जन्म कुंडली में शनि की दृष्टियां और उनका आपके जीवन पर प्रभाव (Janam Kundali Me Shani Ki Drishtiya Aur Unka Aapke Jivan Par Prabhav)
वैदिक शास्त्र में प्रत्येक ग्रह का अपना एक अलग और विशेष स्थान है। प्रत्येक ग्रह जब जन्म कुंडली के किसी भी भाव में बैठता है तो उसकी अलग अलग दृष्टियां होती है साथ ही वो अलग अलग फल देने वाले भी होते है। आज हम जानेंगे जन्म कुंडली में उपस्थित शनि ग्रह और उनकी प्रभावी तीन दृष्टियां, साथ में जानेंगे शनि ग्रह के ये तीन दृष्टियां किस प्रकार जातक के जीवन पर अपना प्रभाव डालती है। तो, चलिए शुरू करते है :
शनि ग्रह अर्थात सूर्य पुत्र, जन्म कुंडली में किसी ही भाव पर बैठकर अपनी तीन दृष्टियां अर्थात तीसरी, सातवीं और दसवीं दृष्टियों के द्वारा जातक के जीवन पर प्रभाव डालते है। इन तीन दृष्टियों में से तीसरी दृष्टि को सबसे खतरनाक बताया गया है।
आइये जान लेते है कि जन्म कुंडली के अलग अलग भावों में बैठकर किस तरह से शनि ग्रह जातक के जीवन पर अपना प्रभाव डालते है :
प्रथम भाव में शनि : (Pratham Bhav Shani)
जन्मकुंडली में यदि शनि प्रथम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो, जातक गरीब होता है। जातक को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातक के किसी भी निर्णय में गंभीरता नहीं दिखती। इन्हें अकारण समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनका वैवाहिक जीवन भी सुखद नहीं होता। लेकिन यदि सकारात्मकता फैलाये तो जातक एक निर्धन परिवार में जन्म लेकर भी अपनी मंजिल तक पहुंचता है। ऐसे जातकों को स्वयं के मेहनत से सब कुछ प्राप्त होता है। प्रथम भाव में बैठकर शनि की तीन दृष्टि तीसरे, सातवें और दशवें भाव पड़े तो :
- प्रथम भाव में विराजित शनि की तृतीय भाव पर दृष्टि :
जन्म कुंडली के प्रथम भाव में शनि विराजित हो तो शनि की तृतीय दृष्टि कुंडली के तीसरे भाव पर पड़ती है तो जातक थोड़ा डरपोक किसम का होता है। जिस भी जातक के कुंडली के लग्न में शनि विराजित हों उनका उनके छोटे भाई बहनों के साथ नहीं बनती।
- प्रथम भाव में विराजित शनि की सप्तम भाव पर दृष्टि :
ऐसे जातकों को झूट बोलने से बचना चाहिए। ऐसे जातकों के वैवाहिक जीवन में थोड़ी मोड़ी नोक झोक लगी रहती है पर दोनों में प्रेम भी बना रहता है। इस स्थिति में जातक को एक लाभ होता है कि जातक को व्यापार से लाभ होता है।
- प्रथम भाव में विराजित शनि की दशम भाव पर दृष्टि :
लग्नेश शनि की दशम दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है यानि की कर्म भाव पर। इस स्थिति में जातक दिमागी रूप से तेज और मेहनती होता है।
द्वितीय भाव में शनि : (Dwitiya Bhav Shani)
जन्म कुंडली में यदि शनि द्वितीय भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो जातक का उसके ससुराल वालों के साथ अनबन बनी रहती है। जातक धन कमाने के लिए बहुत समस्याओं का सामना करता है। लेकिन द्वितीयेश शनि यदि सकारात्मकता फैलाये तो जातक अत्यंत धनवान और मान सम्मान प्राप्त करने वाला होता है। द्वितीय भाव में शनि बैठकर चतुर्थ भाव, अष्टम भाव और एकादश भाव को प्रभावित करता है।
- द्वितीय भाव में विराजित शनि की चतुर्थ भाव पर दृष्टि :
कुंडली के दूसरे भाव में विराजित शनि की तृत्य दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है तो ऐसा जातक का उसकी माँ के साथ किसी न किसी बात पर अनबन लगी रहती है साथ ही उसे समाज में अपनी पहचान बनने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
- द्वितीय भाव विराजित शनि की अष्टम भाव पर दृष्टि :
