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Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 1 to 6 ||

Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 1 to 6 ||

॥ श्लोक ॥

शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं,ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌।

रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं,वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌॥१॥

हिंदी अर्थ – शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की में वंदना करता हूँ ॥

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये,सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे,कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥२॥

हिंदी अर्थ – हे रघुनाथजी। मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ | मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए ॥

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं,दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं,रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥३॥

हिंदी अर्थ – अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमानजी को मैं प्रणाम करता हूँ ॥

हनुमानजी का सीता शोध के लिए लंका प्रस्थान

॥ चौपाई ॥

जामवंत के बचन सुहाए।
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई।
सहि दुख कंद मूल फल खाई॥

हिंदी अर्थ – जामवंत जी के सुहावने वचन सुनकर हनुमानजी को अपने मन में वे वचन बहुत अच्छे लगे॥ और हनुमानजी ने कहा की हे भाइयो! आप लोग कन्द, मूल व फल खा, दुःख सह कर मेरी राह देखना॥ 

जब लगि आवौं सीतहिदेखी।
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा।
चलेउहरषि हियँ धरिरघुनाथा॥

हिंदी अर्थ – जब तक मै सीताजीको देखकर लौट न आऊँ, क्योंकि कार्य सिद्ध होने पर मन को बड़ा हर्ष होगा॥ ऐसे कह, सबको नमस्कार करके, रामचन्द्रजी का ह्रदय में ध्यान धरकर, प्रसन्न होकर हनुमानजी लंका जाने के लिए चले॥

सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीरसँभारी।
तरकेउ पवनतनय बलभारी॥

हिंदी अर्थ – समुद्र के तीर पर एक सुन्दर पहाड़ था। उसपर कूदकर हनुमानजी कौतुकी से चढ़ गए॥ फिर वारंवार रामचन्द्रजी का स्मरण करके, बड़े पराक्रम के साथ हनुमानजी ने गर्जना की॥

जेहिं गिरि चरन देइहनुमंता।
चलेउ सो गापाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।
एहीभाँति चलेउ हनुमाना॥

हिंदी अर्थ – कहते हैं जिस पहाड़ पर हनुमानजी ने पाँव रखकर ऊपर छलांग लगाई थी, वह पहाड़ तुरंत पाताल के अन्दर चला गया॥ जैसे श्रीरामचंद्रजी का अमोघ बाण जाता है, ऐसे हनुमानजी वहा से चले॥

जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥

हिंदी अर्थ – समुद्र ने हनुमानजी को श्रीराम (रघुनाथ) का दूत जानकर मैनाक नाम पर्वत से कहा की हे मैनाक, तू जा, और इनको ठहरा कर श्रम मिटानेवाला हो॥

मैनाक पर्वत की हनुमानजी से विनती

सोरठा

सिन्धुवचन सुनी कान, तुरत उठेउ मैनाक तब।
कपिकहँ कीन्ह प्रणाम, बार बार कर जोरिकै॥

हिंदी अर्थ – समुद्रके वचन कानो में पड़तेही मैनाक पर्वत वहांसे तुरंत उठा और हनुमानजीके पास आकर वारंवार हाथ जोड़कर उसनेहनुमानजीको प्रणाम किया॥

दोहा

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनुमोहिकहाँबिश्राम॥1॥

हिंदी अर्थ – हनुमानजी ने उसको अपने हाथसे छूकर फिर उसको प्रणाम किया, और कहा की, रामचन्द्रजीका का कार्य किये बिना मुझको विश्राम कहा है?

हनुमानजी की सुरसा से भेंट

चौपाई

जातपवनसुत देवन्ह देखा।
जानैं कहुँबलबुद्धि बिसेषा॥
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता।
पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥

हिंदी अर्थ – हनुमान जी को जाते देखकर उसके बल और बुद्धि के वैभव को जानने के लिए देवताओं ने नाग माता सुरसा को भेजा। उस नागमाताने आकर हनुमानजी से यह बात कही॥

आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा।
सुनत बचन कहपवनकुमारा॥
राम काजु करि फिरि मैं आवौं।
सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥

हिंदी अर्थ – आज तो मुझको देवताओं ने यह अच्छा आहार दिया। यह बात सुन हँस कर, हनुमानजी बोले॥
मैं रामचन्द्रजी का काम करके लौट आऊ और सीताजी की खबर रामचन्द्रजी को सुना दूं॥ 

