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Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 19 to 24 ||

Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 19 to 24 ||

मेघनाद ने ब्रम्हास्त्र चलाया

॥ दोहा ॥

ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार ॥19॥

हिंदी अर्थ – मेघनाद अनेक अस्त्र चलाकर थक गया, तब उसने ब्रम्हास्त्र चलाया। उसे देखकर हनुमानजी ने मनमे विचार किया कि इससे बंध जाना ही ठीक है। क्योंकि जो मै इस ब्रम्हास्त्रको नहीं मानूंगा तो इस अस्त्रकी अद्भुत महिमा घट जायेगी ॥

मेघनाद हनुमान जी को बंदी बनाकर रावण की सभा में ले गया

ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहिं मारा।
परतिहुँ बार कटकु संघारा॥
तेहिं देखा कपि मुरुछित भयऊ।
नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥

हिंदी अर्थ – मेघनाद ने हनुमानजी पर ब्रम्हास्त्र चलाया, उस ब्रम्हास्त्र से हनुमान जी गिरने लगे तो गिरते समय भी उन्होंने अपने शरीर से बहुत से राक्षसों का संहार कर डाला॥ जब मेघनाद ने जान लिया कि हनुमान जी अचेत हो गए है, तब वह उन्हें नागपाश से बांधकर लंका मे ले गया॥

जासु नाम जपि सुनहु भवानी।
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभुकारज लगि कपिहिं बँधावा॥

हिंदी अर्थ – महादेव जी कहते है कि हे पार्वती! सुनो, जिनके नामका जप करने से ज्ञानी लोग भव बंधन को काट देते है॥
उस प्रभु का दूत (हनुमानजी) भला बंधन में कैसे आ सकता है? परंतु अपने प्रभु के कार्य के लिए हनुमान ने अपने को बंधा दिया॥

कपि बंधन सुनि निसिचर धाए।
कौतुक लागि सभाँ सब आए॥
दसमुख सभा दीखि कपि जाई।
कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई॥

हिंदी अर्थ – हनुमान जी को बंधा हुआ सुनकर सब राक्षस देखने को दौड़े और कौतुक के लिए उसे सभा मे ले आये॥ हनुमान जी ने जाकर रावण की सभा देखी, तो उसकी प्रभुता और ऐश्वर्य किसी कदर कही जाय ऐसी नहीं थी॥

कर जोरें सुर दिसिप बिनीता।
भृकुटि बिलोकत सकल सभीता॥
देखि प्रताप न कपि मन संका।
जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका॥

हिंदी अर्थ – कारण यह है की, तमाम देवता बड़े विनय के साथ हाथ जोड़े सामने खड़े उसकी भ्रूकुटी की ओर भय सहित देख रहे है॥
यद्यपि हनुमानजी ने उसका ऐसा प्रताप देखा, परंतु उनके मन में ज़रा भी डर नहीं था। हनुमान जी उस सभा में राक्षसों के बीच ऐसे निडर खड़े थे कि जैसे गरुड़ सर्पो के बीच निडर रहा करता है॥

कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।
सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद ॥20॥

हिंदी अर्थ – रावण हनुमानजी की और देखकर हँसा और कुछ दुर्वचन भी कहे, परंतु फिर उसे पुत्र का मरण याद आ जाने से उसके हृदय मे बड़ा संताप पैदा हुआ॥

हनुमानजी और रावण का संवाद

कह लंकेस कवन तैं कीसा।
केहि कें बल घालेहि बन खीसा॥
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही।
देखउँ अति असंक सठ तोही॥

हिंदी अर्थ – रावण ने हनुमानजी से कहा कि हे वानर! तू कहां से आया है? और तूने किसके बल से मेरे वनका विध्वंस कर दिया है॥
मैं तुझे अत्यंत निडर देख रहा हूँ सो क्या तूने कभी मेरा नाम अपने कानों से नहीं सुना है?॥

मारे निसिचर केहिं अपराधा।
कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥
सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया।
पाइ जासु बल बिरचति माया॥

