कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर से जुड़ीं चमत्कारी बातें (Kolhapur Mahalaxmi Mandir se judi chamatkari baten)
सनातन धर्म के अनुसार श्री महालक्ष्मी मंदिर पुराणों में वर्णित विभिन्न शक्तिपीठों में से एक है। श्री महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता आदिशक्ति की समस्त शक्तिपीठों के जैसे ही इस शक्तिपीठ में भी माता आदि शक्ति का वास है और अपने इस रूप से ही माता अपने भक्तों के सभी दुख दूर उनकी मनोकामनाएं पूरी करती है।
भारत में स्थित माता आदिशक्ति के समस्त पीठों के जैसे ही कोल्हापुर में स्थित माता महालक्ष्मी का शक्तिपीठ भी विश्व प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहां पर जो भी भक्त माता के दर्शन कर अपने विचारों को माता के सामने मन ही मन प्रस्तुत करता है माता आदि शक्ति उसका कल्याण अवश्य करती है और माता के आशीर्वाद से उस व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा प्रत्येक इच्छा पूर्ण होती है।
माता महालक्ष्मी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी तथा कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर की अधिष्ठात्री देवी है। लोगों का मानना यह है कि इस मंदिर में माता महालक्ष्मी के साथ-साथ भगवान विष्णु का भी वास है।
महालक्ष्मी मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा :
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार माता महालक्ष्मी पहले तिरुपति में ही रहती थी। एक दिन किसी बात पर भगवान विष्णु से जब उनका झगड़ा हो गया तो माता रूठ कर कोल्हापुर मंदिर में आ गई। इसी वजह से हर साल दिवाली के दिन तिरुपति देवस्थानम की ओर श्री महालक्ष्मी के लिए सॉल भेजी जाती है।
महालक्ष्मी मंदिर का इतिहास और मंदिर की संरचना :
महालक्ष्मी जी यह मंदिर दुनिया के सबसे पुराने मंदिरों में से है। इस मंदिर में कई शासक आए और गए, लेकिन 1300 वर्ष पुराने इस मंदिर में सदियों से वही पूजा की परंपरा कायम रही। इस मंदिर की “साप्ताहिक पूजा” में करीब 54 पुरोहितों के परिवार शामिल होते हैं। इन 54 परिवारों के सदस्यों में से एक योगेश पुजारी जी का कहना है कि महालक्ष्मी माता की मूर्ति मंदिर से भी अधिक पुराना है।
योगेश प्रभुदेसाई जी के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 7वीं सदी के चालुक्य सम्राट कर्णदेव ने करवाया था। कोल्हापुर के शिलाहार राजवंश ने 11 वीं सदी में मंदिर का और भी विस्तार करवाया। शिलाहार राजा कर्नाटक में चालुक्यों के मातहत कोल्हापुर का बागडोर सँभालते थे। इस मंदिर में शिलाहार राजवंश तथा देवगिरि के सुप्रसिद्ध यादव वंश के भी शिलालेख मिलते हैं। 13वीं सदी के बाद में देवगिरि के यादव वंश ने उनका अध्याय समाप्त किया। लेकिन, कोल्हापुर का श्री महालक्ष्मी मंदिर इस बीच में होने वाली उथल-पुथल के दौरान भी बचा रहा।
1715 में “विजयादशमी” को मंदिर की पुन:स्थापना का वर्णन मिलता है। बाद में छत्रपति शिवाजी ने पुरातन परंपराओं को एक नया जीवन दिया। जिससे की कई प्राचीन स्मारक खंडित होने से बच गए तथा प्राचीन पूजा प्रथाएं भी जीवित रहीं। छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज आज भी कोल्हापुर में हैं। श्री महालक्ष्मी मंदिर के पास भव्य राजबाड़ा उन्हीं के वंशज का स्थान है। “संभाजी राजे शिवाजी” की वंश परंपरा में यहां की सम्माननीय हस्ती हैं। छत्रपति के इतिहास में महालक्ष्मी मंदिर को “अंबाबाई देवघर” कहा जाता है।
