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Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 37 to 42 ||

Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 37 to 42 ||

॥ दोहा 37 ॥

सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस,राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।

हिंदी अर्थ – जो मंत्री भय वा लोभ से राजा को सुहाती बात कहता है, तो उसके राज का तुरंत नाश हो जाता है, और जो वैद्य रोगी को सुहाती बात कहता है तो रोगी का वेगही नाश हो जाता है, तथा गुरु जो शिष्यके सुहाती बात कहता है, उसके धर्मका शीघ्रही नाश हो जाता है ॥37॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

विभीषण का रावण को समझाना

॥ चौपाई ॥

सोइ रावन कहुँ बनी सहाई।
अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥
अवसर जानि बिभीषनु आवा।
भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥

हिंदी अर्थ – सो रावण के यहां वैसी ही सहाय बन गयी अर्थात् सब मंत्री सुना सुना कर रावण की स्तुति करने लगे॥
उस अवसर को जानकर विभीषण वहां आया और बड़े भाई के चरणों में उसने सिर नवाया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन।
बोला बचन पाइ अनुसासन॥
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता।
मति अनुरूप कहउँ हित ताता॥

हिंदी अर्थ – फिर प्रणाम करके वह अपने आसन पर जा बैठा॥ और रावण की आज्ञा पाकर यह वचन बोला, हे कृपालु! आप मुझसे जो बात पूछते हो सो हे तात! मैं भी मेरी बुद्धि के अनुसार कहूंगा॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

जो आपन चाहै कल्याना।
सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥
सो परनारि लिलार गोसाईं।
तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥

हिंदी अर्थ – हे तात! जो आप अपना कल्याण, सुयश, सुमति, शुभ-गति, और नाना प्रकार का सुख चाहते हो॥
तब तो हे स्वामी! पर स्त्री के लिलार का (ललाट को) चौथके चांद की नाई (तरह) त्याग दो (जैसे लोग चौथ के चंद्रमा को नहीं देखते, उसी प्रकार पर स्त्री का मुख ही न देखे)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

चौदह भुवन एक पति होई।
भूतद्रोह तिष्टइ नहिं सोई॥
गुन सागर नागर नर जोऊ।
अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥

हिंदी अर्थ – चाहो कोई एक ही आदमी चौदहा लोकों का पति हो जावे परंतु जो प्राणी मात्र से द्रोह रखता है वह स्थिर नहीं रहता अर्थात् तुरंत नष्ट हो जाता हैँ॥
जो आदमी गुणों का सागर और चतुर है परंतु वह यदि थोड़ा भी लोभ कर जाय तो उसे कोई भी अच्छा नहीं कहता॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ॥38॥

हिंदी अर्थ – हे नाथ! ये सद्ग्रन्थ अर्थात् वेद आदि शास्त्र ऐसे कहते हैं कि काम, कोध, मद और लोभ ये सब नरक के मार्ग हैं, इस वास्ते इन्हें छोड़कर रामचन्द्रजी के चरणों की सेवा करो ॥38॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

रावण को विभीषण का समझाना

तात राम नहिं नर भूपाला।
भुवनेस्वर कालहु कर काला॥
ब्रह्म अनामय अज भगवंता।
ब्यापक अजित अनादि अनंता॥

हिंदी अर्थ – हे तात! राम मनुष्य और राजा नहीं हैं, किंतु वे साक्षात त्रिलोकी नाथ और काल के भी काल है॥
जो साक्षात् पर ब्रह्म, निर्विकार, अजन्मा, सर्वव्यापक, अजेय, आदि और अनंत ब्रह्म है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

गो द्विज धेनु देव हितकारी।
कृपा सिंधु मानुष तनुधारी॥
जन रंजन भंजन खल ब्राता।
बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता॥

हिंदी अर्थ – वे कृपा सिंधु गौ, ब्राह्मण, देवता और पृथ्वी का हित करने के लिये, दुष्टो के दल का संहार करने के लिये, वेद और धर्म की रक्षा करने के लिये प्रकट हुए हे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

ताहि बयरु तजि नाइअ माथा।
प्रनतारति भंजन रघुनाथा॥
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही।
भजहु राम बिनु हेतु सनेही॥

हिंदी अर्थ – सो शरणगतों के संकट मिटाने वाले उन रामचन्द्रजी को वैर छोड़कर प्रणाम करो॥
हे नाथ! रामचन्द्र जी को सीता दे दीजिए और कामना छोडकर स्नेह रखने वाले राम का भजन करो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा।
बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा॥
जासु नाम त्रय ताप नसावन।
सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन॥

हिंदी अर्थ – हे नाथ! वे शरण जाने पर ऐसे अधर्मी को भी नहीं त्यागते कि जिसको विश्व द्रोह करने का पाप लगा हो॥
हे रावण! आप अपने मन में निश्चय समझो कि जिनका नाम लेने से तीनों प्रकार के ताप निवृत्त हो जाते हैं वेही प्रभु आज पृथ्वीपर प्रकट हुए हैं॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।
परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस ॥39(क)॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! मैं आपके वारंवार पावों में पड़कर विनती करता हूँ, सो मेरी विनती सुनकर आप मान, मोह, और मद को छोड़ श्री रामचन्द्रजी की सेवा करो ॥39(क)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात।
तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात ॥

