महाभारत का युद्ध और युद्ध के 18 दिन (Mahabharat Ka Yuddh Aur Yuddh Ke 18 Din)
सनातन धर्म में बहुत सारे ग्रन्थ है जिनमें से एक है महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित “महाभारत“। अपने धर्म, संस्कृति और ग्रंथो के बारे में कौन नहीं जानता और महाभारत के युद्ध के बारे में भी सब जानते है पर क्या आप जानते है कि महाभारत का युद्ध पूरे 18 दिनों तक चला था। महाभारत का युद्ध “मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष की 14वीं तिथि” को आरम्भ हुआ था। अब, हम आपको बतलायेंगे कि, प्रत्येक दिन के अनुसार महाभारत के युद्ध के 18 दिनों में क्या-क्या हुआ?
आइये शुरू करते है :
महाभारत युद्ध का पहला दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Pahla Din)
महाभारत युद्ध के पहले दिन, पांडवों तथा उनकी सेना को भारी हानि का सामना करना पड़ा। जहाँ एक तरफ विराट नरेश के सुपुत्र “उत्तर” को शल्य ने मार डाला वहीँ दूसरी तरफ “श्वेत” को गंगा पुत्र भीष्म ने मार डाला। पांडवों के कई सैनिक भीष्म के हांथो मारे गए। इस युद्ध का पहला दिन कौरवों के लिए उत्साहपूर्ण और पांडवों के लिए काफी दुखद था।
महाभारत युद्ध का दूसरा दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Dusara Din)
महाभारत युद्ध के दूसरे दिन, पांडवों तथा उनकी सेना को अधिक नुक्सान का सामना नहीं करना पड़ा। धृष्टद्युम्न को गुरु द्रोणाचार्य ने कई बार हराया तथा भीष्म ने भी अर्जुन को कई बार घायल किया परन्तु अर्जुन ने भीष्म को युद्ध में रोक कर रखा था ताकि भीष्म पांडवों की सेना का अंत न कर दें। गदाधारी भीम ने अकेले ही कई ‘कलिंग तथा निषाद’ को मार गिराया।
महाभारत युद्ध का तीसरा दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Tisara Din)
महाभारत यूद्ध के तीसरे दिन, गदाधारी भीम ने अपने पुत्र घटोत्कच के साथ मिलकर दुर्योधन की समस्त सेना को युद्ध में पीछे खदेड़ दिया पर दुर्योधन की सेना से भीष्म पांडवों की सेना के बहुत से योद्धाओं का वध कर देते है। प्रभु श्री कृष्ण, अर्जुन को भीष्म का वध करने को कहते है लेकिन अर्जुन, भीष्म को पितामह मानते थे और इसलिए वो उनका वध नहीं करना चाहते थे और इस कारण वो हतोत्साहित हो जाते है पर श्री कृष्ण के दिए गए ज्ञान के कारण अर्जुन, श्री कृष्ण को विश्वास दिलाते है की अब वो पूरी शक्ति के साथ युद्ध लड़ेंगे ।
महाभारत युद्ध का चौथा दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Choutha Din)
महाभारत यूद्ध के चौथे दिन, कौरव तथा उनकी सेना अर्जुन को रोक पाने में असमर्थ थी। गदाधारी भीम ने अकेले ही कुरुक्षेत्र में कौरव सेना के कई योद्धाओं का वध कर दिया । दुर्योधन ने भीम को मारने के लिए अपनी गजसेना भेजी लेकिन भीम और घटोत्कच ने गजसेना का अंत कर दिया। इस दिन भीष्म का भीम और अर्जुन के साथ भयंकर युद्ध हुआ।
महाभारत युद्ध का पाँचवा दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Panchwa Din)
महाभारत यूद्ध के पाँचवें दिन, भीष्म ने पांडवों की सेना के बिच खलबली मचा दी। पाँचवे दिन, भीष्म को रोक कर रखने के लिए भीम और अर्जुन ने भीष्म से युद्ध किया ताकि उनकी सेना बच सके। गुरु द्रोणाचार्य को सात्यकि ने रोक रखा था परन्तु भीष्म ने सात्यकि को युद्ध से भागने के लिए मजबूर कर दिया।
महाभारत युद्ध का छठा दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Chhtha Din)
महाभारत युद्ध के छठवें दिन, कौरव सेना तथा पांडव सेना के बिच भयंकर युद्ध हुवा। यह देख दुर्योधन क्रोधित हो उठता था पर भीष्म उसे आश्वासन देते गए और “पाँचाल सेना” का वध कर दिए।
महाभारत युद्ध का सातवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Saatwa Din)
महाभारत युद्ध के सातवें दिन, अर्जुन कौरवों की सेना पर भारी पड़ जाता है। इस दिन राजा विराट का पुत्र “शंख” मारा जाता है। इस दिन दुर्योधन, धृष्टद्युम्न से हार जाता है तथा अर्जुन पुत्र इरावन से ‘विन्द और अनुविन्द’ हार जाते है। भीष्म पांडव सेना का संहार बहुत तेजी से करने लगते है पर सूर्यास्त हो जाने के कारण युद्ध रोक दी जाती है ।
महाभारत युद्ध का आठवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Aathwa Din)
महाभारत युद्ध के आठवें दिन, भीष्म पिछले दिन के तरह ही पांडव सेना का संहार शुरू कर देते है। गदाधारी भीम, धृतराष्ट्र के 8 पुत्रों का वध कर देते है। अर्जुन पुत्र इरावन का वध ‘असुर अम्बलुष’ के हाथों होता है। भीम का पुत्र घटोत्कच अपनी मायाबी शक्तियों से दुर्योधन को प्रताड़ित करता है तब भीष्म की आज्ञा पाकर भगदत्त, घटोत्कच, युधिष्ठिर, भीम और अन्य पांडव सेना को पीछे धकेल देता है पर आठवें दिन के अंत तक भीम धृतराष्ट्र के और नौ पुत्रों का वध कर देता है।
महाभारत युद्ध का नौवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Nouwa Din)
महाभारत युद्ध के नौवें दिन, दुर्योधन युद्ध में “कर्ण” को लाने के लिए भीष्म को आज्ञा देता है पर भीष्म उसे यह आश्वासन देते है की अगले दिन वो या तो प्रभु श्री कृष्ण को शस्त्र उठाने के लिए मजबूर कर देंगे या फिर किसी एक पांडव का वध कर देंगे। इस दिन प्रभु श्री कृष्ण, भीष्म को रोकने के लिए रथ का पहिया उठा लेते है पर अर्जुन उनके पाँव पकड़ लेते है और उन्हें उनकी प्रतिज्ञा याद दिलाते है कि “प्रभु श्री कृष्ण ने युद्ध में शस्त्र न उठाने का प्रण लिया था” और इस दिन के अंत तक भीष्म अधिकाँश पांडव सेना का वध कर देते है।
महाभारत युद्ध का दसवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Dashwa Din)
महाभारत युद्ध के दसवें दिन, ‘शिखंडी’ को सामने रखकर अर्जुन ने अनगिनत तीर भीष्म पर चलाएं जिससे भीष्म अपने रथ से गिर पड़े पर अर्जुन ने अपने वाणों से भीष्म के लिए वाणों की एक सैय्या बना डाली जिसपर भीष्म पितामह सोये थे। भीष्म की मृत्यु को लेकर दोनों ही पक्षों में निराशा फ़ैल गई। इस दिन कौरवों ने ‘शतानीक’ का वध कर दिया जिससे पांडव सेना में अशांति फ़ैल गई।
महाभारत युद्ध का ग्याहरवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Gyaarahwa Din)
महाभारत युद्ध के ग्याहरवें दिन, युद्ध स्थल पर “कर्ण” आ जाता है। कर्ण के कहने पर गुरु द्रोणाचार्य को कौरवों का सेनापति बनाया जाता है। शकुनि और दुर्योधन, युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए गुरु द्रोणाचार्य से कहते है, ताकि युद्ध समाप्त हो जाए लेकिन, अर्जुन दुर्योधन की यह योजना सफल नहीं होने देते। इस दिन कर्ण, पांडव सेना की बहुत बड़े अंश का वध करता है।
महाभारत युद्ध का बारहवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Barahwa Din)
महाभारत युद्ध के बारहवें दिन, दुर्योधन और शकुनि युधिष्ठिर से अर्जुन को दूर करने में कामयाब हो जाते है जिससे की अर्जुन ‘त्रिगर्त देश’ के ‘राजा सुशर्मा’ के साथ युद्ध में व्यस्त हो जाता है और राजा सुशर्मा का वध कर अर्जुन युधिष्ठिर के तरफ वापस आने लगता है। इस दिन द्रोणाचार्य युधिष्ठिर के रक्षक सत्यजीत का वध कर देते है।
महाभारत युद्ध का तेरहवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Terahwa Din)
महाभारत युद्ध के तेरहवें दिन, दुर्योधन की आज्ञा पाकर ‘राजा भगदत्त’, अर्जुन से युद्ध करता है। पहले तो भगदत्त, भीम को हारता है फिर अर्जुन से युद्ध करता है। प्रभु श्री कृष्ण, भगदत्त का ‘वैष्णवास्त्र’ को अपने ऊपर ले लेते है और अर्जुन के प्राणों की रक्षा करते है। भगदत्त के आँखों की पट्टी को अर्जुन तोड़ देता है जिससे की भगदत्त को दिखना बंद हो जाता है और तब अर्जुन उसका वध कर देता है। इस दिन अर्जुन “त्रिगर्तों और संसप्तकों” के साथ कुरुक्षेत्र से दूर युद्ध लड़ रहा था। द्रोणाचार्य चक्रव्यूह रचते है पर उसे तोडना सिर्फ अर्जुन ही जानता था। अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह के अंदर सिर्फ प्रवेश करना जानता था उससे तोड़कर बाहर निकलना नहीं। चक्रव्यूह के द्वार पर