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Kabir ke Dohe in Hindi | संत कबीर के प्रसिद्द दोहे | Free PDF Download

Kabir ke Dohe in Hindi | संत कबीर के प्रसिद्द दोहे | Free PDF Download

संत कबीर के प्रसिद्द दोहे

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।|

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय  ।|

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखीन पड़े, तो पिर घनेरि होय ।|

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाही जब छूट ।|

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरी करेगा कब ।|

साईं इतना दीजिये, जा के कुटुम्ब समाए ।
मैं भी भुखा न रहू, साधू ना भुखा जाय ।|

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय ।
जो सुख मे सुमीरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अती का भला न बरसना, अती कि भलि न धूप ।|

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।|

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गही रहै, थोथी देई उड़ाय ।| 
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।|  पतिबरता मैली भली, गले कांच की पोत ।
सब सखियन मे यो दीपै, ज्यो रवि शीश की जोत ।| 

कबीर हमारा कोई नहीं, हम काहू के नाहिं ।
पारै पहुंचे नाव ज्यौ, मीलके बिछुरी जाह  ।|

माटी का एक नाग बनाके, पूजे लोग लुगाया ।
जिन्दा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाया ।| 

मल मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल ।
नहाए गंगा गोमती, रहे बैल के बैल ।|

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होए ।|

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ।| 

कबीर मंदिर लाख का, जडियां हीरे लालि ।
दिवस चारि का पेषणा, बिनस जाएगा कालि ॥  

एकही बार परखिये, ना वा बारम्बार ।
बालू तो हू किरकिरी, जो छानै सौ बार. ।|

हू तन तो सब बन भया, करम भए कुहांडि ।
आप आप कूँ काटि है, कहै कबीर बिचारि ।|

 तेरा संगी कोई नहीं, सब स्वारथ बंधी लोई ।
मन परतीति न उपजै, जिव बेसास न होई ।|  कबीर नाव जर्जरि, कूड़े खेवनहार ।
हलके हलके तीरी गए, बूड़े तीनी सर भार ।|  मैं मैं मेरी जीनी करै, मेरी सूल बीनास ।
मेरी पग का पैषणा, मेरी गल कि पास ।| 

मन जाणे सब बात, जांणत ही औगुन करै ।
काहे की कुसलात, कर दीपक कूंवै पड़े ॥

 हिरदा भीतर आरसी, मुख देखा नहीं जाई ।
मुख तो तौ परि देखिए, जे मन की दुविधा जाई ॥ करता था तो क्यूं रहय, जब करि क्यूं पछिताय ।
बोये पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ ते खाय ॥ नमनहिं मनोरथ छांडी दे, तेरा किया न होइ ।
पाणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाई न कोइ ॥ माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर ।
आसा त्रिष्णा णा मुइ, यों कही गया कबीर ॥ 

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमान,
आपस में दोउ लड़ी मुए, मरम न कोउ जान ।|

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर ।|

कबीर यह तनु जात है, सकै तो लेहू बहोरि ।
नंगे हाथूं ते गए, जिनके लाख करोडि॥


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