हिंदी अर्थ – पुलस्त्य ऋषी ने अपने शिष्य को भेजकर यह बात कहला भेजी थी सो अवसर पाकर यह बात हे रावण! मैंने आपसे कही है ॥

विभीषण और माल्यावान का रावण को समझाना

माल्यवंत अति सचिव सयाना।
तासु बचन सुनि अति सुख माना॥
तात अनुज तव नीति बिभूषन।
सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥

हिंदी अर्थ – वहां माल्यावान नाम एक सुबुद्धि मंत्री बैठा हुआ था. वह विभीषण के वचन सुनकर अति प्रसन्न हुआ ॥
और उसने रावण से कहा कि तात ‘आपका छोटा भाई बड़ा नीति जानने वाला हैँ इस वास्ते बिभीषण जो बात कहता है, उसी बात को आप अपने मन में धारण करो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ।
दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ॥
माल्यवंत गह गयउ बहोरी।
कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी॥

हिंदी अर्थ – माल्यवान्‌ की यह बात सुनकर रावण ने कहा कि हे राक्षसो! ये दोनों नीच शत्रु की बड़ाई करते हैं, तुममें से कोई भी उनको यहां से निकाल नहीं देते, यह क्या बात है॥
तब माल्यवान् तो उठकर अपने घर को चला गया. और बिभीषण ने हाथ जोड़कर फिर कहा॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥

हिंदी अर्थ – कि हे नाथ! वेद और पुरानो में ऐसा कहा है कि सुबुद्धि और कुबुद्धि सबके मन में रहती है। जहा सुमति है, वहा संपदा है. आर जहा कुबुद्धि है वहां विपत्ति॥

तव उर कुमति बसी बिपरीता।
हित अनहित मानहु रिपु प्रीता॥
कालराति निसिचर कुल केरी।
तेहि सीता पर प्रीति घनेरी॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! आपके हृदय में कुबुद्धि आ बसी है, इसी से आप हित और अनहितको. विपरीत मानते हो की जिससे शत्रु को प्रीति होती है॥
जो राक्षसों के कुलकी कालरात्रि है, उस सीता पर आपकी बहुत प्रीति हैं यह कुबुद्धि नहीं तो और क्या हे॥

तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार।
सीता देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार ॥40॥

हिंदी अर्थ – हे तात में चरण पकड कर आपसे प्रार्थना करता हूं सो मेरी प्रार्थना अंगीकार करो। आप सीता रामचंद्रजी को दे दो, जिससे आपका बहुत भला होगा ॥40॥

विभीषण का अपमान

बुध पुरान श्रुति संमत बानी।
कही बिभीषन नीति बखानी॥
सुनत दसानन उठा रिसाई।
खल तोहि निकट मृत्यु अब आई॥

हिंदी अर्थ – सयाने बिभीषण ने नीति को कहकर वेद और पुराण के संमत वाणी कही॥
जिसको सुनकर रावण गुस्सा होकर उठ खड़ा हुआ और बोला कि हे दुष्ट! तेरी मृत्यु निकट आ गयी दीखती है॥

जिअसि सदा सठ मोर जिआवा।
रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा॥
कहसि न खल अस को जग माहीं।
भुज बल जाहि जिता मैं नाहीं॥

हिंदी अर्थ – हे नीच! सदा तू जीवि का तो मेरी पाता है और शत्रुका पक्ष सदा अच्छा लगता है॥
हे दुष्ट! तू यह नही कहता कि जिसको हमने अपने भुज बल से नहीं जीता ऐसा जगत्‌ में कौन है? ॥

मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती।
सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती॥
अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा।
अनुज गहे पद बारहिं बारा॥

हिंदी अर्थ – हे शठ मेरी नगरी में रहकर जो तू तपस्वी से प्रीति करता है तो हे नीच! उससे जा मिल और उसी से नीति का उपदेश कर॥
ऐसे कहकर रावण ने लात का प्रहार किया, परंतु बिभीषण ने तो इतने परभी वारंत्रार पैर ही पकड़े॥

उमा संत कइ इहइ बड़ाई।
मंद करत जो करइ भलाई॥
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा।
रामु भजें हित नाथ तुम्हारा॥

हिंदी अर्थ – शिवजी कहते हैं, है पार्वती! सत्पुरुषों की यही बड़ाई है कि बुरा करने वालों की भलाई ही सोचते है और करते हैं॥
विभीषण ने कहा, हे रावण! आप मेरे पिता के बराबर हो इस वास्ते आपने जो मुझको मारा वह ठीक ही है, परंतु आपका भला तो रामचन्द्रजी के भजन से ही होगा॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

सचिव संग लै नभ पथ गयऊ।
सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ॥

रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।
मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि ॥41॥

हिंदी अर्थ – कि हे प्रभु! रामचन्द्र जी सत्य प्रतिज्ञ है और तेरी सभा काल के आधीन है। और में अब रामचन्द्रजी के शरण जाता हूँ सो मुझको अपराध मत लगाना ॥41॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