हिंदी अर्थ – तुझको हम जीसे नहीं मारेंगे, परन्तु सच कह दे कि तूने हमारे राक्षसोंको किस अपराध के लिए मारा है? रावण के ये वचन सुनकर हनुमानजी ने रावण से कहा कि हे रावण! सुन, यह माया (प्रकृति) जिस परमात्माके बल (चैतन्यशक्ति) को पाकर अनेक ब्रम्हांड समूह रचती है॥

जाकें बल बिरंचि हरि ईसा।
पालत सृजत हरत दससीसा॥
जा बल सीस धरत सहसानन।
अंडकोस समेत गिरि कानन॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! जिसके बलसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये तीनो देव जगत को रचते है, पालते है और संहार करते है॥
और जिनकी सामर्थ्य से शेष जी अपने शिरसे वन और पर्वतों सहित इस सारे ब्रम्हांड को धारण करते है॥

धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता।
तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा।
तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥

हिंदी अर्थ – और जो देवताओके रक्षा के लिए और तुम्हारे जैसे दुष्टो को दंड देनेके लिए अनेक शरीर (अवतार) धारण करते है॥
जिसने महादेवजीके अति कठिन धनुष को तोड़कर तेरे साथ तमाम राज समूहो के मदको भंजन किया (गर्व चूर्ण कर दिया) है॥

खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली।
बधे सकल अतुलित बलसाली॥

हिंदी अर्थ – और जिसने खर, दूषण, त्रिशिरा और बालि ऐसे बड़े बलवाले योद्धओ को मारा है॥

जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।
तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥

हिंदी अर्थ – और हे रावण! सुन, जिसके बल के लवलेश अर्थात किन्चित्मात्र अंश से तूने तमाम चराचर जगत को जीता है, उस परमात्मा का मै दूत हूँ। जिसकी प्यारीसीता को तू हर ले आया है ॥

हनुमानजी और रावण का संवाद

जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई।
सहसबाहु सन परी लराई॥
समर बालि सन करि जसु पावा।
सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! आपकी प्रभुता तो मैंने तभी से जान ली है कि जब आपको सहस्रबाहु के साथ युद्ध करनेका काम पड़ा था॥ और मुझको यह बात भी याद है कि आप बालिसे लड़ कर जो यश पाये थे। हनुमानजी के ये वचन सुनकर रावण ने हँसी में ही उड़ा दिए॥

खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा।
कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥
सब कें देह परमप्रिय स्वामी।
मारहिं मोहि कुमारग गामी॥

हिंदी अर्थ – तब फिर हनुमानजी ने कहा कि हे रावण! मुझ को भूख लग गयी थी इसलिए तो मैंने आपके बlग के फल खाए है और वृक्षो को तोडा है सो तो केवल मैंने अपने वानर स्वाभाव की चपलता से तोड़ डाले है॥
और जो मैंने आपके राक्षसों को मारा उसका कारण तो यह है की हे रावण! अपना देह तो सबको बहुत प्यारा लगता है, सो वे खोटे रास्ते चलने वाले राक्षस मुझको मारने लगे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे।
तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे॥
मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा।
कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥

हिंदी अर्थ – तब मैंने अपने प्यारे शरीर की रक्षा करने के लिए जिन्होंने मुझको मारा था उनको मैंने भी मारा। इसपर आपके पुत्र ने मुझको बाँध लिया है॥
हनुमानजी कहते है कि मुझको बंध जाने से कुछ भी शर्म नहीं आती क्योंकि मै अपने स्वामी का कार्य करना चाहता हूँ॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

बिनती करउँ जोरि कर रावन।
सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥
देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी।
भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! मै हाथ जोड़कर आपसे प्रार्थना करता हूँ। सो अभिमान छोड़कर मेरी शिक्षा सुनो। और अपने मनमे विचार करके तुम अपने आप खूब अच्छी तरह देख लो और सोचनेके बाद भ्रम छोड़कर भक्तजनों के भय मिटाने वाले प्रभु की सेवा करो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

जाकें डर अति काल डेराई।
जो सुर असुर चराचर खाई॥
तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै।
मोरे कहें जानकी दीजै॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! काल, (जो देवता, दैत्य और सारे चराचर को खा जाता है) भी जिसके सामने अत्यंत भयभीत रहता है॥
उस परमात्मा से कभी बैर नहीं करना चाहिये। इसलिए जो तू मेरा कहना माने तो सीताजी को रामचन्द्र जी को दे दो॥