जयद्रथ खड़ा रहता है और उसे भगवान शिव से वरदान प्राप्त था की “अर्जुन को छोड़ कर कोई भी पांडव उसे मार नहीं सकता” इसलिए जयद्रथ के द्वार पर खड़े होने के कारण चक्रव्यूह के अंदर कोई भी प्रवेश नहीं कर सका। सिर्फ अभिमन्यु ही चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश कर पाया और कौरवों के साथ अकेले ही युद्ध करता है और कौरवों के हाथों मारा जाता है। जब अर्जुन युद्ध करके वापस आता है और अभिमन्यु के मारे जाने की बात सुनता है तब वो यह प्रण लेता है कि “यदि अगले दिन वो जयद्रथ का वध करेगा और यदि ये संभव न हो सका तो अग्नि में समाधि ले लेगा”।
महाभारत युद्ध का चौदहवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Choudhwa Din)
महाभारत युद्ध के चौदहवें दिन, अर्जुन के प्रण और अग्नि समाधि वाली बात को सुनकर कौरव प्रसन्न हो जाते है और जयद्रथ को छिपाने में लग जाते है। द्रोणाचार्य जयद्रथ को अर्जुन से बचाने के लिए उसे कौरव सेना में सबसे पीछे छिपा देते है, और यह योजना बनाते है की सूर्यास्त के बाद ही जयद्रथ सबके सामने आये पर प्रभु श्री कृष्ण ने दिन में ही अपनी माया के द्वारा सूर्यास्त कर दिया जिससे की जयद्रथ अपने गुप्त स्थान से बाहर निकल आया और अर्जुन ने उसका वध कर दिया। इसी दिन द्रोणाचार्य विराट और द्रुपद का वध कर देते है ।
महाभारत युद्ध का पंद्रहवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Pandrahwa Din)
महाभारत युद्ध के पंद्रहवें दिन, पांडव अपने छल के द्वारा द्रोणाचार्य को यह भरोसा दिला देते है की द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु हो चुकी है और इससे दुखी होकर द्रोणाचार्य समाधि ले लेते है और धृष्टद्युम्न, गुरु द्रोणाचार्य का सिर काट देता है।
महाभारत युद्ध का सोलहवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Solahwa Din)
महाभारत युद्ध के सोलहवें दिन, कौरवों का सेनापति कर्ण को बनाया जाता है। इस दिन कर्ण, पांडव सेना का भयंकर रूप से वध करता है। नकुल और सहदेव भी कर्ण के सामने हार जाते है लेकि माता कुंती को दिए गए वचन के कारण कर्ण, नकुल और सहदेव नहीं मारता। इस दिन अर्जुन ‘संसप्तकों’ से युद्ध करने में व्यस्त रहा।
महाभारत युद्ध का सत्रहवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Satrahwa Din)
महाभारत युद्ध के सत्रहवें दिन, गदाधारी भीम ने दुशासन का वध कर दिया और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार, दुशासन की छाती फाड़ कर उसका रक्त पिने लगा। इस दिन कर्ण भी युधिष्ठिर पर आक्रमण करता है और उन्हें हरा देता है पर माता कुंती को दिए गए वचन के कारण कर्ण युधिष्ठिर को नहीं मारता। जब युद्ध में कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धंस जाता है और जब कर्ण अपने रथ का पहिया भूमि से बाहर निकालने लग जाता है तब प्रभु श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन कर्ण पर वाण चलाता है और कर्ण का वध कर देता है।
महाभारत युद्ध का अठाहरवां दिन : (Mahabharat Yuddh Ka Athrahwa Din)
महाभारत युद्ध के अठाहरवें दिन, भीम दुर्योधन के बचे हुए सारे भाइयों का वध कर देता है। इस दिन सहदेव, शकुनि का वध कर देता है। युद्ध के दौरान दुर्योधन युद्ध स्थल के पास एक तालाब में जाकर छिप जाता है पर पांडवों के द्वारा युद्ध के लिए ललकारे जाने पर दुर्योधन भीम से गदा युद्ध करता है जिसमे भीम दुर्योधन को हरा कर उसका वध कर देते है और पांडवों की विजय होती है।
Frequently Asked Questions
1. महाभारत में अर्जुन के सारथी कौन था?
महाभारत में अर्जुन के सारथी भगवान श्री कृष्ण थे ।
2. महाभारत में दुशासन का वध किसने किया था ?
महाभारत में दुशासन का वध गदाधारी भीष्म ने किया था।
3. महाभारत में जयद्रथ का वध किसने किया था ?
महाभारत में जयद्रथ का वध अर्जुन ने किया था।
4. महाभारत में द्रोणाचार्य का वध किसने किया था ?
महाभारत में द्रोणाचार्य का वध धृष्टद्युम्न ने किया था।