रावण – रचित शिव तांडव स्तोत्र का हिंदी अनुवाद (Ravan – Rachit Shiv Tandav Strotra Ka Hindi Anuwad) | Free PDF Download
||जटाटवीग लज्जलप्रवाहपावितस्थले||
||गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्||
||डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं||
||चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम||
अर्थात : घने जटामंडल रूपी “वन” (अटवी) से प्रवाहित होकर “माता गंगा” की पवित्र जल की धाराएं भगवान शिव के पवित्र कंठ स्थल को प्रक्षालित करती है तथा जिस भोले भंडारी के गले में बड़े तथा लम्बें सर्पों की मालायें लटकी रहती है, जो भगवान शिव अपने डमरू को डम-डम बजाकर तांडव नृत्य करते है वो भगवान शिव हमारा “कल्याण” करें ।
||जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी||
||विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि||
||धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके||
||किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं||
अर्थात : जटारूपी तथा कटाह रूपी “जटाओं” से अतिवेग से गमन करती देवनदी माता गंगा जी की चंचल तरंग भरी लहरे भगवान “शिव” के मस्तिष्क पर लहरा रही है तथा भगवान शिव के मस्तिष्क पर अग्नि देव की प्रचंड ज्वालायें धधक कर जोरों से प्रज्वलित हो रहीं है तथा बाल “चन्द्रमा”, भगवान शिव के मस्तक पर सुशोभित है, इस रूप वाले शिव जी में मेरा अनुराग हर क्षण बढ़ता ही जा रहा है।
||धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर||
||स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे||
||कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि||
||कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि||
अर्थात : गिरिराज किशोरी (माता पार्वती) के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परम सुख विभोर “महादेव” तथा जिनकी कृपा-दृष्टि से भक्तों के बड़े से बड़ा दुःख तथा विपत्ति भी टल जाती है तथा जिनका “वस्त्र” ये समस्त “दिशाएं” है – दिगंबर महादेव की आराधना में मेरा मन भी आनंदित हो।
||जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा||
||कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे||
||मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे||
||मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि||
अर्थात : जिनके जटाओं में लिपटे हुए “सर्प” (भुजंग) के फण के “मणियों” के प्रकाश-मान पिली –प्रभा– समूह रूप “केसर” की कान्ति से दिशा बंधुओं के मुख मंडल को प्रज्वलित (चमकाने) वाले, मतवाले तथा “गजासुर” के चर्मरूपी उत्तरीय वस्त्र से विभूषित तथा प्राणियों के रक्षक “भगवान शिव” जी में मेरा चित्त विनोद को प्राप्त करे।
||सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर||
||प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः||
||भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः||
||श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः||
अर्थात : जिनकी चरण पादुका – “इंद्र” तथा समस्त देवों के मस्तक से सुसज्जित फूलों की धूलि से धूसरित हो रही है तथा भुजंगराज(सर्पराजों) की मालाओं द्वारा विभूषित जटाओं वाले महादेव हमें अनंत काल के लिए सम्पदा दें ।
||ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा||
||निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्||
||सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं||
||महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः||
अर्थात : इंद्र तथा अन्य देवताओं के गर्व का विनाश करने वाले महादेव भगवान शिव जी ने अपने विशाल शीश की अग्नि ज्वाला द्वारा “कामदेव” को भस्म कर दिए तथा अमृत समान किरणों वाले “चंद्रदेव” की कान्ति तथा माता गंगा जी से शोभायमान जटा वाले, तेज रूप नर मुंड-माला धारी भगवान शिव हमें अक्षय सम्पदा तथा सम्पत्ति दें ।
||कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल||
||द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके||
||धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक||
||प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम||
अर्थात : जिन्होंने अपने मस्तक पर जलती हुई भयंकर अग्नि की ज्वाला से कामदेव को भस्म किया तथा पर्वत राजकिशोरी के स्तनों के अग्रभाग पर विविध चित्रकारी करने वाले शिल्पकार महादेव भगवान शिव में मेरी प्रीति तथा धारणा अटल रहे ।
||नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर||
||त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः||
||निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः||
||कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः||
अर्थात : जिनके कंठ में नविन मेघों से घिरी हुई “अमावस्या” की रात के घने अन्धकार की तरह श्यामकता फैली हुई है तथा देव नदी माता गंगा को धारण करने वाले तथा “गजचर्म” लपेटे हुए, बाल चन्द्रमा से सुशोभित इस समस्त संसार का बोझ धारण करने वाले भगवान शिव हमें प्रत्येक प्रकार की संपत्ति दें ।
||रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा||
||विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्||
||स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं||
||गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे||
