महामृत्युंजय मंत्र : जानिए मृत्यु को टालने वाले मंत्र की रचना की कथा (Mahamrityunjay Mantra : Janiye Mrityu Ko Talne Wale ki Rachna Ki katha)
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjay Mantra) बहुत ही चमत्कारी और शक्तिशाली मंत्र है। कहते है कि, महामृत्युंजय मंत्र के जाप से काल अर्थात मृत्यु का संकट भी टल जाता है। भगवान शिव का ये चमत्कारी मंत्र हर विपदा को शीघ्र ही टाल देता है। आइये जान लेते है महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे और किसके द्वारा हुई :
हिन्दू धर्म में भगवान शिव की पूजा-आराधना और उनके मंत्रों के जाप का एक अलग विशेष महत्व माना गया है। हिन्दू धर्म के समस्त देवों में भगवान शिव को “आदिनाथ” अर्थात सबसे पुरातन और सबसे उच्च का स्थान प्राप्त है। भगवान शिव का दूसरा नाम “महाकाल” भी है अर्थात जो कालों के काल है या आप ये कह सकते है काल भी जिसे नमन करे वो महाकाल है। मान्यता है कि भगवान शिव की कृपा अगर आप पर हो जाए तो काल भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।
वैदिक धर्म शास्त्रों में भगवान शिव के कई चमत्कारी मंत्रों का उल्लेख किया गया हैं। भगवान शिव के अनेकों मन्त्रों में से एक है “महामृत्युंजय मंत्र“। यह मंत्र ऊर्जावान और बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है।
मान्यता अनुसार, “महामृत्युंजय मंत्र” का जाप यदि एक निश्चित संख्या में किया जाता है तो बड़े से बड़ा असाध्य रोग भी खत्म हो जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस मंत्र के जाप से अकाल मृत्यु अर्थात मृत्यु का संकट भी टल जाता है। यदि किसी की जन्म कुंडली में अकाल मृत्यु का दुर्योग बन रहा हो, तो उसके लिए “महामृत्युंजय मंत्र” के जाप का उपाय बताया गया है। इतना ही नहीं इस मंत्र के जाप से मनुष्य की आयु लंबी होती है। खास तौर से सावन के महीने में “महामृत्युंजय मंत्र” का जाप करना बहुत ही शुभ फलदायी होता है। जो व्यक्ति “महामृत्युंजय मंत्र” का जाप करता है भगवान शिव की कृपा से यमराज भी उस व्यक्ति को कोई कष्ट नहीं देते।
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आइए जान लेते हैं कि महामृत्युंजय मंत्र को क्यों माना गया है इतना प्रभावशाली और इस महा मंत्र के रचना की कथा के बारे में :
एक बार की बात है, भगवान शिव के एक अन्य भक्त थे ऋषि मृकण्डु। ऋषि मृकण्डु भगवान शिव की सच्ची भक्ति करते थे इसलिए शिव जी की कृपा से उनके पास सारी सुख सुविधाएं थी परन्तु उनकी कोई संतान नहीं थी इसलिए संतान प्राप्ति के उद्देश्य से ऋषि मृकण्डु ने लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की। अपने भक्त ऋषि मृकण्डु की सच्ची तपस्या देख भगवान शिव ने प्रसन्न होकर ऋषि मृकण्डु को संतान प्राप्ति का वरदान दिया किंतु भगवान शिव ने ऋषि मृकण्डु को पहले से ही यह बता दिया था कि ऋषि मृकण्डु का पुत्र अल्पायु होगा। कुछ समय बाद , शिव जी के आशीर्वाद से ऋषि मृकण्डु को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र के जन्म के बाद, कई ऋषियों ने ऋषि मृकण्डु को बताया कि आपके संतान की आयु केवल 16 वर्ष की ही होगी। ऋषियों की बाते सुनकर ऋषि मृकण्डु दुख और चिंता से घिर गए।