द्वितीयेश शनि की सप्तम दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ें तो ऐसे जातक को मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातक गुप्त ज्ञान या ज्योतिष के ज्ञाता होते है।
- द्वितीय भाव में विराजित शनि की एकादश भाव पर दृष्टि :
द्वितीयेश शनि की दशम दृष्टि जैम कुंडली के एकादश भाव पर पड़ती है। इससे जातक को जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, खास तौर से बचत करने में।
तृतीय भाव में शनि : (Tritiya Bhav Shani)
जन्मकुंडली में यदि शनि तृतीय भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो जातक का उसके छोटे भाई बहनों के साथ अनबन बनी रहती है। जातक मानसिक तौर पर परेशान रहता है। जातक को वाहन सावधानी पूर्वक चलानी चाहिए। कुंडली के तृतीय में शनि यदि सकारात्मकता फैलाये तो जातक को उसके भाई बहनों से धन लाभ और सहयोग प्राप्त होता है। तृतीय में बैठकर शनि की तीन दृष्टियां पंचम, नवम और द्वादश भाव पर पड़ती है।
- तृतीय भाव में विराजित शनि की पंचम भाव पर दृष्टि :
जन्म कुंडली के पंचम भाव पर यदि शनि ग्रह की तीसरी दृष्टि पड़ती है तो जातक को संतान जन्म से सम्बंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी जातक को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पर ऐसे जातक विज्ञान के क्षेत्र में आगे होते है।
- तृतीय भाव में विराजित शनि की नवम भाव पर दृष्टि :
तृतीय भाव में विराजित शनि की नवम पर दृष्टि होने से जातक धर्म के प्रति कट्टर होता है। लेकिन, शनि यदि शुभ या स्वयं की राशि में विराजित होकर नवम पर दृष्टि डाल रहा हो तो ऐसा जातक धर्म और मांगलिक क्रियाओं को करने वाला तथा धर्म की राह पर चलने वाला होता है।
- तृतीय भाव में विराजित शनि की द्वादश भाव पर दृष्टि :
कुंडली के तृतीय भाव में विराजित शनि की द्वादश भाव पर दृष्टि पड़ें तो ऐसा जातक विदेशों से जुड़ें कारोबार करता है। ऐसे जातकों को धन से जुड़ें मामलों में दिक्कतें उठानी पड़ती है।
चतुर्थ भाव में शनि : (Chaturth Bhav Shani)
जन्म कुंडली में यदि शनि चतुर्थ भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो जातक और उसका परिवार मांस और मदिरा का सेवन करने लग जाता है, जो की बहुत ही अनिष्टकारी सिद्ध होता है। जातक का उसके परिवार वालों के साथ अनबन बनी रहती है। यही शनि ग्रह अपनी शुभता फैलाये तो जातक समाज में मान सम्मान प्राप्त करने वाला होता है। यदि कुंडली में शनि ग्रह चतुर्थ भाव में है तो व्यक्ति गुस्सैल हो सकता है और माता के साथ भी संबंध खराब हो सकते हैं।
- चतुर्थ भाव में विराजित शनि की षष्ठम भाव पर दृष्टि :
चतुर्थ भाव में विराजित शनि की तृतीय दृष्टि षष्ठम पर पड़ने से जातक का स्वास्थ्य बिगड़ता है। ऐसे जातकों के गुप्त शत्रु अधिक होते है।
- चतुर्थ भाव में विराजित शनि की दशम भाव पर दृष्टि :
चतुर्थ में विराजित शनि की सप्तम दृष्टि जब दशम भाव पर पड़ती है तो जातक अपने कर्मों के प्रति निष्ठावान होता है। ऐसे जातक ईमानदार होते है।
- चतुर्थ भाव में विराजित शनि की प्रथम भाव पर दृष्टि :
चतुर्थ में विराजित शनि की दशम दृष्टि जब प्रथम भाव पर पड़ती है तो जातक थोड़ा गंभीर प्रकृति का होता है। लेकिन ये थोड़े आलसी स्वभाव के भी होते है।
पंचम भाव में शनि : (Pancham Bhav Shani)
जन्मकुंडली में यदि शनि पंचम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो जातक को 48वर्ष उम्र तक अपने घर का निर्माण नहीं करना चाहिए। जातक को अपने पुत्र के द्वारा निर्माण किये गए घर में ही रहना चाहिए। यदि शनि पंचम भाव में अपनी शुभता लिए हुए हो तो जातक जीवन में आने वाले हर एक समस्या का डटकर सामना करता है। पंचम भाव की शनि की दृष्टि कुंडली के सप्तम, एकादश और द्वितीय भाव पर पड़ती है।
