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जन्मकुंडली में कमजोर केतु : लक्षण और उपाय (Janmkundali Me Kamjor Ketu : Lakshan Aur Upay)

जन्मकुंडली में कमजोर केतु : लक्षण और उपाय (Janmkundali Me Kamjor Ketu : Lakshan Aur Upay)

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वैदिक ज्योतिष के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होनेवाली प्रत्येक घटना के लिए उत्तरदायी होते है – नवग्रह और नक्षत्र। मनुष्य के जन्म के समय ब्रह्माण्ड में ग्रहों और नक्षत्रों की  जो स्थिति थी वही मनुष्य के पुरे जीवन काल का निर्धारण करते है परन्तु साथ में चलित कुंडली देखना भी आवश्यक है। मनुष्य के जीवन पर प्रभाव देने वाले ग्रहों में जितना प्रभाव सूर्य, चन्द्रमा का पड़ता है, उतना ही प्रभाव राहु, केतु तथा अन्य ग्रहों का पड़ता है। इस गाइड में हम बात करेंगे केतु के बारे में। तो, चलिए शुरू करते है ।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, केतु एक छाया ग्रह है। “केतु मनुष्यों के पिछले जन्म में किये गए कर्मों को दर्शाता है और उन्ही कर्मों के अनुसार इस जन्म में जो बाकी रह गया और जो मनुष्य जीवन का उद्देश्य होता है वो “राहु” दर्शाता है। केतु को आध्यात्म, मोक्ष, वैराग्य तथा तंत्र – मंत्र के विद्या से जोड़ा जाता है। 

वैदिक ज्योतिष मेंकेतु ” : (Vedic Jyotish Me “Ketu”)

जन्मकुंडली में केतु की अपनी कोई भी राशि नहीं होती लेकिन केतु की उच्च की राशि धनु है और नीच की राशि मिथनु। केतु जिस भी ग्रह के साथ जन्मकुंडली के किसी भी भाव में बैठ जाता है तो उसका छाया बनकर शुभ और अशुभ फल देता है। जन्मकुंडली में केतु यदि तीसरे, नौवें या दशवें भाव में बैठ जाए तो शुभ फलदायक होता है। लेकिन यदि शुभ स्थानों में बैठ कर भी केतु यदि अपने नीच की राशि में बैठ जाएँ तो केतु के फलों में कमी आ जाती है जिसके कारण जातक को कष्टों का सामना करना पड़ता है। केतु के कमजोर तथा बुरे स्थितियों को जान लेने के बाद उसके दुष्परिणामों से बचने के लिए ज्योतिष में अनेकों टोटके तथा उपाय दिए गए है जिन्हें आसानी से करके केतु के शुभ फलों की प्राप्ति की जा सकती है।

जन्मकुंडली में कमजोर केतु की स्थिति तथा उपाय : (Janmkundali Me Kamjor Ketu Ki Sthiti Tatha Upay)

आइये जानते है, जन्मकुंडली में केतु के उन स्थितियों को जहाँ पर केतु के बैठने से केतु कमजोर होकर बुरे फल प्रदान करता है और साथ ही साथ प्रत्येक स्थिति के अनुसार उसके उपाय :

1. प्रथम भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु प्रथम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक मानसिक रूप से परेशान होता है। जातक के वैवाहिक जीवन में परेशानियां बनी रहती है। प्रथम भाव में केतु के कमजोर होने से जातक स्वार्थी और लालची बन जाता है। ऐसे जातक में आत्मविश्वास का आभाव होता है। जातक अल्पायु होगा तथा अपने बच्चों के कारण परेशान रहेगा।

उपाय तथा टोटके :

  • जातक को केसर का तिलक लगाना चाहिए।
  • बन्दर को गुड़ खिलाएं।
  • अपने संतान की भलाई के लिए मंदिर या गरीबों में सफ़ेद या काले रंग के कम्बल बटवायें।

