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Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 49 to 54 ||

Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 49 to 54 ||

॥ दोहा 49 ॥

रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड।
जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेउ राजु अखंड ॥49(क)॥

हिंदी अर्थ – रावण का क्रोध तो अग्नि के समान है और उसका श्वास प्रचंड पवन के तुल्य है। उससे जलते हुए विभीषण को बचाकर प्रभुने उसको अखंड राज दिया ॥49(क)॥

जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ।
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ ॥49(ख)॥

हिंदी अर्थ – महादेव ने दश माथे देने पर रावण को जो संपदा दी थी वह संपदा कम समझकर रामचन्द्रजी ने बिभीषण को सकुचते हुए दी ॥49(ख)॥

समुद्र पार करने के लिए विचार

॥ चौपाई ॥

अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना।
ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना॥
निज जन जानि ताहि अपनावा।
प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा॥

हिंदी अर्थ – ऐसे प्रभु को छोड़कर जो आदमी दूसरे को भजते हैं वे मनुष्य बिना सींग पूंछ के पशु हैं॥
प्रभु ने बिभीषण को अपना भक्त जानकर जो अपनाया, यह प्रभु का स्वभाव सब वानरों को अच्छा लगा॥

पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी।
सर्बरूप सब रहित उदासी॥
बोले बचन नीति प्रतिपालक।
कारन मनुज दनुज कुल घालक॥

हिंदी अर्थ – प्रभु तो सदा सर्वत्र, सबके घटमें रहने वाले (सबके हृदय में बसने वाले), सर्वरूप (सब रूपों में प्रकट), सर्वरहित और सदा उदासीन ही हैं॥
राक्षस कुल के संहार करने वाले, नीति को पालने वाले, माया से मनुष्य मूर्ति (कारण से भक्तों पर कृपा करने के लिए मनुष्य बने हुए), श्रीरामचन्द्रजी ने सब मंत्रियों से कहा॥

सुनु कपीस लंकापति बीरा।
केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा॥
संकुल मकर उरग झष जाती।
अति अगाध दुस्तर सब भाँति॥

हिंदी अर्थ – कि हे लंकेश (लंकापति विभीषण)! हे वानर राज! हे वीर पुरुषो सुनो, अब इस गंभीर समुद्र को पार कैसे उतरें? वह युक्ति निकालो॥
क्योंकि यह समुद्र सर्प, मगर और अनेक जाति की मछलियों से व्याप्त हो रहा है, बड़ा अथाह है, इसी से सब प्रकार से मुझको तो दुस्तर (कठिन) मालूम होता है॥

कह लंकेस सुनहु रघुनायक।
कोटि सिंधु सोषक तव सायक॥
जद्यपि तदपि नीति असि गाई।
बिनय करिअ सागर सन जाई॥

हिंदी अर्थ – उस वक्त लंकेश अर्थात् विभीषण ने कहा कि हे रघुनाथ! सुनो, आपके बाण ऐसे हैं कि जिनसे करोडो समुद्र सूख जाए, तब इस समुद्र का क्या भार है॥
तथापि नीति में ऐसा कहा है कि पहले साम वचनों से काम लेना चाहिये, इस वास्ते समुद्र के पास पधार कर आप विनती करो॥

प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि॥
बिनु प्रयास सागर तरिहि सकल भालु कपि धारि ॥50॥

हिंदी अर्थ – बिभीषण कहता है कि हे प्रभु! यह समुद्र आपका कुलगुरु है। सो विचार कर अवश्य उपाय कहेगा और उपाय को धरकर ये वानर और रीछ बिना परिश्रम समुद्रके पार हो जाएँगे ॥50॥

समुद्र पार करने के लिए विचार

सखा कही तुम्ह नीति उपाई।
करिअ दैव जौं होइ सहाई॥
मंत्र न यह लछिमन मन भावा।
राम बचन सुनि अति दुख पावा॥

हिंदी अर्थ – बिभीषण की यह बात सुनकर रामचन्द्रजी ने कहा कि हे सखा! तुमने यह उपाय तो बहुत अच्छा बतलाया और हम इस उपाय को करेंगे भी, परंतु यदि दैव सहाय होगा तो सफल होगा॥
यह सलाह लक्ष्मण के मन में अच्छी नही लगी अतएव रामचन्द्रजी के वचन सुनकर लक्ष्मण ने बड़ा दुख पाया॥

