें तथास्तु बोलकर कैलाश पर्वत पर वापस लौट आया। अन्य दिन प्रातः काल तुमने पूजन के सारे सामग्रियों को नदी में प्रवाहित कर अपनी सखी के साथ व्रत का पारण किया और उसी क्षण राजा गिरिराज अपने दरबारियों और सैनिको सहित तुम्हें ढूंढ़ने वहाँ पहुँच गए और तुम्हारे इस कष्टप्रद तपस्या को देखर बहुत दुखी हुए जिससे की उनके आँखों में आँशु भी आ गए। फिर तुम्हारे पिता ने तुमसे इस तपस्या का उद्देश्य भी पूछा। तुमने विनम्रता से उनके आँशु पोछते हुए कहा कि “पिताश्री, मैंने तो अपने जीवन का आधा से अधिक समय इस कठोर तपस्या में बिता दी और इस तपस्या का उद्देश्य बस यही था कि – मै शिव जी को पति के रूप में पाना चाहती थी और आज मेरी तपस्या पूरी हुई। आप भगवान विष्णु से मेरा विवाह करना चाहते थे इसलिए ही मै अपना घर छोड़कर यहाँ गुफा में आ गयी और अब मै आपके साथ इसी शर्त पर जाउंगी कि आप मेरा विवाह शिव जी से ही करेंगे ना कि भगवान विष्णु से।”
तुम्हारी बात सुनकर राजा गिरिराज मान गए और तुम्हे वापस घर ले आये। कुछ समय उपरान्त, उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ हमारा विवाह कर दिया।
भगवान शिव कहते है की पार्वती “भाद्रपद के शुक्ल की त्रित्या को तुमने व्रत करके सच्चे मन से मेरी आराधना की और उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह संपन्न हुआ और इस व्रत का महत्व यही है कि इस व्रत को करने वाली विवाहित महिला का वैवाहिक जीवन सुखद होगा तथा उसके पति की आयु भी लम्बी होगी और कुवारी कन्याएं भी इस व्रत को करके मनचाहा पति प्राप्त कर सकेंगी।“
Frequently Asked Questions
1. हरतालिका तीज व्रत किस दिन होती है?
हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद के शुक्ल की त्रित्या के दिन होती है ।
2. क्या हरतालिका तीज व्रत विवाहित महिलायें कर सकती है?
जी हाँ, हरतालिका तीज व्रत विवाहित महिलायें कर सकती है।
3. क्या हरतालिका तीज व्रत कुवारी लड़कियाँ कर सकती है?
जी हाँ, हरतालिका तीज व्रत कुवारी लड़कियाँ कर सकती है।
4. हरतालिका तीज व्रत में किस भगवान की पूजा की जाती है?
हरतालिका तीज व्रत में शिव जी और माता पार्वती की पूजा की जाती है।