- पंचम भाव में विराजित शनि की सप्तम भाव पर दृष्टि :
पंचम भाव में शनि बैठकर जब सप्तम पर अपनी दृष्टि डाल रहा हो तो जातक को उसके वैवाहिक तथा कारोबार में दिकत्तों का सामना करना पड़ता है।
- पंचम भाव में विराजित शनि की एकादश भाव पर दृष्टि :
पंचम भाव में शनि बैठकर जब एकादश पर अपनी दृष्टि डाल रहा हो तो जातक को लाभ तो करेगा पर ऐसा जातक अपने काम में लापरवाही और बेईमानी करेगा।
- पंचम भाव में विराजित शनि की द्वितीय भाव पर दृष्टि :
पंचम भाव पर विराजित शनि की दशम दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिसके कारण जातक को आर्थिक क्षेत्र से जुड़ें समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातक अपने मन की बात किसी के भी सामने नहीं रख पाते।
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षष्ठम भाव में शनि : (Shstham Bhav Shani)
जन्मकुंडली में यदि शनि षष्ठम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो जातक ऋण और रोगों से परेशान रहेगा। जातक को लोहे और चमड़े की चीजें खरीदना या व्यापार करना हानिकारक सिद्ध होगा। शनि यदि शुभ अवस्था में हो तो जातक अपने शत्रुओं को मात देने वाला होता है। षष्ठम भाव में शनि विराजित होकर आठवें, बारहवें और तीसरे भाव को देखता है।
- षष्ठम भाव में विराजित शनि की आठवें भाव पर दृष्टि :
षष्ठम अर्थात छठे भाव में शनि बैठकर अपनी तीसरी दृष्टि से कुंडली के आठवें भाव को देखता है जिसके कारण जातक के पास कई विषयों से जुड़ें गुप्त ज्ञान होता है। लेकिन इनके जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- षष्ठम भाव में विराजित शनि की बारहवें भाव पर दृष्टि :
कुंडली के षष्ठम भाव में शनि विराजित हो तो शनि की सप्तम दृष्टि बारहवें भाव पर पड़ती है जिसके कारण जातक को आर्थिक क्षेत्र में कई परेशानियां उठानी पड़ती है पर ऐसे जातक विदेशों तक अपने कारोबार को बढ़ाते है।
- षष्ठम भाव में विराजित शनि की तृतीय भाव पर दृष्टि :
कुंडली के षष्ठम भाव में शनि बैठकर अपनी दसवीं दृष्टि से कुंडली के तीसरे भाव को देखता है जिसके कारण जातक में हिम्मत और मेहनत की कमी पाई जाती है। इसके अलावा इनका, इनके भाई बहनों के साथ नहीं बनती।
सप्तम भाव में शनि : (Saptam Bhav Shani)
जन्म कुंडली में यदि शनि सप्तम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो जातक का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं होता। जातक के शराब पीने से शनि और भी कमजोर होकर बुरे फल देने लगता है। जातक का व्यापार भी सही नहीं चलता। यदि शनि अपनी शुभता फैला रहा हो तो जातक और उसके जीवनसाथी के बीच एक मजबूत प्रेम भरा रिश्ता होता है।
- सप्तम भाव में विराजित शनि की नवम भाव पर दृष्टि :
सप्तम भाव में विराजित शनि की दृष्टि जब नवम भाव पर पड़ती है तो जातक धार्मिक कार्यों से जुड़ा होता है। ऐसे जातक तीर्थ यात्रा अधिक करते है।
- सप्तम भाव में विराजित शनि की प्रथम भाव पर दृष्टि :
सप्तम भाव में विराजित शनि की दृष्टि जब प्रथम भाव पर पड़ती है तो जातक गंभीर स्वभाव का होता है साथ ही ये थोड़े आलसी भी होते है।
- सप्तम भाव में विराजित शनि की चतुर्थ भाव पर दृष्टि :
सप्तम भाव में विराजित शनि की दशम दृष्टि जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में पड़े तो जातक और और उसके माँ के बिच में अनबन होती रहती है। जातक को कोई भी सुख सुविधा पाने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
अष्टम भाव में शनि : (Ashtam Bhav Shani)
