Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 43 to 48 ||
॥ दोहा 43 ॥
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि,ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि।
हिंदी अर्थ – कहा है कि जो आदमी अपने अहित को विचार कर शरणागत को त्याग देते हैं, उन मनुष्यो को पामर (पागल) और पापरूप जानना चाहिये क्योंकि उनको देखने ही से हानि होती है ॥43॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
विभीषण को भगवान रामकी शरण प्राप्ति
॥ चौपाई ॥
कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू।
आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू॥
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं।
जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥
हिंदी अर्थ – प्रभु ने कहा कि चाहे कोई महापापी होवे अर्थात् जिसको करोड़ ब्रह्महत्या का पाप लगा हुआ होवे और वह भी यदि मेरे शरण चला आवे तो मै उसको किसी कदर छोंड़ नहीं सकता॥
यह जीव जब मेरे सन्मुख हो जाता है तब मैं उसके करोड़ों जन्मों के पापो को नाश कर देता हूं॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
पापवंत कर सहज सुभाऊ।
भजनु मोर तेहि भाव न काऊ॥
जौं पै दुष्ट हृदय सोइ होई।
मोरें सनमुख आव कि सोई॥
हिंदी अर्थ – पापी पुरुषों का यह सहज स्वभाव है कि उनको किसी प्रकार से मेरा भजन अच्छा नहीं लगता॥
हे सुग्रीव! जो पुरुष (वह रावण का भाई) दुष्ट हृदय होगा क्या वह मेरे सत्पर आ सकेगा? कदापि नहीं॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥
भेद लेन पठवा दससीसा।
तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा॥
हिंदी अर्थ – हे सुग्रीव! जो आदमी निर्मल अंतःकरण वाला होगा, वही मुझ को पावेगा क्योंकि मुझको छल, छिद्र और कपट कुछ भी अच्छा नहीं लगता॥
कदाचित् रावण ने इसको भेद लेने के लिए भेजा होगा, फिर भी हे सुग्रीव! हमको उसका न तो कुछ भय है और न किसी प्रकार की हानि है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जग महुँ सखा निसाचर जेते।
लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते॥
जौं सभीत आवा सरनाईं।
रखिहउँ ताहि प्रान की नाईं॥
हिंदी अर्थ – क्योंकि जगत् में जितने राक्षस है, उन सबों को लक्ष्मण एक क्षणभर में मार डालेगा॥
और उनमें से भयभीत होकर जो मेरे शरण आजायगा उसको तो में अपने प्राणों के बराबर रखूँगा॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।
जय कृपाल कहि कपि चले अंगद हनू समेत ॥44॥
हिंदी अर्थ – हँसकर कृपा निधान श्रीराम ने कहा कि हे सुग्रीव! चाहो वह शुद्ध मन से आया हो अथवा भेद बुद्धि विचार कर आया हो, दोनो ही तरह से इसको यहां ले आओ। रामचन्द्र जी के ये वचन सुनकर अंगद और हनुमान् आदि सब बानर हे कृपालु! आपका. जय हो ऐसे कहकर चले ॥44॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
विभीषण को भगवान रामकी शरण प्राप्ति
सादर तेहि आगें करि बानर।
चले जहाँ रघुपति करुनाकर॥
दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता।
नयनानंद दान के दाता॥
हिंदी अर्थ – वे वानर आदरसहित विभीषणको अपने आगे लेकर उस स्थान को चले कि जहां करुणा निधान श्री रघुनाथ जी विराजमान थे॥
विभीषण ने नेत्रों को आनन्द देने वाले उन दोनों भाइयों को दूर ही से देखा॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
बहुरि राम छबिधाम बिलोकी।
रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी॥
भुज प्रलंब कंजारुन लोचन।
स्यामल गात प्रनत भय मोचन॥
हिंदी अर्थ – फिर वह छवि के धाम श्रीरामचन्द्रजी को देखकर पलको को रोककर एकटक देखते खड़े रहे॥