2. द्वितीय भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु द्वितीय भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक को कुछ भी नया सिखने में परेशानी आएगी। जातक आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर रहेगा। जातक का उसके परिवार वालों के साथ अनबन बनी रहेगी। जातक को आँख तथा मुहं से जुड़ीं बीमारियां होंगी।  

उपाय तथा टोटके :

  • केसर, हल्दी या चंदन का तिलक करें। 
  • लड़कियों का सम्मान करें।
  • अपने भोजन में से कुछ हिस्सा काला या सफ़ेद कुत्ते को खिलाएं।
  • भगवन श्री गणेश जी की  पूजा करें।
  • चरित्र में पवित्रता बनाए रखें।

3. तृतीय भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु तृतीय भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक का उसके पिता तथा भाई, बहनों के साथ अकारण ही झगड़ें होंगे। जातक का स्वभाव उसके दोस्तों के प्रति सही नहीं होगा। यात्रा से कोई लाभ नहीं मिलेगा।  जातक में साहस की कमी रहेगी।

उपाय तथा टोटके :

  • किसी नदी में चावल और गुड़ प्रवाहित करें।
  • हल्दी, चंदन या केसर का तिलक लगाएं।
  • माँ दुर्गा की उपासना करें। 

4. चतुर्थ भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु चतुर्थ भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक का उसकी माँ और दोस्तों के साथ नहीं बनेगी। जातक को जल से अर्थात नदी या समुद्र से दूर रहना चाहिए।  जातक का मन हमेशा अशांत रहेगा।

उपाय तथा टोटके :

  • किसी नदी में पीले रंग की चीजें प्रवाहित करें। 
  • मन की शांति बनाये रखने के लिए चांदी धारण करें। 
  • घर में कुत्ता पालें।
  • भगवान शिव का अभिषेक करें।

5. पंचम भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु पंचम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक बहुत ही गुसैल स्वभाव का होगा। जातक को पेट से सम्बंधित बीमारियां भी हो सकती है। गर्भ धारण करने में परेशानियों का सामना करना होगा। जातक में तर्क करने की क्षमता का आभाव होगा।

उपाय तथा टोटके :

  • चीनी और दूध का दान करना शुभ फलदायक होगा।
  • बृहस्पति का उपाय मददगार होगा।
  • केसर, चंदन या हल्दी का तिलक लगाएं।
  • माता लक्ष्मी और नारायण की पूजा करें। 

6. षष्ठम भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु षष्ठम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहती। जातक का स्वभाव हिंसक हो सकता है। षष्ठम में केतु के कमजोर होने से जातक रोगों से ग्रसित होगा। जातक को चोट लगने का खतरा बना रहता है।

उपाय तथा टोटके :

  • सोने की अंगूठी अपने बाएं हाथ की ऊँगली में धारण करें।
  • जातक को अपने कान में सोना पहनना  चाहिये।
  • केसर वाला दूध पीना लाभकारी है।
  • सोना मिश्रित दूध पीने से मानसिक शांति मिलेगी ।
  • घर में कुत्ता पालें। 

7. सप्तम भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु सप्तम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक को गुस्सा और चिड़चिड़ापन ज्यादा होगा। जातक के वैवाहिक जीवन में उलझनें आएँगी और कभी-कभी पति पत्नी के बिच तलाक की स्थिति आजाती है। जातक के जननांगों में रोग हो सकता है। जातक को ससुराल पक्ष के साथ व्यापार या साझेदारी में नहीं जाना चाहिए।

उपाय तथा टोटके :

  • हल्दी, केसर या चन्दन का तिलक करें।
  • मोर का पंख अपने पास रखें। 
  • बृहस्पति का उपाय हर मामले में मददगार होगा।
  • देवी लक्ष्मी और नारायण की पूजा करें ।

8. अष्टम भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु अष्टम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक को आर्थिक रूप से दिक्कत झेलनी पड़ेगी। जातक बीमारियों से परेशान रहता है। जातक के ऊपर झूठे इल्जाम लगते है।

उपाय तथा टोटके :

  • भगवान श्री गणेश की पूजा करें।
  • घर में कुत्ता पालें।
  • कान में सोना महिलाओं के लिए शुभ फलदायक होगा।
  • केसर का तिलक लगाएं।
  • भगवान शिव की उपासना करें।

9. नवम भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु नवम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक अपने जीवन का एक बड़ा समय अपने घर से दूर शहर में बिताता  है। नवम भाव में केतु यदि अशुभ हो तो ननिहाल को भी परेशानिया उठानी पड़ती है। जातक का उसके भाई बहनों के साथ अक्सर झगड़ें होते रहते है। 

उपाय तथा टोटके :

  • घर में सोने का ईट या आयताकार टुकड़ा रखें।
  • कान में सोना पहनें ।
  • बड़ों का सम्मान करें विशेषकर पिता और ससुर का।

10. दशम भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु दशम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक के शत्रु उसे परेशान कर सकते है। जातक को कर्मक्षत्र में काफी दिक्कतें उठानी पड़ेगी। दशम भाव का केतु जातक के पिता के लिए भी अशुभकारी होगा और जातक कर्ज में डूबा रहेगा।

उपाय तथा टोटके :

  • व्यभिचार से दूर रहें।
  • घर में एक बर्तन में शहद भर कर रखें।
  • 48 वर्ष के उम्र के बाद एक कुत्ता जरूर पालें।
  • बृहस्पति और चंद्रमा का उपाय मददगार होगा। 

11. एकादश भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु एकादश भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित होता है। जातक को पेट से जुड़ी बीमारियां हो सकती है। जातक को उसके पुत्र से कोई लाभ नहीं होता। जातक के आय के स्त्रोत कम होंगे।

उपाय तथा टोटके :

  • पन्ना या गोमेद धारण करें।
  • घर में कुत्ता पालें।
  • केसर का तिलक लगाएं।

12. द्वादश भाव : जन्मकुंडली में यदि केतु द्वादश भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक गरीब होता है। जातक अपनी तथा अपनी माँ के  स्वास्थ्य को लेकर हमेशा परेशान रहता है। जातक को वाहन चलाने के समय दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है। केतु की यह स्थिति जातक को सन्याशी भी बना सकता है। 

उपाय तथा टोटके :

  • भगवान श्री गणेश जी की पूजा करें।
  • कुत्ता अवश्य पालें।
  • केसर का तिलक लगाएं।
  • नींद लाने के लिए तकिये के निचे सौंफ और मिश्री रखें।

केतु को बलि बनाने के लिए दिव्य मंत्र :

 केतु का वैदिक मंत्र :

।। “ऊँ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेश से। सुमुषद्भिरजायथा:”।।

केतु का तांत्रिक मंत्र :

।।  “ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:”।।
।।  “ह्रीं केतवे नम:”।।
।।  “कें केतवे नम:’’।।

केतु का बीज मंत्र :

।। “ऊँ कें केतवे नम:’’।

केतु का पौराणिक मंत्र :

।। “पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।।।। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्’’।।

Frequently Asked Questions

1. केतु के टोटके तथा उपायों को किस दिन करना चाहिए ?

केतु के टोटके तथा उपायों को शनिवार और मंगलवार के दिन करना चाहिए।

2. केतु के टोटके तथा उपायों को कौन से नक्षत्र में करना चाहिए ?

केतु के टोटके तथा उपायों को केतु के नक्षत्रअश्विनी, मघा और मूल नक्षत्र” में ही  करना चाहिए।

3. केतु के उपायों को शनि के होरा में करना चाहिए या नहीं ?

केतु  के उपायों को शनि के होरा में करना अति शुभ है ।

4. केतु का बीज मंत्र क्या है ?

केतु का बीज मंत्र है – ।।ऊँ कें केतवे नम:।।