तब तव बदन पैठिहउँ आई।
सत्यकहउँमोहिजानदे माई॥
कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना।
ग्रससि न मोहि कहेउहनुमाना॥

हिंदी अर्थ – फिर हे माता! मै आकर आपके मुँह में प्रवेश करूंगा। अभी तू मुझे जाने दे। इसमें कुछभी फर्क नहीं पड़ेगा। मै तुझे सत्य कहता हूँ॥ जब उसने किसी उपायसे उनको जाने नहीं दिया, तब हनुमानजीने कहा कि तू क्यों देरी करती है? तू मुझको नही खा सकती॥

जोजन भरि तेहिंबदनुपसारा।
कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ।
तुरत पवनसुतबत्तिसभयऊ॥

हिंदी अर्थ – सुरसाने अपना मुंह एक योजन भर में फैलाया हनुमान जी ने अपना शरीर दो योजन विस्तार वाला किया॥ सुरसा ने अपना मुँह सोलह (१६) योजन में फैलाया। हनुमान जी ने अपना शरीर तुरंत बत्तीस (३२) योजन बड़ा किया॥ 

जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूपदेखावा॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा।
अतिलघुरूप पवनसुत लीन्हा॥

हिंदी अर्थ – सुरसा ने जैसा जैसा मुंह फैलाया, हनुमानजीने वैसेही अपना स्वरुप उससे दुगना दिखाया॥
जब सुरसा ने अपना मुंह सौ योजन (चार सौ कोस का) में फैलाया, तब हनुमानजी तुरंत बहुत छोटा स्वरुप धारण कर॥ 

बदन पइठि पुनि बाहेर आवा।
मागा बिदा ताहिसिरुनावा॥
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा।
बुधिबलमरमु तोर मैं पावा॥

हिंदी अर्थ – उसके मुंह में पैठ कर (घुसकर) झट बाहर चले आए। फिर सुरसा से विदा मांग कर हनुमानजी ने प्रणाम किया॥ उस वक़्त सुरसा ने हनुमानजी से कहा की हे हनुमान! देवताओंने मुझको जिसके लिए भेजा था, वह तेरा बल और बुद्धि का भेद मैंनेअच्छी तरह पा लिया है॥

दोहा

राम काजु सबु करिहहु तुम्हबलबुद्धिनिधान।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान ॥2॥

हिंदी अर्थ – तुम बल और बुद्धि के भण्डार हो, सो श्रीरामचंद्रजी के सब कार्य सिद्ध करोगे। ऐसे आशीर्वाद देकर सुरसा तो अपने घर को चली, और हनुमानजी प्रसन्न होकर लंकाकी ओर चले ॥2॥

हनुमानजी की छाया पकड़ने वाले राक्षस से भेंट

चौपाई

निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई।
करि माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं।
जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥

हिंदी अर्थ – समुद्र के अन्दर एक राक्षस रहता था। सो वह माया करके आकाशचारी पक्षी और जंतुओको पकड़ लिया करता था॥ जो जीवजन्तु आकाश में उड़कर जाता, उसकी परछाई जल में देखकर, परछाई को जल में पकड़ लेता॥

गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई।
एहि बिधि सदा गगनचर खाई॥
सोइ छलहनूमान कहँ कीन्हा।
तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा॥

हिंदी अर्थ – परछाई को जल में पकड़ लेता, जिससे वह जिव जंतु फिर वहा से सरक नहीं सकता। इसतरह वह हमेशा आकाश चारी जिव जन्तुओ को खाया करता था॥ उसने वही कपट हनुमान से किया। हनुमान ने उसका वह छल तुरंत पहचान लिया॥

ताहि मारि मारुतसुत बीरा।
बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥
तहाँ जाइ देखी बनसोभा।
गुंजत चंचरीकमधु लोभा॥

हिंदी अर्थ – धीर बुद्धिवाले पवनपुत्र वीर हनुमानजी उसे मारकर समुद्र के पार उतर गए॥ वहा जाकर हनुमान जी वन की शोभा देखते है कि भ्रमर मकरंद के लोभ से गुँजाहट कर रहे है॥

नाना तरु फलफूल सुहाए।
खग मृग बृंद देखि मनभाए॥
सैल बिसाल देखि एक आगें।
ता पर धाइ चढ़ेउ भय त्यागें॥

