गरुड़ पुराण के अनुसार मौत के बाद हिंदू नियम, मिलती है आत्मा को मुक्ति (Garud Puran Ke anusar Mout Ke Baad Hindu Niyam, Milti Hai Aatma Ko Mukti)
सनातन धर्म में मृत शरीर को “सूर्यास्त” होने से पहले ही उसका दाह संस्कार कर दिया जाता है। सनातन धर्म के नियमों के अनुसार, साधुओं के लिए समाधि तथा अन्य व्यक्तियों के लिए दाह संस्कार की प्रथा बनाई गयी है। परन्तु, इसके पीछे भी कई कारण हैं।
साधु तथा ऋषियों की समाधि इसलिए बनाई जाती है क्योंकि उनके शरीर में एक दैविक तथा विशेष ऊर्जा का वास होता है। वो एक विशेष औरा लिए हुए होते है और यही कारण है की साधुओं की समाधि बनाई जाती है जिससे की उनके शरीर में उपस्थित ऊर्जा प्राकृतिक रूप से धरती में विस्तृत हो जाए।
वहीँ दूसरी ओर, अन्य मनुष्यों का दाह संस्कार किया जाता है ताकि यदि उस मनुष्य की अन्य कोई भी इच्छा या आसक्ति बची हुई हो तो वो इसी धरती पर छूट जाए तथा इसका एक और कारण भी है की यदि उस मनुष्य को कोई भी रोग या बीमारी हो तो वो भी नष्ट हो जाए। दाह संस्कार के बाद बची हुई राख को किसी भी पवित्र नदी में बहा दिया जाता है।
हिन्दू धर्म में मृत्यु के पश्चात दाह संस्कार को नियम पूर्वक (funeral rules in hindu according garuda purana) संपन्न किया जाता है। आइये जानते है उन विशेष नियमों के बारे में :
रीति तथा नियम :
हिन्दू धर्मशास्त्र में 18 पुराण हैं और इन्हीं 18 पुराणों में एक है “गरुड़ पुराण”। गरुड़ पुराण के नियम अनुसार, प्रत्येक कर्म करने की एक विशेष नीति, रीति तथा नियम होता है । कहते है, किसी भी विशेष रीति तथा नीति से की गयी कर्म से मनुष्य के आत्मा को शांति प्राप्त होती है। साथ ही साथ पुनर्जन्म यानी की अगले जन्म में स्वर्ग तथा मुक्ति के द्वार खुल जाते है।
हिन्दू धर्म में बच्चे, साधु तथा संतों को धरती में दफनाया जाता है और अन्य व्यक्तियों का मृत्यु के बाद दाह संस्कार कर दिया जाता है। जैसे की : संत समाज के नाथ, गोसाई तथा बैरागी के मृत शरीर की समाधि बनाई जाती है । इन दोनों को ही वैदिक नीति नियम के साथ करना ही उचित है।
मृत देह की परिक्रमा का नियम :
हिन्दू धर्म में मृत शरीर को श्मशान लेकर जाने से पहले घर के लोग मृत शरीर की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद, दाह संस्कार के के समय जो भी व्यक्ति दाह संस्कार करता है वो मिटटी की किसी छेद वाले घड़े में जल भरके मृत शरीर की परिक्रमा करता है। परिक्रमा के बाद वो उस घड़े को पीछे की ओर गिराकर फोड़ देता है। ऐसा करने से मृत शरीर से मोह भंग हो जाती है ।
वैसे, इस क्रिया को करने का और भी कारण है क्योंकि इससे सारे तत्व इस क्रिया में शामिल हो पाते हैं। इस क्रिया का एक अर्थ यह भी है की : हमारी उम्र उस छेद रूपी घड़े में स्थित जल के समान है जो घड़े के छेद से गिरता जाता है और अंत में सारा जल भूमि पर गिर जाता है और घड़े को धरती पर गिरा कर तोड़ दिया जाता है यानि की जीवात्मा अंत में परमात्मा में विलीन हो जाती है।
दिशा का उचित ज्ञान जरूरी :
मृत शरीर को लेकर जाते वक्त इस बात का पूरा ध्यान दिया जाता है की उसका सिर सामने की ओर पाँव पीछे रखे हो। इसके बाद, विश्रांत-स्थल पर पार्थिव शरीर को किसी वेदी पर रख दिया जाता है ऐसा इसलिए कि व्यक्ति अंतिम बार इस संसार को देख ले। इसके पश्चात् शरीर की दिशा को बदल दी जाती है। जिसमें पाँव आगे की ओर और सिर को पीछे की ओर कर दिया जाता है यानी की उस समय आत्मा को श्मशान को देखते हुए आगे बढ़ना होता है। अंत में, पार्थिव शरीर को चिता पर लेटा दिया जाता है। ऐसी स्थिति में मृतक का सिर चिता पर दक्षिण की दिशा की ओर रखा जाता है।