अर्थात : जिनके कंठप्रदेश पर खिले हुए नीलकमलों से फैली हुई है सुन्दर सी श्याम-प्रभा तथा कामदेव, त्रिपुरासुर के नाशक, इस समस्त संसार को दुखों से तारने वाले, प्रजापति दक्ष के यज्ञ के विध्वंसक, गजासुरहंता, अंधकासुर के विनाशक और “मृत्यु” को भी नष्ट कर देने वाले महादेव शिव – मै आपका भजन करता हूँ ।
||अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी||
||रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्||
||स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं||
||गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे||
अर्थात : जो कल्याणमय है, जो “माता पार्वती” के समस्त कलाओं की कलियों के बहते हुए रस का पान करने वाले मधुप है तथा कामदेव को भस्म करनेवाले है। जिन्होंने त्रिपुरासुर का विनाश किया, जिन्होंने प्रजापति दक्ष के यज्ञ का विध्वंस किया तथा अंधकासुर और गजासुर का संहार किया तथा जो यमराज के भी यमराज है – भगवान शिव – मै आपका भजन करता हूँ ।
||जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर||
||द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्||
||धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल||
||ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः||
अर्थात : जिनके मस्तक पर प्रचंड अग्नि है और जो सर्पों के फुंकार से और भी धधकते हुए फ़ैल रही है तथा धीमी-धीमी मृदंग के मंगलकारी ‘उधा ध्वनि’ के “क्रमारोह” द्वारा चण्ड तांडव नृत्य में लीन होने वाले महादेव शिव जी हर तरह से सुशोभित हो रहे है ।
||दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो||
||र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः||
||तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः||
||समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे||
अर्थात : पत्थरों तथा कोमल बिछौने पर सर्प तथा मोतियों की मालों में, मिट्टियों के टुकड़ों तथा बहुमूल्य रत्नों में, मित्र तथा शत्रु में, छोटे से तिनके में तथा “कमललोचनियों” में, “प्रजा” और “महाराजाधिकार” – “राजाओं” के जैसे समान दृष्टि रखते हुए मै कब भगवान शिव को भजूँगा ।
||कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्||
||विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्||
||विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः||
||शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्||
अर्थात : माता गंगा के निकुंज में निवास करता हुआ तथा सुन्दर से ललाट वाले भगवान शिव में अपना चित्त लगाकर, सर पर अंजलि धारण कर के डबडबायी हुई आँखों से भगवान शिव के मन्त्रों का उच्चारण करता हुआ – कब मै सुखी होऊंगा तथा परमसुख को प्राप्त कर पाउँगा ।
||निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका||
||निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः||
||तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं||
||परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः||
अर्थात : देवांगनाओं के शीश पर गूथें हुए “फूलों के हार” के झड़ते हुए सुगन्धित पराग से मनोहर, परमशोभा के धाम भगवान महादेव शिव जी के अंगों की सुंदरता परम आनंद से युक्त हम सब के चित्त की प्रसन्नता हमेशा बढाती रहें।
||प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी||
||महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना||
||विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः||
||शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्||
अर्थात : प्रचंड बड़वानल के तरह समस्त पापों को भस्म कर देनेवाली स्त्री स्वरूपी अणिमादिक अष्ट-महासिद्धियों तथा चंचल आँखों वाली देव – कन्याओं से भगवान शिव के विवाह के समय में गान की गई मंगलमय ध्वनि सभी मन्त्रों में सर्वश्रेष्ठ भगवान शिव के मन्त्र से पूरित तथा सांसारिक दुखों को नष्ट करके विजय पा सकें।
||इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं||
||पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्||
||हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं||
||विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम||
अर्थात : इस सर्वोत्तम – ‘’शिवतांडव स्त्रोत’’ को प्रतिदिन अपने मुक्त-कंठ द्वारा पढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरी तथा गुरु पर भक्ति बनी रहती है तथा जिनकी कोई अन्य गति नहीं होती वो शिव जी के ही शरण में रहता है।
||पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं||
||यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे||
||तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां||
||लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः||
अर्थात : महादेव शिव जी के पूजन के अंत में “रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र” का “प्रदोष” के समय गाने अथवा पढ़ने मात्र से ही लक्ष्मी स्थिर हो जाती है तथा रथ सदा ही गज तथा घोड़ों से युक्त रहता है।
||इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्||
Frequently Asked Questions
1. शिव तांडव स्त्रोत किसने लिखा?
शिव तांडव स्त्रोत को रावण ने लिखा था।
2. भगवान शिव के मस्तक पर किस देव नदी का वास है?
भगवान शिव के मस्तक पर देव नदी गंगा का वास है ।
3. शिव तांडव स्त्रोत को किस दिन पढ़े?
शिव तांडव स्त्रोत को प्रतिदीन या प्रत्येक सोमवार को पड़ें ।
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