कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष क्या है : हिंदू कैलेंडर से कैसे की जाती है इसकी गणना (Krishna Paksha aur Shukla Paksha Kya Hai : Hindu Calendar Se Kaise Ki Jati Hai Ganana)
हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ तथा धार्मिक या मांगलिक कार्य करने के लिए शुभ और अशुभ मुहूर्त देखी जाती है है जिसमें मुहूर्त के आधार पर बहुत से कार्यों को वर्जित किया गया है और इन शुभ और अशुभ मुहूर्त का पता हम “हिन्दू धर्म पंचांग” और “हिन्दू काल गणना” से लगाते है। हिन्दू धर्म पंचांग का मतलब है हिन्दू कैलेंडर। हिन्दू पंचांग से हम तिथियों के बारे में पता करते है। हिन्दू धर्म पंचांग में साधारणतः 3 तरह के पंचांग होते है। यानी कि, दैनिक, मासिक और वार्षिक पंचांग। मासिक पंचांग यानी की एक माह में कुल 30 दिन होते है जिन्हें 2 पक्षों में बांटा गया है। जिनमें प्रत्येक पक्ष 15 – 15 दिनों के होते है। जो इस प्रकार है :
कृष्ण पक्ष – 1 से 14 दिन तथा “अमावस्या”
शुक्ल पक्ष – 1 से 14 दिन तथा “पूर्णिमा”
हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार, चन्द्रमा की कुल 16 कलाएं होती है और इन्हीं 16 कलाओं के कम या ज्यादा होने को ही कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष कहा जाता है।
वैदिक शास्त्र के अनुसार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का महत्व :
कृष्ण पक्ष : (Krishna Paksha)
हिन्दू काल गणना के अनुसार “पूर्णिमा” के बाद से और “अमावस्या” के मध्य वाले भाग अथवा दिनों को ही “कृष्ण पक्ष” (Krishna Paksha) कहा जाता है और इसलिए पूर्णिमा के बाद से 15 दिन कृष्ण पक्ष कहलाता है। यानी कि पूर्णिमा के बाद वाले दिन जिसे प्रतिपदा कहते है, प्रतिपदा से कृष्ण पक्ष की शुरुआत होती है जो अमावस्या वाले दिन तक रहती है, जो कुल 15 दिनों तक रहती है।
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कृष्ण पक्ष की तिथियां –
कृष्ण पक्ष की तिथियां “पूर्णिमा” के दूसरे दिन से शुरू होती है, जो इस प्रकार है :
- “प्रतिपदा”
- “द्वितीया”
- ”तृतीया”
- “चतुर्थी”
- “पंचमी”
- “षष्ठी”
- “सप्तमी”
- “अष्टमी”
- “नवमी”
- “दशमी”
- “एकादशी”
- “द्वादशी”
- “त्रयोदशी”
- “चतुर्दशी”
- “अमावस्या”
कृष्ण पक्ष में नहीं किए जाते हैं शुभ कार्य :
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, कृष्ण पक्ष के दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि, कृष्ण पक्ष के 15 दिनों तक चन्द्रमा की स्थिति कमजोर होती है। यानि की, जैसे जैसे चन्द्रमा की कलाएं घटती जाती है वैसे वैसे चन्द्रमा की रौशनी और आकार कम होती जाती है इसलिए कृष्ण पक्ष की रातें ज्यादा अंधकारमय होती है खास तौर से अमावस्या के दिन जिस दिन चन्द्रमा दिखलाई भी नहीं पड़ता। यही कारण है कि शुभ अथवा मांगलिक कार्यों के लिए कृष्ण पक्ष को शुभ नहीं माना जाता।
शुक्ल पक्ष : (Shukla Paksha)