श्रीरघुनाथजी का स्वरूप कैसा है जिसमें लंबी भुजा है, कमल से लाल नेत्र हैं। मेघसा सधन श्याम शरीर है, जो शरणागतों के भयको मिटाने वाला है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सघ कंध आयत उर सोहा।
आनन अमित मदन मन मोहा॥
नयन नीर पुलकित अति गाता।
मन धरि धीर कही मृदु बाता॥
हिंदी अर्थ – जिसके सिंह के से कंधे है, विशाल वक्षःस्थल शोभायमान है, मुख ऐसा है कि जिसकी छवि को देखकर असंख्य कामदेव मोहित हो जाते हैं॥
उस स्वरूप का दर्शन होते ही विभीषण को नेत्रों में जल आ गया। शरीर अत्यंत पुलकित हो गया, तथापि उसने मन में धीरज धरकर ये सुकोमल वचन कहे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
नाथ दसानन कर मैं भ्राता।
निसिचर बंस जनम सुरत्राता॥
सहज पापप्रिय तामस देहा।
जथा उलूकहि तम पर नेहा॥
हिंदी अर्थ – कि हे देवताओं के पालक! मेरा राक्षसों के वंश में तो जन्म है और हे नाथ! मैं रावण का भाई॥
स्वभाव से ही पाप मुझको प्रिय लगता है, और यह मेरा तामस शरीर है सो यह बात ऐसी है कि जैसे उल्लू का अंधकार पर सदा स्नेह रहता है। ऐसे मेरे पाप पर प्यार है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥45॥
हिंदी अर्थ – तथापि हे प्रभु! हे भय और संकट मिटाने वाले! मै कानों से आपका सुयश सुनकर आपके शरण आया हूँ। सो हे आर्ति (दुःख) हरण हारे! हे शरणागतों को सुख देने वाले प्रभु! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो ॥45॥
विभीषण को भगवान रामकी शरण प्राप्ति
अस कहि करत दंडवत देखा।
तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा॥
दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा।
भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा॥
हिंदी अर्थ – ऐसे कहते हुए बिभीषण को दंडवत करते देखकर प्रभु बड़े अल्हाद के साथ तुरंत उठ खड़े हए॥
और बिभीषण के दीन वचन सुनकर प्रभुके मन में वे बहुत भाए आर उसी से प्रभु ने अपनी विशाल भुजासे उनको उठाकर अपनी छाती से लगाया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी।
बोले बचन भगत भयहारी॥
कहु लंकेस सहित परिवारा।
कुसल कुठाहर बास तुम्हारा॥
हिंदी अर्थ – लक्ष्मण सहित प्रभुने उससे मिलकर उसको अपने पास बिठाया. फिर भक्तोंके हित करने वाले प्रभुने ये वचन कहे॥
कि हे लंकेश विभीषण! आपके परिवार सहित कुशल तो है? क्योंकि आपका रहना कुमार्गियों के बीच में है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
खल मंडली बसहु दिनु राती।
सखा धरम निबहइ केहि भाँती॥
मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती।
अति नय निपुन न भाव अनीती॥
हिंदी अर्थ – रात दिन तुम दुष्टोंकी मंडली के बीच रहते हो इससे, हे सखा! आपका धर्म कैसे निभता होगा॥
मैने तुम्हारी सब गति जानली है। तुम बडे नीति निपुण हो और तुम्हारा अभिप्राय अन्याय पर नहीं है (तुम्हें अनीति नहीं सुहाती)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
बरु भल बास नरक कर ताता।
दुष्ट संग जनि देइ बिधाता॥
अब पद देखि कुसल रघुराया।
जौं तुम्ह कीन्हि जानि जन दाया॥
हिंदी अर्थ – रामचन्द्रजी के ये वचन सुनकर विभीषण ने कहा कि हे प्रभु! चाहे नरक में रहना अच्छा है परंतु दुष्ट की संगति अच्छी नहीं. इसलिये हे विधाता! कभी दुष्टकी संगति मत देना॥
हे रघुनाथजी! आपने अपना जन जानकर जो मुझ पर दया की, उससे आपके दर्शन हुए। हे प्रभु! अब में आपके चरणो के दर्शन करने से कुशल हूँ॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।
जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम ॥46॥
हिंदी अर्थ – है प्रभु! यह मनुष्य जब तक शोक के धाम रूप काम अर्थात् लालसा को छोंड कर श्रीरामचन्द्रजी के चरणों की सेवा नहीं करता तब तक इस जीवको स्वप्रमें भी न तो कुशल है और न कहीं मनको विश्राम (शांति) है ॥46॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
भगवान श्री राम की महिमा
तब लगि हृदयँ बसत खल नाना।
लोभ मोह मच्छर मद माना॥
जब लगि उर न बसत रघुनाथा।
धरें चाप सायक कटि भाथा॥
हिंदी अर्थ – जब तक धनुप बाण धारण किये और कमर में तरकस कसे हुए श्रीरामचन्द्रजी हृदय में आकर नहीं बिराजते तब तक लोभ, मोह, मत्सर, मद और मान ये अनेक दुष्ट हृदय के भीतर निवास कर सकते हैं और जब आप आकर हृदयमें विराजते हो तब ये सब भाग जाते हैं॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
ममता तरुन तमी अँधिआरी।
राग द्वेष उलूक सुखकारी॥
तब लगि बसति जीव मन माहीं।
जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं॥
हिंदी अर्थ – जब तक जीव के हृदय में प्रभुका प्रताप रूप सूर्य उदय नहीं होता तब तक राग द्वेष रूप उल्लुओं को सुख देने वाली ममता रूप सघन अंधकार मय अंधियारी रात्रि रहा करती है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
अब मैं कुसल मिटे भय भारे।
देखि राम पद कमल तुम्हारे॥
तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला।
ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला॥
हिंदी अर्थ – हे राम! अब मैंने आपके चरण कमलों का दर्शन कर लिया है इससे अब मैं कुशल हूं और मेरा विकट भय भी निवृत्त हो गया है॥
हे प्रभु! हे दयालु! आप जिसपर अनुकूल रहते हो उसको तीन प्रकार के भय और दुःख (आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप) कभी नहीं व्यापते॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
मैं निसिचर अति अधम सुभाऊ।
सुभ आचरनु कीन्ह नहिं काऊ॥
जासु रूप मुनि ध्यान न आवा।
तेहिं प्रभु हरषि हृदयँ मोहि लावा॥
हिंदी अर्थ – हे प्रभु! मैं जातिका राक्षस हूं। मेरा स्वभाव अति अधम है। मैंने कोई भी शुभ आचरन नहीं किया है॥
तिसपर भी प्रभुने कृपा करके आनंद से मुझ को छाती से लगाया कि जिस प्रभु के स्वरूपको ध्यान पाना मुनिलोगों को कठिन है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
अहोभाग्य मम अमित अति राम कृपा सुख पुंज।
देखेउँ नयन बिरंचि सिव सेब्य जुगल पद कंज ॥47॥
हिंदी अर्थ – सुख की राशि रामचन्द्रजी की कृपासे अहो! आज मेरा भाग्य बड़ा अमित और अपार हैं क्योकि ब्रह्माजी और महादेव जी जिन चरणारविन्द-युगल की (युगल चरण कमलों कि) सेवा करते हैं, उन चरण कमलों का मैंने अपने नेत्रों से दर्शन किया ॥47॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
प्रभु श्री रामचंद्रजी की महिमा
चौपाई
सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ।
जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ॥
जौं नर होइ चराचर द्रोही।
आवै सभय सरन तकि मोही॥
हिंदी अर्थ – बिभीषण की भक्ति देखकर रामचन्द्रजी ने कहा कि हे सखा! मैं अपना स्वभाव कहता हूं, सो तू सुन, मेरे स्वभाव को या तो का कभुशुंडि जानते हैं या महादेव जानते है, या पार्वती जानती है। इनके सिवा दूसरा कोई नहीं जानता॥
प्रभु कहते हैं कि जो मनुष्य चराचर से (जड़-चेतन) द्रोह रखता हो, और वह भयभीत होंके मेरे शरण आ जाए तो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
तजि मद मोह कपट छल नाना।
करउँ सद्य तेहि साधु समाना॥
जननी जनक बंधु सुत दारा।
तनु धनु भवन सुहृद परिवारा॥
हिंदी अर्थ – मद, मोह, कपट और नाना प्रकार के छल को छोड़कर हे सखा! मैं उसको साधु पुरुष के समान कर लेता हूँ॥