नाथ दैव कर कवन भरोसा।
सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा॥
कादर मन कहुँ एक अधारा।
दैव दैव आलसी पुकारा॥

हिंदी अर्थ – और लक्ष्मण ने कहा कि हे नाथ! दैव का क्या भरोसा है? आप तो मन में क्रोध लाकर समुद्र को सुखा दीजिये॥
दैवपर भरोसा रखना यह तो कायर पुरुषों के मनका एक आधार है; क्योंकि वेही आलसी लोग दैव करेगा सो होगा ऐसा विचार कर दैव दैव करके पुकारते रहते हैं॥

सुनत बिहसि बोले रघुबीरा।
ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा॥
अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई।
सिंधु समीप गए रघुराई॥

हिंदी अर्थ – लक्ष्मण के ये वचन सुनकर प्रभुने हँसकर कहा कि हे भाई! मैं ऐसे ही करूंगा पर तू मन मे कुछ धीरज धर॥
प्रभु लक्ष्मण को ऐसे कह समझाय बुझाय समुद्रके निकट पधारे॥

प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई।
बैठे पुनि तट दर्भ डसाई॥
जबहिं बिभीषन प्रभु पहिं आए।
पाछें रावन दूत पठाए॥

हिंदी अर्थ – और प्रथम ही प्रभुने जाकर समुद्र को प्रणाम किया और फिर कुश बिछा कर उसके तटपर विराजे॥
जब बिभीषण रामचन्द्रजी के पास चला आया तब पीछेसे रावणने अपना दूत भेजा॥

सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह।
प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह ॥51॥

हिंदी अर्थ – उस दूतने कपट से वानर का रूप धरकर वहां का तमाम हाल देखा. तहां प्रभु का शरणागतों पर अतिशय स्नेह देखकर उसने अपने मन में प्रभु के गुणों की बड़ी सराहना की ॥51॥

रावणदूत शुक का आना

प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ।
अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ॥
रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने।
सकल बाँधि कपीस पहिं आने॥

हिंदी अर्थ – और देखते देखते प्रेम ऐसा बढ़ गया कि वह (रावणदूत शुक) छिपाना भूल कर रामचन्द्रजीके स्वभाव की प्रकट में प्रशंसा करने लगा॥
जब वानरो ने जाना कि यह शत्रु का दूत है तब उसे बांधकर सुग्रीव के पास लाये।

कह सुग्रीव सुनहु सब बानर।
अंग भंग करि पठवहु निसिचर॥
सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए।
बाँधि कटक चहु पास फिराए॥

हिंदी अर्थ – सुग्रीव ने देखकर कहा कि हे वानरो सुनो, इस राक्षस दुष्ट को अंग-भंग करके भेज दो॥
सुग्रीव के ये वचन सुनकर सब वानर दौड़े, फिर उसको बांध कर कटक (सेना) में चारों ओर फिराया॥

बहु प्रकार मारन कपि लागे।
दीन पुकारत तदपि न त्यागे॥
जो हमार हर नासा काना।
तेहि कोसलाधीस कै आना॥

हिंदी अर्थ – वानर उसको अनेक प्रकार से मारने लगे और वह अनेक प्रकार से दीन की भांति पुकारने लगा फिर भी वानरोंने उसको नहीं छोड़ा॥
तब उसने पुकार कर कहा कि जो हमारी नाक कान काटते है उनको श्रीरामचन्द्रजी की शपथ है॥

सुनि लछिमन सब निकट बोलाए।
दया लागि हँसि तुरत छोड़ाए॥
रावन कर दीजहु यह पाती।
लछिमन बचन बाचु कुलघाती॥

हिंदी अर्थ – सेना में खरभर सुनकर लक्ष्मण ने उसको अपने पास बुलाया और दया आ जानेसे हँसकर लक्ष्मण ने उसको छुड़ा दिया॥
एक पत्री लिख कर लक्ष्मण ने उसको दी और कहा कि यह पत्री रावण को देना और उस कुलघाती कों कहना कि ये लक्ष्मण के हित वचन (संदेसे को) बाँचो॥

कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार।
सीता देइ मिलहु न त आवा कालु तुम्हार ॥52॥

हिंदी अर्थ – और उस मूर्ख से मेरा बड़ा अपार सन्देशा मुहँ सें भी कह देना कि या तो तू सीताजी को देदे और हमारे शरण आजा, नही तो तेरा काल आया समझ ॥52॥

लक्ष्मणजी के पत्र को लेकर रावणदूत का लौटना

तुरत नाइ लछिमन पद माथा।
चले दूत बरनत गुन गाथा॥
कहत राम जसु लंकाँ आए।
रावन चरन सीस तिन्ह नाए॥

हिंदी अर्थ – लक्ष्मण के ये वचन सुन तुरंत लक्ष्मण के चरणों में शिर झुका कर रामचन्द्रजी के गुणों की प्रशंसा करता हुआ वह वहांसे चला॥
रामचन्द्रजी के यश कों गाता हुआ लंकामें आया. रावण के पास जाकर उसने रावणके चरणों में प्रणाम किया॥

बिहसि दसानन पूँछी बाता।
कहसि न सुक आपनि कुसलाता॥
पुन कहु खबरि बिभीषन केरी।
जाहि मृत्यु आई अति नेरी॥

हिंदी अर्थ – उस समय रावण ने हँसकर उससे पूंछा कि हे शुक! अपनी कुशलता की बात कहो॥
और फिर विभीषण की कुशल कहो, कि जिसकी मौत बहुत निकट आ गयी है॥

करत राज लंका सठ त्यागी।
होइहि जव कर कीट अभागी॥
पुनि कहु भालु कीस कटकाई।
कठिन काल प्रेरित चलि आई॥

हिंदी अर्थ – उस शठने लंका को राज करते करते छोड़ दिया सो अब उस अभागे की जवके (जौके) घुनके (कीड़ा) समान दशा होगी अर्थात् जैसे जव पीसने के साथ उसमें का घुन भी पीस जाता है, ऐसे रामके साथ वह भी मारा जाएगा॥
फिर कहो कि रीछ और वानरों की सेना कैसी और कितनी है कि जो कठिन कालकी प्रेरणा से इधरको चली आती है॥

जिन्ह के जीवन कर रखवारा।
भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा॥
कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी।
जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी॥

हिंदी अर्थ – हे शुक! अभी उनके जीवकी रक्षा करने वाला बिचारा कोमल हृदय समुद्र हुआ है (उनके और राक्षसों के बीच में यदि समुद्र न होता तो अब तक राक्षस उन्हें मारकर खा गए होते)। सो रहे, इससे कितने दिन बचेंगे॥
और फिर उन तपस्वियो की बात कहो जिनके ह्रदय में मेरी बड़ी त्रास बैठ रही है (मेरा बड़ा डर है)॥

की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर।
कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर ॥53॥

हिंदी अर्थ – हे शुक! क्या तेरी उनसे भेंट हुई? क्या वे मेरी सुख्याति (सुयश) कानों से सुनकर पीछे लौट गए। हे शुक! शत्रु के दलका तेज आर बल क्यों नहीं कहता? तेरा चित्त चकित-सा (भौंचक्का-सा) कैसे हो रहा है? ॥53॥

दूत का रावण को समझाना

नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें।
मानहु कहा क्रोध तजि तैसें॥
मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा।
जातहिं राम तिलक तेहि सारा॥

हिंदी अर्थ – रावण के ये वचन सुनकर शुकने कहा कि हे नाथ! जैसे आप कृपा करके पूंछते हो ऐसेही क्रोध को त्याग कर जो वचन में कहूं उसको मानो॥
हे नाथ! जिस समय आपका भाई राम से जाकर मिला उसी क्षण रामने उसके राज तिलक कर दिया है॥

रावन दूत हमहि सुनि काना।
कपिन्ह बाँधि दीन्हें दुख नाना॥
श्रवन नासिका काटैं लागे।
राम सपथ दीन्हें हम त्यागे॥