प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि।
गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि ॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! खरके मारने वाले रघुवंश मणि रामचन्द्रजी भक्त पालकऔर करुणा के सागर है। इसलिए यदि तू उनकी शरण चला जाएगा तो वे प्रभु तेरे अपराध को माफ़ करके तेरी रक्षा करेंगे ॥

हनुमानजी का रावण को समझाना

राम चरन पंकज उर धरहू।
लंका अचल राजु तुम्ह करहू॥
रिषि पुलस्ति जसु बिमल मयंका।
तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका॥

हिंदी अर्थ – इसलिए तू रामचन्द्रजीके चरण कमलों को हृदयमें धारण कर और उनकी कृपासे लंका में अविचल राज कर॥
महामुनि पुलस्त्यजी का यश निर्मल चन्द्रमाके समान परम उज्वल है इसलिए तू उस कुलके बीच में कलंक के समान मत हो॥

रामनाम बिनु गिरा न सोहा।
देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥
बसन हीन नहिं सोह सुरारी।
सब भूषन भूषित बर नारी॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! तू अपने मनमें विचार करके मद और मोह को त्यागकर अच्छी तरह जांच ले कि रामके नाम बिना वाणी कभी शोभा नहीं देती॥
हे रावण! चाहे स्त्री सब अलंकारोसे अलंकृत और सुन्दर क्यों न होवे परंतु वस्त्रके बिना वह कभी शोभायमान नहीं होती। ऐ सेही राम नाम बिना वाणी शोभायमान नहीं होती॥

राम बिमुख संपति प्रभुताई।
जाइ रही पाई बिनु पाई॥
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं।
बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! जो पुरुष रामचन्द्रजी से विमुख है उसकी संपदा और प्रभुता पाने पर भी न पाने के बराबर है। क्योंकि वह स्थिर नहीं रहती किन्तु तुरंत चली जाती है॥
देखो, जिन नदियों के मूल में कोई जल स्रोत नहीं है, वहां बरसात हो जाने के बाद फिर सब जल सुख ही जाता है, कही नहीं रहता॥

सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी।
बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥
संकर सहस बिष्नु अज तोही।
सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! सुन, मै प्रतिज्ञा कर कहता हूँ कि रामचन्द्रजी से विमुख पुरुष का रखवारा कोई नहीं है॥
हे रावण! रामचन्द्रजी से द्रोह करने वाले तुझको ब्रह्मा, विष्णु और महादेव भी बचा नहीं सकते॥ 

मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ॥23॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! मोह्का मूल कारण और अत्यंत दुःख देने वाली अभिमान की बुद्धिको छोड़कर कृपा के सागर भगवान् श्री रघुवीरकुल नायक रामचन्द्रजी की सेवा कर ॥23॥

रावण ने हनुमानजी की पूँछ जलाने का हुक्म दिया

जदपि कही कपि अति हित बानी।
भगति बिबेक बिरति नय सानी॥
बोला बिहसि महा अभिमानी।
मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥

हिंदी अर्थ – यद्यपि हनुमानजी रावण को अति हितकारी और भक्ति, ज्ञान, धर्म और नीतिसे भरी वाणी कही, परंतु उस अभिमानी अधम के उसके कुछ भी असर नहीं हुआ॥
इससे हँसकर बोला कि हे वानर! आज तो हमको तु बडा ज्ञानी गुरु मिला॥

मृत्यु निकट आई खल तोही।
लागेसि अधम सिखावन मोही॥
उलटा होइहि कह हनुमाना।
मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥

हिंदी अर्थ – हे नीच! तू मुझको शिक्षा देने लगा है. सो हे दुष्ट! कहीं तेरी मौत तो निकट नहीं आ गयी है?॥
रावण के ये वचन सुन पीछे फिरकर हनुमान्‌ ने कहा कि हे रावण! अब मैंने तेरा बुद्धिभ्रम स्पष्ट रीति से जान लिया है॥

सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना।
बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना॥
सुनत निसाचर मारन धाए।
सचिवन्ह सहितबिभीषनु आए॥