शास्त्र अनुसार मृत व्यक्ति का सिर उत्तर की दिशा में रखा जाता है और दाह संस्कार के दौरान सिर को दक्षिण दिशा की ओर रखना चाहिए। मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति के प्राण निकलने में कष्ट हो रहा हो तो सर को उत्तर की दिशा की ओर रख देने से गुरुत्वाकर्षण के कारण प्राण जल्द ही और अलप कष्ट से निकल जाता है। वहीं, मृत्यु के बाद दक्षिण दिशा की ओर मस्तक रखने का मुख्य कारण है कि शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा में मृत्यु के स्वामी यम देव रहते है। ऐसे में हम उस पार्थिव देह को मृत्यु के देवता को समर्पित कर देते हैं।
सूर्यास्त से पहले ही दाह संस्कार :
सनातन धर्मानुसार, सूर्यास्त के पश्चात् कभी भी दाह संस्कार नहीं की जाती है। अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु सूर्यास्त के पश्चात् हुई है तो उसे अगले दिन सुबह के समय ही दाह संस्कार करने का नियम है। शास्त्र अनुसार, मृत व्यक्ति के सिर को उत्तर की दिशा में रखा जाता है और दाह संस्कार के वक्त सिर को दक्षिण दिशा की ओर ही रखना चाहिए।
दाह संस्कार के नियम :
धर्मज्ञ का मानना है कि लकड़ी की चिता अच्छी तरह से बनाकर मृतक शरीर को उस लकड़ी की वेदी पर लेटा दिया जाता है। पुरे रीति-रिवाज से दाह-संस्कार को संपन्न करना ही श्रेष्ठ कर्म माना जाता है, अन्य किस भी तरीके से दाह-संस्कार संपन्न करना धर्म के विरुद्ध माना जाता है। इस क्रिया को सर्वथा धार्मिक रीति रिवाज से पूरी करनीचाहिए। मृतक के साथ किए जाने वाले रीती रिवाज से हमारे सभ्य तथा असभ्य होने का सही पता चलता है। पूर्ण सम्मान तथा आदर के साथ ही मृतक का दाह संस्कार करना चाहिए। इस पूरी क्रिया दौरान सभी लोगों को अनुशासित रहना चाहिए तथा श्मशान से घर जाने से पहले मृतक के प्रति अपनी संवेदना के दो शब्द भी अवश्य कहना चाहिए। यह बेहद ही गंभीर मुद्दा है और इसे सही रूप समझना आवश्यक है।
मुक्तिधाम के नियम :
श्मशान यानि की मुक्तिधाम में ज्यादातर लोग हंसी-मजाक करते हैं या फिर किसी तरह की अनुचित बातें करते हैं । ऐसे लोग ये नहीं जानते और समझते हैं कि उन पर वहां के “क्षेत्रज्ञ देव” की दृष्टि होती है। वो व्यक्ति यह भी नहीं समझता है कि उसे भी मृत्यु के बाद यहीं पर लाया जाएगा, और तब क्षेत्रज्ञ देव उसके साथ किस प्रकार का न्याय करेंगे। मुक्तिधाम को यमदेव का क्षेत्र माना जाता है, वहां पर यमदेव की ओर से एक क्षेत्रज्ञ देव भी नियुक्त होते हैं। सनातन धर्म में प्रत्येक विशिष्ट क्षेत्र के क्षेत्रज्ञ देव होते हैं और उन सभी के अलग-अलग प्रकार कार्य होते हैं।
Frequently Asked Questions
1. क्या दाह संस्कार से पहले मुंडन किया जाता है ?
जी हाँ दाह संस्कार के पहले मुंडन अनिवार्य माना जाता है ।
2. दाह संस्कार से पहले मुंडन क्यों करवाया जाता है ?
दाह संस्कार से पहले मुंडन करवाया जाता है क्योंकि इससे सूतक का असर काम हो जाता है ।
3. पिंडदान कहाँ करना चाहिए ?
पिंडदान गया में करना चाहिए।
4. दशगात्र क्या है ?
दाह संस्कार के अंतर्गत कपाल क्रिया तथा पिंडदान के अलावा भी घर की साफ, सफाई की जाती है। इसे ही दशगात्र कहा जाता है।