महालक्ष्मी की प्रतिमा :
माता महालक्ष्मी की प्रतिमा 2 फीट 9 इंच ऊंची मूर्ति 2000 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी है। इस प्रतिमा में श्री महालक्ष्मी माता की 4 भुजाएं हैं। जिनमें महालक्ष्मी ने तलवार, ढाल गदा, शस्त्र आदि धारण किये हुई हैं। माता के मस्तक पर नाग और पीछे उनकी सवारी शेर है। अत्यधिक पुरानी मूर्ति होने के कारण कोई नुकसान न हो जाये इसलिए 4 वर्ष पहले औरंगाबाद के पुरातत्व विभाग ने महालक्ष्मी मूर्ति पर रासायनिक प्रक्रिया की है। माता महालक्ष्मी जी की पालकी सोने से निर्मित है। जिसमें 26 किलो सोना लगा है। हर साल नवरात्रि के उत्सव पर माता जी की शोभायात्रा कोल्हापुर से निकाली जाती है।
महालक्ष्मी मंदिर में नवग्रह तथा अन्य देवों के लिए पूजा स्थान :
महालक्ष्मी मंदिर में भगवान सूर्य, विठ्ठल, नवग्रह, भगवान शिव, तुलजा भवानी आदि अन्य देव, देवियों की भी मूर्ति है तथा इनके लिए पूजा स्थान भी है। इसके अलावा कुछ हाल में ही बनाई गई मूर्तियां भी इस मंदिर में उपस्थित है। इस मंदिर के प्रांगण में मणिकर्णिका कुंड के तट पर विश्वेश्वर महादेव जी का भी मंदिर स्थित है।
महालक्ष्मी मंदिर में पूजा का समय :
इस मंदिर में पहली पूजा सुबह 5:05 बजे होती है। जिसमें दिया जलाया जाता है और भक्तजन भजन और कीर्तन करते हैं तथा पुजारी लोग वैदिक मंत्रों तथा महालक्ष्मी स्त्रोतम (“Mahalaxmi Stotram) का उच्चारण करते हैं और भगवान को भोग भी लगाया जाता है। सुबह 8:00 बजे दूसरी पूजा की जाती है तब भगवान को षोडशोपचार पूजन किया जाता है। दोपहर के समय भी माता की पूजा की जाती और भोग लगाई जाती है। इसके अलावा रात्रि में भी माता को भोग लगाया जाता है।
प्रत्येक पूर्णिमा तथा शुक्रवार के दिन माता की मूर्ति को एक जुलूस रूपी उत्सव में मंदिर के प्रांगण में तीन बार प्रदक्षिणा करवाई जाती है।
महालक्ष्मी मंदिर में किरणोत्सव :
महालक्ष्मी माता का मुख पश्चिम दिशा में है, तथा मुख्यद्वार से 500 फीट दूर है। वर्ष में 2 बार “उत्तरायण” तथा “दक्षिणायन” के समय सूर्यास्त होनेपर सूर्य नारायण विशेष स्थिति में आ जाते हैं, तब सूर्य की किरणें मुख्यद्वार से होती हुई श्री महालक्ष्मी पर पड़ती हैं और यही किरणोत्सव कहलाता है। इस विशेष घटना को देखने के लिए भारत से कई हजारों लोग कोल्हापुरी मंदिर में आते हैं।
हर साल इस त्यौहार को निम्नलिखित दिनों में पर मनाया जाता है। जो कि इस प्रकार हैं :
31 जनवरी, 1 फरवरी तथा 2 फरवरी
9 नवंबर,10 नवंबर और 11 नवंबर
Frequently Asked Questions
1. भारत की सबसे पुरानी श्री महालक्ष्मी मंदिर कहाँ है ?
भारत की सबसे पुरानी श्री महालक्ष्मी मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर में है।
2. कोल्हापुर श्री महालक्ष्मी मंदिर में किरणोत्सव कब मनाया जाता है ?
कोल्हापुर श्री महालक्ष्मी मंदिर में किरणोत्सव 31 जनवरी, 1 फरवरी तथा 2 फरवरी 9 नवंबर,10 नवंबर और 11 नवंबर को मनाया जाता है।
3. छत्रपति के इतिहास में महालक्ष्मी मंदिर को क्या कहा जाता है?
छत्रपति के इतिहास में महालक्ष्मी मंदिर को “अंबाबाई देवघर” कहा जाता है।