जन्म कुंडली में यदि शनि अष्टम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो जातक के पिता की आयु कम होती है और जातक की आयु लम्बी होती है। जातक स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं से परेशान रहता है। शनि यदि शुभ अवस्था में हो तो जातक को ज्योतिष सम्बंधित ज्ञान होता है। अष्टम भाव में शनि बैठकर दशम भाव, द्वितीय भाव और पंचम भाव को प्रभावित करता है।
- अष्टम भाव में विराजित शनि की दशम भाव पर दृष्टि :
शनि अष्टम भाव में बैठकर जब दशम भाव पर दृष्टि डालता है तो जातक प्रशासनिक क्षेत्र में कार्य करने वाला होता है। इन्हे धन से सम्बंधित परेशानी उठानी पड़ती है।
- अष्टम भाव में विराजित शनि की द्वितीय भाव पर दृष्टि :
अष्टम भाव में विराजित शनि की दृष्टि जब जन्म कुंडली के द्वितीय भाव पर पड़ती है जिसके कारण जातक को आर्थिक क्षेत्र से जुड़ें समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातक अपने मन की बात किसी के भी सामने नहीं रख पाते।
- अष्टम भाव में विराजित शनि की पंचम भाव पर दृष्टि :
अष्टम भाव में विराजित शनि की पंचम भाव पर दृष्टि पड़ें तो जातक को संतान जन्म से सम्बंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी जातक को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पर ऐसे जातक विज्ञान के क्षेत्र में आगे होते है।
नवम भाव में शनि : (Navam Bhav Shani)
जन्म कुंडली में यदि शनि नवम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो जातक ईश्वर को न मानने वाला होता है। नवम भाव में शनि यदि शुभता लिए हो तो जातक धर्म को मानने वाला होता है। नवम में बैठकर शनि जन्म कुंडली के एकादश भाव, तृतीय भाव और षष्ठम भाव को प्रभावित करता है।
- नवम भाव में विराजित शनि की पंचम भाव पर दृष्टि :
नवम भाव में विराजित शनि की पंचम भाव पर दृष्टि पड़ने पर जातक इंजीनियरिंग क्षेत्र से जुड़ा होता है। ऐसे जातकों को ज्ञान अर्जित करने में कई समस्या उठाने पड़ते है।
- नवम भाव में विराजित शनि की तृतीय भाव पर दृष्टि :
नवम भाव में विराजित शनि की दृष्टि जब तृतीय भाव पर पड़ती है तो जातक में हिम्मत और मेहनत की कमी और आलस्य ज्यादा पाई जाती है। इसके अलावा इनका इनके भाई बहनों के साथ नहीं बनती।
- नवम भाव में विराजित शनि की षष्ठम भाव पर दृष्टि :
नवम भाव में विराजित शनि की दृष्टि जब षष्ठम भाव पर पड़ती है तो जातक शत्रुहंता होता है। ऐसे जातक कोई न कोई गुप्त रोग से भी ग्रसित होते है।
दशम भाव में शनि : (Dasham Bhav Shani)
जन्मकुंडली में यदि शनि दशम भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो जातक कितना भी ज्ञानी या विद्यावान क्यों न हो जातक को रोजगार से सम्बंधित समस्याएँ उठानी पड़ती हैऔर यदि दशम भाव में शनि शुभ अवस्था में हो तो जातक सरकारी क्षेत्र में कार्य करने वाला होता है। दशम भाव में बैठकर शनि जन्म कुंडली के द्वादश भाव, चतुर्थ भाव तथा सप्तम भाव पर प्रभाव डालता है।
- दशम भाव में विराजित शनि की द्वादश भाव पर दृष्टि :
दशम भाव में विराजित शनि की द्वादश भाव पर दृष्टि होने से जातक विदेशों से धन कमाता है पर ऐसे जातक को रोजगार और धन से सम्बंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- दशम भाव में विराजित शनि की चतुर्थ भाव पर दृष्टि :
दशम भाव में विराजित शनि की चतुर्थ भाव पर दृष्टि पड़ने पर जातक के घर परिवार में अनबन बनी रहती है। इसके अलावा जातक के खर्चें उसके आय से ज्यादा होता है।
- दशम भाव में विराजित शनि की सप्तम भाव पर दृष्टि :
दशम भाव में विराजित शनि की सप्तम भाव पर दृष्टि होने से जातक के वैवाहिक जीवन में कई समस्याएँ आती है। ऐसे जातकों को व्यापारिक साझेदारी में भी समस्याएं उठानी पड़ती है।
