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कमरछठ व्रत (Kamrchat Vrat): संतान की लम्बी आयु के लिए इस दिन जरूर पढ़े हलषष्ठी व्रत कथा (Hal Shashthi Katha)

कमरछठ व्रत (Kamrchat Vrat): संतान की लम्बी आयु के लिए इस दिन जरूर पढ़े हलषष्ठी व्रत कथा (Hal Shashthi Katha)

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हल षष्ठी को ‘लल्ही शास्त’,कमरछठ (Kamarchat) या ‘हर छत’ के नाम से भी जाना जाता है, यह एक हिंदू त्योहार है जो भगवान बलराम को समर्पित है, जो श्रीकृष्ण के बड़े भाई थे। यह पारंपरिक हिंदू कैलेंडर में ‘भाद्रपद’ के महीने के दौरान कृष्ण पक्ष (चंद्रमा के घटते चरण) की ‘षष्ठी’ (6 वें दिन) पर मनाया जाता है।

हल षष्ठी का त्योहार भगवान बलराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है और पूरे भारत में बहुत उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह श्रावण पूर्णिमा या रक्षा बंधन त्योहार के छह दिन बाद मनाया जाता है। राजस्थान राज्य में इसे ‘चंद्र षष्ठी’ के रूप में मनाया जाता है, गुजरात में इस दिन को ‘रंधन छठ’ के रूप में मनाया जाता है और ब्रज क्षेत्र में इसे ‘बलदेव छठ’ के रूप में जाना जाता है।

हल षष्ठी 2022 तिथि

बुधवार, 17 अगस्त  2022

सूर्योदय – 17 अगस्त, 2022 6:07 पूर्वाह्न
सूर्यास्त – अगस्त 17, 2022 6:54 अपराह्न
षष्ठी तिथि – 16 अगस्त, 2022 रात 8:17 बजे शुरू होगी
षष्ठी तिथि समाप्त – 17 अगस्त, 2022 रात 8:25 बजे

हल षष्ठी पर किये जाने वाले अनुष्ठान

  • हल षष्ठी का त्यौहार पूरे भारत में कृषक समुदायों द्वारा अत्यधिक समर्पण के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार की रस्में मुख्य रूप से महिला लोक द्वारा निभाई जाती हैं।
  • हल षष्ठी पूजा के दौरान, भक्त ‘सातव्य’ के साथ कुएं की पूजा भी करते हैं। एक ‘सातव्य’ अनाज के सात रूपों का एक संयोजन है, जैसे ज्वार, धान, गेहूं, मूंग, चना, मक्का और मसूर। हल के पास हल्दी के लेप से रंगे कपड़े का एक टुकड़ा भी रखा जाता है और उसकी पूजा भी की जाती है। पूजा के बाद, भक्त हल षष्ठी व्रत कथा का पाठ भी करते हैं।
  • घर की महिलाएं हल षष्ठी के दिन कड़ा व्रत रखती हैं। वे दिन भर कुछ भी खाने से पूरी तरह परहेज करते हैं। हल षष्ठी व्रत का पालन करने वाले दिन में फल या दूध का सेवन भी नहीं करते हैं। ध्यान रहे कि हल षष्ठी के दिन गाय के दूध का प्रयोग नहीं किया जाता है और आवश्यकता पड़ने पर इस दिन केवल भैंस के दूध का ही सेवन किया जा सकता है।

हल षष्ठी व्रत कथा (Hal Shashthi Katha)

प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी । उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था । एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन लगा हुआ था । उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ -रस यूं ही पड़ा रह जाएगा ।

यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया ।

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गयी I संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी । गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया ।

उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था , उसके समीप किसान हल जोत रहा था । अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया ।

इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया । उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टाँके लगाये और उसे वहीं छोड़कर चला गया ।

कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची । बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है I

वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गाँव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती I अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बता कर प्रायश्चित करना चहिये I

ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची , जहां उसने दूध-दही बेचा था । वह गली -गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी I तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खा कर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया ।

बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है I तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया ।

(समाप्त)