देखो, माता, पिता, बंधू, पुत्र, श्री, सन, धन, घर, सुहृद और कुटुम्ब. जय सियाराम जय जय सियाराम
सब कै ममता ताग बटोरी।
मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥
समदरसी इच्छा कछु नाहीं।
हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥
हिंदी अर्थ – इन सबके ममता रूप तागों को इकट्ठा करके एक सुन्दर डोरी बट (डोरी बनाकर) और उससे अपने मनको मेरे चरणों में बांध दे। अर्थात् सबमेंसे ममता छोड़कर केवल मुझ में ममता रखें, जैसे ”त्वमेव माता पिता त्वमेव त्वमेव बंधूश्चा सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्व मम देवदेव”॥
जो भक्त समदर्शी है और जिसके किसी प्रकारकी इच्छा नहीं हे तथा जिसके मनमें हर्ष, शोक, और भय नहीं है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
अस सज्जन मम उर बस कैसें।
लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें॥
तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें।
धरउँ देह नहिं आन निहोरें॥
हिंदी अर्थ – ऐसे सत्पुरुष मेरे हृदय में कैसे रहते है, कि जैसे लोभी आदमी के मन में धन सदा बसा रहता है ॥
हे बिभीषण! तुम्हारे जैसे जो प्यारे सन्त भक्त हैं उन्ही के लिए मैं देह धारण करता हूं, और दूसरा मेरा कुछ भी प्रयोजन नहीं है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम।
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम ॥48॥
हिंदी अर्थ – जो लोग सगुण उपासना करते हैं, बड़े हितकारी हैं, नीति में निरत है, नियम में दृढ़ है और जिनकी ब्राह्मणों के चरण कमलों में प्रीति है वे मनुष्य मुझ को प्राणों के समान प्यारे लगते हें ॥48॥
विभीषण की भगवान श्री राम से प्रार्थना
सुनु लंकेस सकल गुन तोरें।
तातें तुम्ह अतिसय प्रिय मोरें॥
राम बचन सुनि बानर जूथा।
सकल कहहिं जय कृपा बरूथा॥
हिंदी अर्थ – हे लंकेश (लंका पति)! सुनो, आप में सब गुण है और इसीसे आप मुझको अतिशय प्यारें लगते हो॥
रामचन्द्रजी के ये वचन सुनकर तमाम वानरों के झुंड कहने लगे कि हे कृपाके पुंज! आपकी जय हो॥
सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी।
नहिं अघात श्रवनामृत जानी॥
पद अंबुज गहि बारहिं बारा।
हृदयँ समात न प्रेमु अपारा॥
हिंदी अर्थ – ओर विभीषण भी प्रभु की बाणी को सुनता हुआ उसको कर्णा मृतरूप जानकर तृप्त नहीं होता था॥
और वारंवार रामचन्द्वजी के चरण कमल धरकर ऐसा आल्हादित हुआ कि वह अपार प्रेम हृदयके अंदर नहीं समाया॥
सुनहु देव सचराचर स्वामी।
प्रनतपाल उर अंतरजामी॥
उर कछु प्रथम बासना रही।
प्रभु पद प्रीति सरित सो बही॥
हिंदी अर्थ – इस दशा को पहुँच कर बिभीषण ने कहा कि हे देव! चराचर सहित संसार के (चराचर जगत के) स्वामी! हे शरणागतों के पालक! हे हृदय के अंतर्यामी! सुनिए॥
पहले मेरे जो कुछ वासना थी वह भी आपके चरण कमल की प्रीति रूप नदी से बह गई॥
अब कृपाल निज भगति पावनी।
देहु सदा सिव मन भावनी॥
एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा।
मागा तुरत सिंधु कर नीरा॥
हिंदी अर्थ – हे कृपालू! अब आप दया करके मुझको आपकी वह पावन करन हारी भक्ति दीजिए कि जिसको महादेव जी सदा धारण करते हैं॥
रणधीर राम चन्द्रजी ने एवमस्तु ऐसे कहकर तुरत समुद्र का जल मँगवाया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जदपि सखा तव इच्छा नहीं।
मोर दरसु अमोघ जग माहीं॥
अस कहि राम तिलक तेहि सारा।
सुमन बृष्टि नभ भई अपारा॥
हिंदी अर्थ – और कहा कि हे सखा! यद्यपि तेरे किसी बात की इच्छा नहीं है तथापि जगत् में मेरा दर्शन अमोघ है अर्थात् निष्फल नही है॥ ऐसे कहकर प्रभु ने बिभीषण के राज तिलक कर दिया. उस समय आकाश में से अपार पुष्पों की वर्षा हुई॥ जय सियाराम जय जय सियाराम