शनि एकादश भाव में : (Ekadash Bhav Shani)
जन्म कुंडली में यदि शनि एकादश भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो जातक छल या लॉटरी से धन कमाता है। जातक को मित्रों से धोखा मिलता है। यदि शनि एकादश भाव में शुभता लिए हुए हो तो जातक के भाई बहन उसके मित्र उसकी मदद करने वाले होते है। एकादश भाव में विराजित शनि ग्रह प्रथम भाव, पंचम भाव और अष्टम भाव पर अपना प्रभाव डालता है।
- एकादश भाव में विराजित शनि की प्रथम भाव पर दृष्टि :
एकादश भाव भाव में विराजित शनि की प्रथम भाव पर दृष्टि होने से जातक खुद पर यकीन करने वाला बहुत ही गंभीर स्वभाव का होता है। ये मानसिक रूप से अधिकतर परेशान ही रहते है।
- एकादश भाव में विराजित शनि की पंचम भाव पर दृष्टि :
एकादश भाव में विराजित शनि की चतुर्थ भाव पर दृष्टि हो तो जातक के प्रेम संबंधों में अलगाव की स्थिति उत्पन्न होती है। इसके अलावा ऐसे जातकों को संतान जन्म से सम्बंधित समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
- एकादश भाव में विराजित शनि की अष्टम भाव पर दृष्टि :
एकादश भाव में विराजित शनि की अष्टम भाव पर दृष्टि हो तो जातक की आयु लम्बी होती है। ये व्यर्थ के कामों में अपना समय नष्ट करते है। ऐसे जातक गुप्त रोग के भी शिकार हो जाते है।
द्वादश भाव में शनि : (Dwadash Bhav Shani)
जन्म कुंडली में यदि शनि एकादश भाव में बैठ जाए और अपनी नकारात्मकता फैलाये तो जातक व्यापार या साझेदारी में लगातार हानियों का सामना करता है। द्वादश भाव में शनि यदि शुभ स्थिति में हो तो जातक विदेशों से लाभ प्राप्त करता है। ऐसे लोग आराम करना और सोना ज्यादा पसंद करते है। द्वादश भाव में शनि ग्रह द्वितीय भाव, षष्ठम भाव और नवम भाव को प्रभावित करता है।
- द्वादश भाव में विराजित शनि की द्वितीय भाव पर दृष्टि :
द्वादश भाव में विराजित शनि की द्वितीय भाव पर दृष्टि होने से जातक परिवार से संबंधित दिक्कतों का सामना करता है। द्वितीय भाव पर दृष्टि होने के कारण जातक का उसके वाणी पर नियंत्रण नहीं रहता। जातक का हमेशा उसके घर वालों के साथ अनबन बनी रहती है।
- द्वादश भाव में विराजित शनि की षष्ठम भाव पर दृष्टि :
द्वादश भाव में विराजित शनि की षष्ठम भाव पर दृष्टि होने से जातक के बहुत सारे दुश्मन होते है। ऐसे जातकों को कोई न कोई बीमारी जरूर होती है। ये हमेशा मानसिक चिंता से घिरे रहते है।
- द्वादश भाव में विराजित शनि की नवम भाव पर दृष्टि :
द्वादश भाव में विराजित शनि की नवम भाव पर दृष्टि होने पर जातक को न भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है न इंसानों का। ऐसे लोग धर्म को लेकर इतने कट्टर होते है है कि क्रूर बन जाते है। इन्हें गुस्सा जल्दी आता है।
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Frequently Asked Questions
1.शनि ग्रह का बीज मंत्र क्या है ?
शनि ग्रह का बीज मंत्र है – ।। ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।
2.शनि के टोटके तथा उपायों को किस दिन करना चाहिए ?
शनि के टोटके तथा उपायों को शनिवार के दिन करना चाहिए।
3. शनि ग्रह का बीज मंत्र क्या है ?
शनि ग्रह का बीज मंत्र है – ।। ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।
4. शनि ग्रह की कुल कितनी दृष्टियां होती है ?
शनि ग्रह की कुल 3 दृष्टियां होती है।
5. शनि देव की कौन सी दृष्टि सबसे ज्यादा खतरनाक होती है ?
शनि देव की तीसरी दृष्टि सबसे ज्यादा खतरनाक होती है।
6. भगवान शनि देव किसके पुत्र है ?
भगवान शनि देव सूर्य देव के पुत्र है।
7. छाया पुत्र किस ग्रह को कहा जाता है ?
छाया पुत्र शनि देव को कहा जाता है।