हिंदी अर्थ – अनेक प्रकार के वृक्ष फल और फूलो से शोभायमान हो रहे है। पक्षी और हिरणोंका झुंड देखकर मन मोहित हुआ जाता है॥ वहा सामने हनुमान एक बड़ा विशाल पर्वत देखकर निर्भय होकर उस पहाड़ पर कूदकर चढ़ बैठे॥ 

उमा न कछु कपिकै अधिकाई।
प्रभुप्रतापजो कालहि खाई॥
गिरिपरचढ़ि लंका तेहिं देखी।
कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥

हिंदी अर्थ – महदेव जी कहते है कि हे पार्वती! इसमें हनुमान की कुछ भी अधिकता नहीं है। यह तो केवल एक रामचन्द्रजीके ही प्रताप का प्रभाव है कि जो कालकोभी खा जाता है॥ पर्वत पर चढ़कर हनुमान जी ने लंका को देखा, तो वह ऐसी बड़ी दुर्गम है की जिसके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता॥

अतिउतंग जलनिधि चहु पासा।
कनक कोट कर परम प्रकासा॥

हिंदी अर्थ – पहले तो वह पुरी बहुत ऊँची, फिर उसके चारो ओर समुद्र की खाई। उस पर भी सुवर्णके कोटका महाप्रकाश कि जिससे नेत्र चकाचौंध हो जावे॥

लंका का वर्णन

छंद

कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥

हिंदी अर्थ – उस नगरीका रत्नों से जड़ा हुआ सुवर्ण का कोट अतिव सुन्दर बना हुआ है। चौहटे, दुकाने व सुन्दर गलियों के बहार उस सुन्दर नगरीके अन्दर बनी है॥ जहा हाथी, घोड़े, खच्चर, पैदल व रथोकी गिनती कोई नहीं कर सकता। और जहा महाबली अद्भुत रूपवाले राक्षसोके सेनाके झुंड इतने है की जिसका वर्णन किया नहीं जा सकता॥

बनबाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥

हिंदी अर्थ – जहा वन, बाग़, बागीचे, बावडिया, तालाब, कुएँ, बावलिया शोभायमान हो रही है। जहां मनुष्यकन्या, नागकन्या, देवकन्या और गन्धर्वकन्याये विराजमान हो रही है जिनका रूप देखकर मुनि लोगो का मन मोहित हुआ जाता है॥

कही पर्वत के समान बड़े विशाल देह वाले महाबलिष्ट मल्ल गर्जनाकरते है और अनेक अखाड़ों में अनेक प्रकार से भिड रहे है और एक एक को आपस में पटक पटक कर गर्जना कर रहे है॥

करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥
एहि लागि तुलसीदासइन्हकीकथा कछु एक है कही।
रघुबीरसरतीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥

हिंदी अर्थ – जहा कही विकट शरीर वाले करोडो भट चारो तरफसे नगरकी रक्षा करते है और कही वे राक्षस लोग भैंसे, मनुष्य, गौ, गधे, बकरे और पक्षीयोंको खा रहे है॥

राक्षस लोगो का आचरण बहुत बुरा है। इसीलिए तुलसी दास जी कहते है कि मैंने इनकी कथा बहुत संक्षेपसे कही है। ये महादुष्ट है, परन्तु रामचन्द्रजीके बानरूप पवित्र तीर्थ नदी के अन्दर अपनाशरीर त्याग कर गति अर्थात मोक्ष को प्राप्त होंगे॥

दोहा

पुर रखवारे देखि बहु कपि मनकीन्हबिचार।
अतिलघुरूपधरों निसि नगर करौंपइसार ॥3॥

हिंदी अर्थ – हनुमान जी ने बहुत से रख वालो को देखकर मन में विचार किया की मैछोटारूपधारणकरके नगर में प्रवेश करूँ ॥3॥

चौपाई

मसक समान रूप कपि धरी।
लंकहि चलेउ सुमिरिनरहरी॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी।
सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥

हिंदी अर्थ – हनुमान जी मच्छर के समान, छोटा-सा रूप धारण कर, प्रभु श्री रामचन्द्र जी के नाम का सुमिरन करते हुए लंका में प्रवेश करते है॥
लंका के द्वार पर हनुमान जी की भेंट लंकिनी नाम की एक राक्षसी से होती है॥ वह पूछती है कि मेरा निरादर करके कहा जा रहे हो? जय सियाराम जय जय सियाराम

जानेहिनहीं मरमु सठ मोरा।
मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥
मुठिका एक महा कपिहनी।
रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥

हिंदी अर्थ – तूने मेरा भेद नहीं जाना? जहाँ तक चोर हैं, वे सब मेरे आहार हैं। महाकपि हनुमान जी उसे एक घूँसा मारते है, जिससे वह पृथ्वी पर ल़ुढक पड़ती है। 

पुनि संभारि उठी सो लंका।
जोरि पानि कर बिनय ससंका॥
जब रावनहि ब्रह्मबरदीन्हा।
चलत बिरंच कहा मोहि चीन्हा॥

हिंदी अर्थ – वह राक्षसी लंकिनी अपने को सँभालकर फिर उठती है। और डर के मारे हाथ जोड़कर हनुमान जी से कहती है॥
जब ब्रह्मा ने रावण को वर दिया था, तब चलते समय उन्होंने राक्षसों के विनाश की यह पहचान मुझे बता दी थी कि॥

बिकल होसि तैं कपि कें मारे।
तब जानेसु निसिचर संघारे॥
तात मोर अतिपुन्य बहूता।
देखेउँ नयन राम कर दूता॥

हिंदी अर्थ – जब तू बंदर के मारने से व्याकुल हो जाए, तब तू राक्षसों का संहार हुआ जान लेना।
हे तात! मेरे बड़े पुण्य हैं, जो मैं श्री रामजी के दूत को अपनी आँखों से देख पाई।

दोहा

तातस्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुखलवसतसंग ॥

हिंदी अर्थ – हे तात! स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाए, तो भी वे सब मिलकर उस सुख के बराबर नहीं हो सकते, जो क्षण मात्र के सत्संग से होता है ॥

चौपाई

प्रबिसि नगर कीजेसबकाजा।
हृदयँराखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।
गोपद सिंधु अनलसितलाई॥

हिंदी अर्थ – अयोध्यापुरी के राजा रघुनाथ को हृदय में रखे हुए नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिए। उसके लिए विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्रता करने लगते हैं, समुद्र गाय के खुर के बराबर हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है।

गरुड़सुमेरु रेनु सम ताही।
राम कृपा करि चितवाजाही॥
अतिलघुरूप धरेउ हनुमाना।
पैठा नगर सुमिरिभगवाना॥

हिंदी अर्थ – और हे गरुड़! सुमेरु पर्वत उसके लिए रज के समान हो जाता है, जिसे राम ने एक बार कृपा करके देख लिया। तब हनुमान ने बहुत ही छोटा रूप धारण किया और भगवान का स्मरण करके नगर में प्रवेश किया।

सीताजी की खोज

मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा।
देखे जहँ तहँ अगनित जोधा॥
गयउ दसानन मंदिर माहीं।
अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं॥

हिंदी अर्थ – उन्होंने एक-एक (प्रत्येक) महल की खोज की। जहाँ तहाँ असंख्ययोद्धा देखे। फिर वे रावण के महल में गए। वह अत्यंत विचित्र था, जिसका वर्णन नहीं हो सकता। 

सयन किएँ देखा कपि तेही।
मंदिर महुँ न दीखि बैदेही॥
भवन एक पुनि दीख सुहावा।
हरिमंदिर तहँ भिन्न बनावा॥

हिंदी अर्थ – हनुमानजी ने महल में रावण को सोया हुआ देखा। वहा भी हनुमानजी ने सीताजी की खोज की, परन्तु सीताजी उस महल मेंकही भी दिखाई नहीं दीं। फिर उन्हें एक सुंदर भवन दिखाई दिया। उस महल में भगवान का एक मंदिर बना हुआ था।

दोहा

रामायुध अंकितगृहसोभा बरनि न जाइ।
नवतुलसिका बृंद तहँ देखिहरषकपिराई ॥5॥

हिंदी अर्थ – वह महल राम के आयुध (धनुष-बाण) के चिह्नों से अंकित था, उसकी शोभा वर्णन नहीं की जा सकती। वहाँ नवीन-नवीन तुलसी के वृक्ष-समूहों को देखकर कपिराज हनुमान हर्षित हुए॥ 5॥

हनुमानजी की विभीषणसे भेंट

लंका निसिचरनिकर निवासा।
इहाँ कहाँसज्जन कर बासा॥
मन महुँ तरक करैंकपिलागा।
तेहींसमय बिभीषनु जागा॥