हिंदी अर्थ – हनुमान्‌ के वचन सुनकर रावण को बड़ा कोध आया, जिससे रावण ने राक्षसों को कहा कि हे राक्षसो! इस मूर्खके प्राण जल्दी लेलो अर्थात इसे तुरंत मार डालो॥
इस प्रकार रावण के वचन सुनते ही राक्षस मारनेको दौड़ें तब अपने मंत्रियों के साथ विभीषण वहां आ पहुँचे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

नाइ सीस करि बिनय बहूता।
नीति बिरोध न मारिअ दूता॥
आन दंड कछु करिअ गोसाँई।
सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥

हिंदी अर्थ – बड़े विनय के साथ रावण को प्रणाम करके बिभीषण ने कहा कि यह दूत है। इसलिए इसे मारना नही चाहिये; क्योंकि यह बात नीति से विरुद्ध है॥
हे स्वामी! इसे आप और एक दंड दे दीजिये पर मारें मत। बिभीषण की यह बात सुनकर सब राक्षसों ने कहा कि हे भाइयो! यह सलाह तो अच्छी है॥

सुनत बिहसि बोला दसकंधर।
अंग भंग करि पठइअ बंदर॥

हिंदी अर्थ – रावण इस बात को सुनकर बोला कि जो इस को मारना ठीक नहीं है तो इस बंदर का कोई अंग भंग करके इसे भेज दो॥

कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ।
तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ ॥24॥

हिंदी अर्थ – सब लोगो ने समझा कर रावण से कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता है। इसलिए इसकी पूंछ में तेल से भीगेहुए कपडे लपेटकर आग लगा दो ॥24॥

राक्षसोंने हनुमानजी की पूँछ में आग लगा दी

पूँछहीन बानर तहँ जाइहि।
तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥
जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई।
देखउ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥

हिंदी अर्थ – जब यह वानर पूंछ हीन होकर अपने मालिक के पास जायेगा, तब अपने स्वामी को यह ले आएगा॥ इस वानर ने जिसकी अतुलित बढाई की है भला उसकी प्रभुता को मैं देखूं तो सही कि वह कैसा है?॥

बचन सुनत कपि मन मुसुकाना।
भइ सहाय सारद मैं जाना॥
जातुधान सुनि रावन बचना।
लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥

हिंदी अर्थ – रावन के ये वचन सुनकर हनुमान जी मन में मुस्कुराए और मन में सोचने लगे कि मैंने जान लिया है कि इस समय सरस्वती सहाय हुई है। क्योंकि इसके मुंह से रामचन्द्र जी के आने का समाचार स्वयं निकल गया॥
तुलसीदास जी कहते है कि वे राक्षस लोग रावण के वचन सुनकर वही रचना करने लगे अर्थात तेल से भिगो भिगोकर कपडे उनकी पूंछ में लपेटने लगे॥

रहा न नगर बसन घृत तेला।
बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥
कौतुक कहँ आए पुरबासी।
मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥

हिंदी अर्थ – उस समय हनुमान जी ने ऐसा खेल किया कि अपनी पूंछ इतनी लंबी बढ़ा दी जिस को लपेट ने के लिये नगरी में कपडा, घी व तेल कुछ भी बाकी न रहा॥
नगर के जो लोग तमाशा देखने को वहां आये थे वे सब लातें मार मारकर बहुत हँसते हैं॥

बाजहिं ढोल देहिं सब तारी।
नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥
पावक जरत देखि हनुमंता।
भयउ परम लघुरूप तुरंता॥

हिंदी अर्थ – अनेक ढोल बज रहे हे, सब लोग ताली दे रहे हैं, इस तरह हनुमानजी को नगरी में सर्वत्र फिराकर फिर उनकी पूंछ में आग लगा दी॥
हनुमान जी ने जब पूंछ में आग जलती देखी तब उन्हो ने तुरंत बहुत छोटा स्वरूप धारण कर लिया॥

निबुकि चढ़ेउ कप कनक अटारीं।
भईं सभीत निसाचर नारीं॥

हिंदी अर्थ – और बंधन से निकल कर पीछे सुवर्ण की अटारियों पर चढ़ गए, जिस को देखते ही तमाम राक्षसों की स्त्रीयां भयभीत हो गयी॥