हिंदी अर्थ – मै वानर का रूप धरकर सेना के भीतर घुसा, सो फिरते फिरते वानरों ने जब मुझको आपका दूत जान लिया तब उन्होंने मुझको बांधकर अनेक प्रकारका दुःख दिया॥
और मेरी नाक कान काटने लगे, तब मैंने उनको राम की शपथ दी तब उन्होंने मुझको छोड़ दिया॥

पूँछिहु नाथ राम कटकाई।
बदन कोटि सत बरनि न जाई॥
नाना बरन भालु कपि धारी।
बिकटानन बिसाल भयकारी॥

हिंदी अर्थ – हे नाथ! आप मुझको वानरों की सेनाके समाचार पूँछते हो सो वे सौ करोड़ मुखों से तो कही नहीं जा सकती॥
हे रावण! रीछ और वानर अनेक रंग धारण किये बड़े डरावने दीखते हैं, बड़े विकट उनके मुख हैं और बड़े विशाल उनके शरीर हैं॥

जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा।
सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा॥
अमित नाम भट कठिन कराला।
अमित नाग बल बिपुल बिसाला॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! जिसने इस लंका को जलाया था और आपके पुत्र अक्षय कुमार को मारा था, उस वानरका बल तो सब वानरों में थोड़ा है॥
उनके बीच कई नामी भट पड़े हे, कि जो बड़े भयानक और बड़े कठोर हैं. जिनके नाना वर्ण वाले और विशाल व तेजस्वी शरीर हैं॥

द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।
दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि ॥54॥

हिंदी अर्थ – उनमें जो बड़े बड़े योद्धा हैं उनमें से कुछ नाम कहता हूँ सो सुनो – द्विविद, मयन्द, नील, नल, अंगद वगैरे, विकटास्य, दधिरख, केसरी, कुमुद, गव और बलका पुंज जाम्बवान ॥54॥

रावणदूत शुक का रावण को समझाना

ए कपि सब सुग्रीव समाना।
इन्ह सम कोटिन्ह गनइ को नाना॥
राम कृपाँ अतुलित बल तिन्हहीं।
तृन समान त्रैलोकहि गनहीं॥

हिंदी अर्थ – ये सब वानर सुग्रीव के समान बलवान हैं। इनके बराबर दूसरे करोड़ों वानर हैं, कौन गिन सकता है?
रामचन्द्रजी की कृपा से उनके बलकी कुछ तुलना नहीं है। वे उनके प्रभाव से त्रिलोकी को तृन (घास) के समान समझते हैं॥

अस मैं सुना श्रवन दसकंधर।
पदुम अठारह जूथप बंदर॥
नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं।
जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं॥

हिंदी अर्थ – हे रावण! वहां मैं गिन तो नहीं सका परंनु कानों से ऐसा सुना था कि अठारह पद्म तो अकेले वानरों के सेनापति हैं॥
हे नाथ! उस कटक में (सेना) ऐसा वानर एकभी नहीं है कि जो रणमें आपको जीत न सके॥

परम क्रोध मीजहिं सब हाथा।
आयसु पै न देहिं रघुनाथा॥
सोषहिं सिंधु सहित झष ब्याला।
पूरहिं न त भरि कुधर बिसाला॥

हिंदी अर्थ – सब वानर बड़ा कोध करके हाथ मीजते हैं; परंतु बिचारे करें क्या? रामचन्द्र जी उनको आज्ञा नहीं देते॥
वे ऐसे बली है कि मछलियां और सर्पोंके साथ समुद्र को सुखा सकते हैं और नखों से विशाल पर्वत को चीर सकते है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

मर्दि गर्द मिलवहिं दससीसा।
ऐसेइ बचन कहहिं सब कीसा॥
गर्जहिं तर्जहिं सहज असंका।
मानहुँ ग्रसन चहत हहिं लंका॥

हिंदी अर्थ – और सब वानर ऐसे वचन कहते हैं कि हम जाकर रावण को मार कर उसी क्षण धूल में मिला देंगे॥
वे स्वभावसे ही निशंक है, सो बेधड़क गरजते है और तर्जते है. मानों वे अभी लंका को ग्रसना (निगलना) चाहते है॥