जब ऋषि मृकण्डु की पत्नी ने अपने पति को दुख और चिंता से घिरा हुआ पाया तो उन्होंने उनके दुःख का कारण पूछा तब ऋषि मृकण्डु ने सारी बात अपनी पत्नी से बता दी। यह सब सुन ऋषि मृकण्डु की पत्नी ने कहा कि “अगर भगवान शिव जी की कृपा होगी, तो वो ये विपदा भी वे टाल देंगे।” ऋषि मृकण्डु ने अपने पुत्र का नाम “मार्कण्डेय” रखा और उन्होंने अपने पुत्र मार्कण्डेय को शिव मंत्र भी दिया। मार्कण्डेय सदैव ही भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते थे। कुछ समय बाद मार्कण्डेय बड़े हुए और तब ऋषि मृकण्डु ने अपने पुत्र मार्कण्डेय को अल्पायु की बात बताई। साथ ही ऋषि मृकण्डु ने कहा कि यदि भगवान शिव चाहेंगे तो इस विपदा को भी टाल देंगे।
अपने माता-पिता की बात सुनकर मार्कण्डेय को चिंता होने लगी की उन्हें यदि कुछ हो जाएगा तो उनके माता पिता को कौन देखेगा यही सब सोच के मार्कण्डेय ने शिव जी से दीर्घायु प्राप्त करने का वरदान पाने के लिए भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी। तब मार्कण्डेय ने भगवान शिव की आराधना के लिए “महामृत्युंजय मंत्र” की रचना की और भगवान शिव के मंदिर में बैठ कर “महामृत्युंजय मंत्र” का अखंड जाप करने लगे।
“महामृत्युंजय मंत्र” इस प्रकार है :
।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
जिस दिन मार्कण्डेय जी की आयु पूर्ण हुई उस दिन उनके प्राण लेने के लिए यमदूत आये किन्तु उस समय भी मार्कण्डेय जी भगवान शिव की कठोर तपस्या में लीन थे। यह सब देख यमदूत वापस यमराज जी के पास गए और उन्हें पूरी बात बताई। तब, मार्कण्डेय के प्राण हरने के लिए यमराज जी स्वयं मार्कण्डेय के पास आये। जैसे ही, यमराज जी ने मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिए उन पर अपना पाश डाला, वैसे ही बालक मार्कण्डेय शिवलिंग से लिपट गए और ऐसे में गलती से पाश शिवलिंग पर जा गिरा। यमराज की इस आक्रामकता को देख भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे और अपने भक्त मार्कण्डेय की रक्षा हेतु भगवान शिव, यम देव के सामने प्रकट हो गए, तब यम देव ने भगवान शिव को विधि के विधान की याद दिलाई किंतु भगवान शिव ने बालक मार्कण्डेय को दीर्घायु का वरदान देकर विधि का विधान ही बदल दिया।
और, इस तरह बालक मार्कण्डेय ने भगवान शिव शंकर की कठोर भक्ति और तपस्या में लीन रहते हुए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और भगवान शिव ने यम देव से अपने भक्त मार्कण्डेय के प्राणों की रक्षा की और इसलिए, महामृत्युंजय मंत्र को अकाल मृत्यु टालने वाला मंत्र भी कहा जाता है।
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Frequently Asked Questions
1. महामृत्युंजय मंत्र की रचना किसने की थी ?
महामृत्युंजय मंत्र की रचना ऋषि मार्कण्डेय ने की थी।
2. मार्कण्डेय ऋषि के पिता का क्या नाम था?
मार्कण्डेय ऋषि के पिता का नाम ऋषि मृकण्डु था।
3. महामृत्युंजय मंत्र द्वारा किस भगवान की स्तुति की जाती है ?
महामृत्युंजय मंत्र द्वारा भगवान शिव की स्तुति की जाती है।
4. किस मंत्र को अकाल मृत्यु टालने वाला मंत्र कहा जाता है?
महामृत्युंजय मंत्र को अकाल मृत्यु टालने वाला मंत्र कहा जाता है।