हिन्दू काल गणना के अनुसार “अमावस्या” के बाद से और “पूर्णिमा” के मध्य वाले भाग अथवा दिनों को ही “शुक्ल पक्ष” (Shukla Paksha) कहा जाता है और इसलिए अमावस्या के बाद से 15 दिन शुक्ल पक्ष कहलाता है। अमावस्या के दूसरे दिन से ही चन्द्रमा के आकर में बढ़ोतरी होती है और काली अँधेरी रात में चन्द्रमा की चांदनी फैलने लगती है और 15वें दिन अर्थात पूर्णिमा के दिन चंद्र आकार में गोल और बहुत बड़ा हो जाता है जिससे की अँधेरी रात में भी चंद्र की किरणों से हल्का प्रकाश फैलता है।
शुक्ल पक्ष के दिनों में चन्द्रमा बलशाली तथा प्रकाशवान होता है तथा आकार में भी बड़ा होता है और इसी कारण “शुक्ल पक्ष” को “शुभ” माना जाता है तथा शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त भी माना जाता है। शुक्ल पक्ष को “चांदण पक्ष” के नाम से भी पुकारा जाता है।
शुक्ल पक्ष की तिथियां :
शुक्ल पक्ष की तिथियां “अमावस्या” के दूसरे दिन से शुरू होती है, जो इस प्रकार है :
- “प्रतिपदा”
- “द्वितीया”
- ”तृतीया”
- “चतुर्थी”
- “पंचमी”
- “षष्ठी”
- “सप्तमी”
- “अष्टमी”
- “नवमी”
- “दशमी”
- “एकादशी”
- “द्वादशी”
- “त्रयोदशी”
- “चतुर्दशी”
- “पूर्णिमा”
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष से जुड़ी कथाएं :
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दक्ष की 27 पुत्रियों का विवाह चंद्र देव से हुआ था। किन्तु, चंद्र देव अपनी 27 पत्नियों में से प्रेम सिर्फ देवी रोहिणी से ही करते थे। यह सब देख दक्ष की बाकि पुत्रियों ने अपने पिता प्रजापति दक्ष से इस बात की शिकायत कर दी और प्रजापति दक्ष ने चंद्र देव को क्षय रोग का श्राप दे दिया और उस रोग की पीड़ा सहते-सहते चंद्र देव के जीवन का अंतिम समय करीब आने लगा। इसी श्राप के चलते धीरे-धीरे चंद्रमा का तेज मध्यम होता गया और तभी से “कृष्ण पक्ष” की शुरुआत हुई। तब, चंद्र देव ने भगवान शिव की आराधना कर के भगवान शिव को प्रसन्न किया जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने चन्द्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया और शिव जी की कृपा से चंद्र देव का क्षय रोग समाप्त हो गया और “चन्द्रमा” का तेज वापस बढ़ने लगा तथा चंद्र देव को जीवन दान मिला। प्रजापति दक्ष के श्राप को मिटाया नहीं जा सकता था और इसीलिए चन्द्रमा को शुक्ल पक्ष में 1 से 14 दिन तथा “पूर्णिमा” के लिए ही आकार में बड़े तथा प्रकाशवान होने का वरदान मिला और इस तरह से ये 15 दिन शुक्ल पक्ष कहलाया और बाकि के 15 दिन कृष्ण पक्ष कहलाएं।
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Frequently Asked Questions
1. शुक्ल पक्ष कब होता है?
शुक्ल पक्ष अमावस्या के दूसरे दिन से लेकर पूर्णिमा तक होता है।
2. कृष्ण पक्ष कब होता है?
कृष्ण पक्ष पूर्णिमा के दूसरे दिन से लेकर अमावस्या तक होता है ।
3. शुक्ल पक्ष कितने दिनों तक का होता है?
शुक्ल पक्ष 15 दिनों का होता है।
4. कृष्ण पक्ष कितने दिनों तक का होता है?
कृष्ण पक्ष 15 दिनों का होता है।
5. कौन से पक्ष में चन्द्रमा अधिक बलशाली होता है?
शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा अधिक बलशाली होता है।
6. कौन से पक्ष में चन्द्रमा अपने कमजोर अवस्था में होता है?
कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा अपने कमजोर अवस्था में होता है।
7. शुक्ल पक्ष का दूसरा नाम क्या है?
शुक्ल पक्ष का दूसरा नाम “चांदण पक्ष” है ।