हिंदी अर्थ – और उन्हीने सोचा की यह लंका नगरी तो राक्षसोंके कुलकी निवासभूमी है। यहाँ सत्पुरुषो के रहने का क्या काम॥ इस तरह हनुमानजी मन ही मन में विचार करने लगे। इतने में विभीषण की आँख खुली॥

रामराम तेहिं सुमिरनकीन्हा।
हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥
एहिसन सठि करिहउँ पहिचानी।
साधु ते होइ नकारजहानी॥

हिंदी अर्थ – और जागते ही उन्होंने ‘राम! राम!’ ऐसा स्मरण किया, तो हनुमानजीने जाना की यह कोई सत्पुरुष है। इस बात से हनुमानजी को बड़ा आनंद हुआ॥ हनुमान जी ने विचार किया कि इनसे जरूर पहचान करनी चहिये, क्योंकि सत्पुरुषोके हाथ कभी कार्य की हानि नहीं होती॥

बिप्र रूप धरि बचन सुनाए।
सुनत बिभीषन उठितहँआए॥
करि प्रनाम पूँछी कुसलाई।
बिप्र कहहु निजकथा बुझाई॥

हिंदी अर्थ – फिर हनुमानजीने ब्राम्हणका रूप धरकर वचन सुनाया तो वहवचन सुनतेही विभीषण उठकर उनके पास आया॥ और प्रणाम करके कुशल पूँछा, की हे विप्र (ब्राह्मणदेव)! जो आपकी बात होसो हमें समझाकर कहो॥

की तुम्हहरि दासन्ह महँ कोई।
मोरें हृदयप्रीति अति होई॥
की तुम्हरामुदीनअनुरागी।
आयहुमोहि करन बड़भागी॥

हिंदी अर्थ – विभीषणने कहा कि शायद आप कोई भगवन्तोमेंसे तो नहीं हो! क्योंकि मेरे मनमें आपकी ओर बहुत प्रीती बढती जाती है॥ अथवा मुझको बडभागी करने के वास्ते भक्तोपर अनुराग रखनेवाले आप साक्षात दिनबन्धु ही तो नहीं पधार गए हो॥

तब हनुमंत कही सब राम कथानिजनाम।
सुनतजुगल तन पुलक मन मगनसुमिरिगुनग्राम ॥6॥

हिंदी अर्थ – विभिषणके ये वचन सुनकर हनुमानजीने रामचन्द्रजीकी सब कथा विभीषणसे कही और अपना नाम बताया।
परस्परकी बाते सुनते ही दोनों के शरीर रोमांचित हो गए और श्री रामचन्द्र जी का स्मरण आ जानेसे दोनों आनंद मग्न हो गए ॥6॥

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी।
जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥
तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा।
करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥

हिंदी अर्थ – विभीषण कहते है की हे हनुमान जी! हमारी रहनी हम कहते है सो सुनो। जैसे दांतों के बिचमें बिचारी जीभ रहती है, ऐसे हम इन राक्षसों के बिच में रहते है॥ हे प्यारे! वे सूर्यकुल के नाथ (रघुनाथ) मुझको अनाथ जानकर कभी कृपा करेंगे?

तामस तनु कछु साधन नाहीं।
प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता।
बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥

हिंदी अर्थ – जिससे प्रभु कृपा करे ऐसा साधन तो मेरे है नहीं। क्योंकि मेराशरीर तो तमोगुणी राक्षस है, और न कोई प्रभुके चरणकमलों में मेरे मनकी प्रीति है॥
परन्तु हे हनुमानजी, अब मुझ को इस बातका पक्का भरोसा हो गया है कि भगवान मुझपर अवश्य कृपा करेंगे। क्योंकि भगवान की कृपा बिना सत्पुरुषों का मिलाप नहीं होता॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा।
तौ तुम्ह मोहिदरसु हठि दीन्हा॥
सुनहु बिभीषन प्रभुकैरीती।
करहिं सदा सेवकपर प्रीति॥

हिंदी अर्थ – रामचन्द्र जी ने मुझपर कृपा की है। इसी से आपने आकर मुझको दर्शन दिए है॥ विभीषण के यह वचन सुनकर हनुमानजी ने कहा कि हे विभीषण! सुनो, प्रभुकी यह रीती ही है की वे सेवक पर सदा परम प्रीति किया करते है॥

कहहु कवन मैंपरम कुलीना।
कपिचंचल सबहीं बिधि हीना॥
प्रात लेइ जो नाम हमारा।
तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