विभीषण का प्रभु श्रीरामकी शरण के लिए प्रस्थान

अस कहि चला बिभीषनु जबहीं।
आयूहीन भए सब तबहीं॥
साधु अवग्या तुरत भवानी।
कर कल्यान अखिल कै हानी॥

हिंदी अर्थ – जिस वक़्त विभीषण ऐसे कहकर लंका से चले उसी समय तमाम राक्षस आयुहीन हो गये॥
महादेव जी ने कहा कि हे पार्वती! साधू पुरुषो की अवज्ञा करनी ऐसी ही बुरी है कि वह तुरंत तमाम कल्याण को नाश कर देती है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

रावन जबहिं बिभीषन त्यागा।
भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा॥
चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं।
करत मनोरथ बहु मन माहीं॥

हिंदी अर्थ – रावण ने जिस समय बिभीषण का परित्याग किया उसी क्षण वह मंदभागी विभवहीन हो गया॥
बिभीषण मन में अनेक प्रकार के मनोरथ करते हुए आनंद के साथ रामचन्द्रजी के पास चला॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

देखिहउँ जाइ चरन जलजाता।
अरुन मृदुल सेवक सुखदाता॥
जे पद परसि तरी रिषनारी।
दंडक कानन पावनकारी॥

हिंदी अर्थ – विभीषण मन में विचार करने लगा कि आज जाकर मैं रघुनाथ जी के भक्त लोगों के सुखदायी अरुण (लाल वर्ण के सुंदर चरण) और सुकोमल चरण कमलों के दर्शन करूंगा॥
कैसे हे चरण कमल कि जिनको परस कर (स्पर्श पाकर) गौतम ऋषिकी स्त्री (अहल्या) ऋषिके शापसे पार उतरी, जिनसे दंडक वन पवित्र हुआ है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

जे पद जनकसुताँ उर लाए।
कपट कुरंग संग धर धाए॥
हर उर सर सरोज पद जेई।
अहोभाग्य मैं देखिहउँ तेई॥

हिंदी अर्थ – जिनको सीताजी अपने हृदय में सदा लगाये रहतीं है. जो कपटी हरिण ( मारीच राक्षस) के पीछे दौड़े॥
रूप हृदय रूपी सरोवर भीतर कमल रूप हैं, उन चरणो को जाकर मैं देखूंगा। अहो! मेरा बड़ा भाग्य हे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ।
ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ ॥42॥

हिंदी अर्थ – जिन चरणो की पादुकाओ में भरतजी रात दिन मन लगाये है, आज मैं जाकर इन्ही नेत्रो से उन चरणों को देखूंगा ॥42॥

ऐहि बिधि करत सप्रेम बिचारा।
आयउ सपदि सिंदु एहिं पारा॥
कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा।
जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा॥

हिंदी अर्थ – बिभीषण इस प्रकार प्रेम सहित अनेक प्रकार के विचार करते हुए तुरंत समुद्र के इस पार आए॥
वानरों ने बिभीषण को आते देखकर जाना कि यह कोई शत्रु का दूत है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

ताहि राखि कपीस पहिं आए।
समाचार सब ताहि सुनाए॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई।
आवा मिलन दसानन भाई॥

हिंदी अर्थ – वानर उनको वही रखकर सुग्रीव के पास आये और जाकर उनके सब समाचार सुग्रीव को सुनाये॥
तब सुग्रीव ने जाकर रामचन्द्रजी से कहा कि हे प्रभु! रावण का भाई आपसे मिलने को आया है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

कह प्रभु सखा बूझिऐ काहा।
कहइ कपीस सुनहु नरनाहा॥
जानि न जाइ निसाचर माया।
कामरूप केहि कारन आया॥

हिंदी अर्थ – तब रामचन्द्रजी ने कहा कि हे सखा! तुम्हारी क्या राय है (तुम क्या समझते हो)? तब सुग्रीव ने रामचन्द्र जी से कहा कि हे नर नाथ! सुनो,॥
राक्षसों की माया जानने में नहीं आ सकती। इसी बास्ते यह नहीं कह सकते कि यह मनोवांछित रूप धरकर यहां क्यों आया है?॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

भेद हमार लेन सठ आवा।
राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी।
मम पन सरनागत भयहारी॥

हिंदी अर्थ – मेरे मन में तो यह जँचता है कि यह शठ हमारा भेद लेने को आया है। इस वास्ते इसको बांधकर रख देना चाहिये॥
तब रामचन्द्रजी ने कहा कि हे सखा! तुमने यह नीति बहुत अच्छी बिचारी परंतु मेरा पण शरणागतों का भय मिटानेका है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना।
सरनागत बच्छल भगवाना॥

हिंदी अर्थ – रामचन्द्रजी के वचन सुनकर हनुमानजी को बड़ा आनंद हुआ कि भगवान् सच्चे शरणागत वत्सल हैं (शरण में आए हुए पर पिता की भाँति प्रेम करने वाले)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम