Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 55 to 60 ||
॥ दोहा 55 ॥
सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम,रावन काल कोटि कहुँ जीति सकहिं संग्राम।
हिंदी अर्थ – हे रावण! वे रीछ और वानर अव्वल तो स्वभावही से शूर-बीर हैं और तिसपर फिर श्रीरामचन्द्रजी सिर पर है। इसलिए हे रावण! वे करोड़ों कालों को भी संग्राम में जीत सकते हैं ॥55॥
रावणदूत शुक का रावण को समझाना
॥ चौपाई ॥
राम तेज बल बुधि बिपुलाई।
सेष सहस सत सकहिं न गाई॥
सक सर एक सोषि सत सागर।
तव भ्रातहि पूँछेउ नय नागर॥
हिंदी अर्थ – रामचन्द्रजी के तेज, बल, और बुद्धि की बढ़ाई को करोड़ों शेषजी भी गा नहीं सकते तब और की तो बात ही कौन?॥
यद्यपि वे एक बाणसे सौ समुद्र कों सुखा सकते है परंतु आपका भाई बिभीषण नीतिमें परम निपुण है इसलिए श्री राम ने समुद्र का पार उतरने के लिये आपके भाई विभीषण से पूछा॥
तासु बचन सुनि सागर पाहीं।
मागत पंथ कृपा मन माहीं॥
सुनत बचन बिहसा दससीसा।
जौं असि मति सहाय कृत कीसा॥
हिंदी अर्थ – तब उसने सलाह दी कि पहले तो नरमी से काम निकालना चाहिये और जो नरमी से काम नहीं निकले तो पीछे तेजी करनी चाहिये॥ बिभीपण के ये वचन सुनकर श्री राम मनमें दया रखकर समुद्र के पास मार्ग मांगते है॥
दूतके ये वचन सुनकर रावण हँसा और बोला कि जिसकी ऐसी बुद्धि है, तभी तो वानरोंको तो सहाय बनाया है॥
सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई।
सागर सन ठानी मचलाई॥
मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई।
रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई॥
हिंदी अर्थ – और स्वभाव से डरपोंक के (विभीषण के) वचनों पर दृढ़ता बांधी है तथा समुद्र से अबोध बालक की तरह मचलना (बालहठ) ठाना है॥
हे मूर्ख! उसकी झूठी बड़ाई तू क्यों करता है? मैंने शत्रु के बल और बुद्धि की थाह पा ली है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सचिव सभीत बिभीषन जाकें।
बिजय बिभूति कहाँ जग ताकें॥
सुनि खल बचन दूत रिस बाढ़ी।
समय बिचारि पत्रिका काढ़ी॥
हिंदी अर्थ – जिसके डरपोंक बिभीषण से मंत्री हैं उसके विजय और विभूति कहाँ? ॥
खल रावन के ये वचन सुनकर दूत को बड़ा क्रोध आया। इससे उसने अवसर जानकर लक्ष्मण के हाथ की पत्री निकाली॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
रामानुज दीन्हीं यह पाती।
नाथ बचाइ जुड़ावहु छाती॥
बिहसि बाम कर लीन्हीं रावन।
सचिव बोलि सठ लाग बचावन॥
हिंदी अर्थ – और कहा कि यह पत्रिका राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने दी है। सो हे नाथ! इसको पढ़कर अपनी छातीको शीतल करो॥
रावण ने हँसकर वह पत्रिका बाएं हाथ में ली और यह शठ (मूर्ख) अपने मंत्रियों को बुलाकर पढाने लगा॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि कुल खीस।
राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु अज ईस ॥56(क)॥
हिंदी अर्थ – (पत्रिका में लिखा था -) हे शट (अरे मूर्ख)! तू बातों से मन को भले रिझा ले, हे कुलांतक! अपने कुलका नाश मत कर, रामचन्द्रजी से विरोध करके विष्णु, ब्रह्मा और महेश के शरण जाने पर भी तू बच नही सकेगा॥56(क)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
की तजि मान अनुज इव प्रभु पद पंकज भृंग।
होहि कि राम सरानल खल कुल सहित पतंग ॥56(ख)॥
हिंदी अर्थ – तू अभिमान छोड़कर अपने छोटे भाई के जैसे प्रभु के चरण कमलों का भ्रमर होजा। अर्थात् रामचन्द्रजी के चरणों का चेरा होजा। अरे खल! रामचन्द्रजी के बाणरूप आग में तू कुल सहित पतंग मत हो, जैसे पतंग आग में पड़कर जल जाता है ऐसे तू रामचन्द्रजीके बाणसे मृत्यु को मत प्राप्त हो ॥56(ख)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सुनत सभय मन मुख मुसुकाई।
कहत दसानन सबहि सुनाई॥
भूमि परा कर गहत अकासा।
लघु तापस कर बाग बिलासा॥
हिंदी अर्थ – ये अक्षर सुनकर रावण मन में तो कुछ डरा, परंतु ऊपरसे हँसकर सबको सुनाके रावण ने कहा॥
कि इस छोटे तपस्वी की वाणी का विलास तो ऐसा है कि मानों पृथ्वी पर पड़ा हुआ आकाश को हाथ से पकड़े लेता है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
कह सुक नाथ सत्य सब बानी।
समुझहु छाड़ि प्रकृति अभिमानी॥
सुनहु बचन मम परिहरि क्रोधा।
नाथ राम सन तजहु बिरोधा॥
हिंदी अर्थ – उस समय शुकने (दूत) कहा कि हे नाथ! यह वाणी सब सत्य है, सो आप स्वाभाविक अभिमान को छोड़कर समझ लों॥
हे नाथ! आप क्रोध तजकर मेरे वचन सुनो, और राम से जो विरोध बांध रक्खा है उसे छोड़ दो॥
अति कोमल रघुबीर सुभाऊ।
जद्यपि अखिल लोक कर राऊ॥
मिलत कृपा तुम्ह पर प्रभु करिही।
उर अपराध न एकउ धरिही॥
हिंदी अर्थ – यद्यपि वे राम सब लोकों के स्वामी हैं तोभी उनका स्वभाव बड़ा ही कोमल है॥
आप जाकर उन से मिलोगे तो मिलते ही वे आप पर कृपा करेंगे, आपके एक भी अपराध को वे दिल में नही रक्खेंगे॥
जनकसुता रघुनाथहि दीजे।
एतना कहा मोर प्रभु कीजे॥
जब तेहिं कहा देन बैदेही।
चरन प्रहार कीन्ह सठ तेही॥
हिंदी अर्थ – हे प्रभु । एक इतना कहना तो मेरा भी मानो कि सीता को आप रामचन्द्रजी को दे दो॥
(शुकने कई बातें कहीं परंतु रावण कुछ नहीं बोला परंतु) जिस समय सीता को देनेकी बात कही उसी क्षण उस दुष्टने शुक को (दूतको) लात मारी॥
नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ।
कृपासिंधु रघुनायक जहाँ॥
करि प्रनामु निज कथा सुनाई।
राम कृपाँ आपनि गति पाई॥
हिंदी अर्थ – तब वह भी (विभीषण की भाँति) रावण के चरणों में शिर नमाकर वहां को चला कि जहां कृपाके सिंधु श्री रामचन्द्रजी विराजे थे॥
रामचन्द्रजी को प्रणाम करके उसने वहां की सब बात कही। तदनंतर वह राक्षस रामचन्द्रजी की कृपा से अपनी गति अर्थात् मुनि शरीर को प्राप्त हुआ॥
रिषि अगस्ति कीं साप भवानी।
राछस भयउ रहा मुनि ग्यानी॥
बंदि राम पद बारहिं बारा।
मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा॥
हिंदी अर्थ – महादेव जी कहते हैं कि हे पार्वती! यह पूर्व जन्ममें बड़ा ज्ञानी मुनि था, सो अगस्त्य ऋषि के शाप से राक्षस हुआ था॥
यहां रामचन्द्रजी के चरणो को वारंवार नमस्कार करके फिर अपने आश्रमको गया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
समुद्र पर श्री रामजी का क्रोध
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति ॥57॥
हिंदी अर्थ – जब जड़ समुद्र ने विनयसे नहीं माना अर्थात् रामचन्द्रजी को दर्भासन पर बैठे तीन दिन बीत गये तब रामचन्द्रजी ने क्रोध करके कहा कि भय बिना प्रीति नहीं होती ॥57॥
समुद्र पर श्री रामजी का क्रोध
लछिमन बान सरासन आनू।
सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति।
सहज कृपन सन सुंदर नीति॥
हिंदी अर्थ – हे लक्ष्मण! धनुष बाण लाओ। क्योंकि अब इस समुद्र को बाण की आगसे सुखाना होगा॥
देखो, इतनी बातें सब निष्फल जाती हैं। शठके पास विनय करना, कुटिल आदमी से प्रीति रखना, स्वाभाविक कंजूस आदमी के पास सुन्दर नीति का कहना॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
ममता रत सन ग्यान कहानी।
अति लोभी सन बिरति बखानी॥
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा।
ऊसर बीज बएँ फल जथा॥
हिंदी अर्थ – ममता से भरे हुए जन के पास ज्ञान की बात कहना, अतिलोभी के पास वैराग्य का प्रसंग चलाना॥ क्रोधी के पास समता का उपदेश करना, कामी (लंपट) के पास भगवान की कथा का प्रसंग चलाना और ऊसर भूमि में बीज बोना ये सब बराबर है॥
अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा।
यह मत लछिमन के मन भावा॥
संधानेउ प्रभु बिसिख कराला।
उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥
हिंदी अर्थ – ऐसे कहकर रामचन्द्रजी ने अपना धनुष चढ़ाया। यह रामचन्द्रजी का मत लक्ष्मण के मन को बहुत अच्छा लगा॥ प्रभुने इधर तो धनुष में विकराल बाण का सन्धान किया और उधर समुद्र के हृदय के बीच संतापकी ज्वाला उठी॥
मकर उरग झष गन अकुलाने।
जरत जंतु जलनिधि जब जाने॥
कनक थार भरि मनि गन नाना।
बिप्र रूप आयउ तजि माना॥
हिंदी अर्थ – मगर, सांप, और मछलियां घबरायीं और समुद्र ने जाना कि अब तो जल जन्तु जलने है॥
तब वह मान को तज, ब्राह्मण का स्वरूप धर, हाथमें अनेक मणियों से भरा हुआ कंचनका थार ले बाहर आया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा
काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच ॥
हिंदी अर्थ – काकभुशुंडि ने कहा कि हे गरुड़! देखा, केला काटने से ही फलता है। चाहो दूसरे करोडों उपाय कर लो और ख़ूब सींच लो, परंतु बिना काटे नहीं फलता। ऐसे ही नीच आदमी विनय करने से नहीं मानता किंतु डाटने से ही नमता है ॥
समुद्र की श्री राम से विनती
सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे।
छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥
गगन समीर अनल जल धरनी।
इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥
हिंदी अर्थ – समुद्र ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़े और प्रभु से प्रार्थना की कि हे प्रभु मेरे सब अपराध क्षमा करो॥
हे नाथ! आकाश, पवन, अग्रि, जल, और पृथ्वी इनकी करणी स्वभावही से जड़ है॥
तव प्रेरित मायाँ उपजाए।
सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए॥
प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई।
सो तेहि भाँति रहें सुख लहई॥
हिंदी अर्थ – और सृष्टिके निमित्त आपकी ही प्रेरणासे माया से ये प्रकट हुए है, सो यह बात सब ग्रंथों में प्रसिद्ध हे॥
हे प्रभु! जिसको स्वामी की जैसी आज्ञा होती है वह उसी तरह रहता है तो सुख पाता है॥
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही।
मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही॥
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी॥
हिंदी अर्थ – हे प्रभु! आपने जो मुझको शिक्षा दी, यह बहुत अच्छा किया; परंतु मर्यादा तो सब आपकी ही बांधी हुई है॥
प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई।
उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई॥
प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई।
करौं सो बेगि जो तुम्हहि सोहाई॥
हिंदी अर्थ – हे प्रभु! मैं आपके प्रताप से सूख जाऊंगा और उससे कटक भी पार उतर जाएगा। परंतु इस में मेरी महिमा घट जायगी॥
और प्रभु की आज्ञा अपेल (अर्थात अनुल्लंघनीय – आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो सकता) है। सो यह बात वेद में गायी है। अब जो आपको जचे वही आज्ञा देवें सो मै उसके अनुसार शीघ्र करूं॥
सुनत बिनीत बचन अति कह कृपाल मुसुकाइ।
जेहि बिधि उतरै कपि कटकु तात सो कहहु उपाइ ॥59॥
हिंदी अर्थ – समुद्र के ऐसे अतिविनीत वचन सुनकर, मुस्कुरा कर, प्रभु ने कहा कि हे तात! जैसे यह हमारा वानर का कटक पार उतर जाय वैसा उपाय करो ॥59॥
नाथ नील नल कपि द्वौ भाई।
लरिकाईं रिषि आसिष पाई॥
तिन्ह कें परस किएँ गिरि भारे।
तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे॥
हिंदी अर्थ – रामचन्द्रजी के ये वचन सुनकर समुद्र ने कहा कि हे नाथ! नील और नल ये दोनों भाई है। नलको बचपन में ऋषियों से आशीर्वाद मिला हुआ है॥
इस कारण हे प्रभु! नल का छुआ हुआ भारी पर्वत भी आपके प्रताप से समुद्र पर तैर जाएगा॥
(नील और नल दोनो बचपन में खेला करते थे। सो ऋषियों के आश्रमों में जाकर जिस समय मुनिलोग शालग्राम जी की पूजा कर आख मूंद ध्यान में बैठते थे, तब ये शालग्रामजी को लेकर समुद्र में फेंक देते थे। इससे ऋषियों ने शाप दिया कि नलका डाला हूआ पत्थर नहीं डुबेंगा। सो वही शाप इसके वास्ते आशीर्वादात्मक हुआ।)
मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई।
करिहउँ बल अनुमान सहाई॥
एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ।
जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ॥
हिंदी अर्थ – हे प्रभु! मुझ से जो कुछ बन सकेगा वह अपने बलके अनुसार आपकी प्रभुता कों हदय में रखकर मै भी सहाय करूंगा॥
हे नाथ! इस तरह आप समुद्र में सेतु बांध दीजिये कि जिसको विद्यमान देखकर त्रिलोकी में लोग आपके सुयशको गाते रहेंगे॥
एहि सर मम उत्तर तट बासी।
हतहु नाथ खल नर अघ रासी॥
सुनि कृपाल सागर मन पीरा।
तुरतहिं हरी राम रनधीरा॥
हिंदी अर्थ – हे नाथ! इसी बाण से आप मेरे उत्तर तटपर रहने वाले पापके पुंज दुष्टों का संहार करो॥
ऐसे दयालु रणधीर श्रीरामचन्द्रजी ने सागर के मनकी पीड़ा को जानकर उसको तुरंत हर लिया॥
देखि राम बल पौरुष भारी।
हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी॥
सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा।
चरन बंदि पाथोधि सिधावा॥
हिंदी अर्थ – समुद्र रामचन्द्रजी के अपरिमित (अपार) बलको देखकर आनंद पूर्वक सुखी हुआ॥
समुद्रने सारा हाल रामचन्द्रजी को कह सुनाया, फिर चरणों को प्रणाम कर अपने धामको सिधारा॥
निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ।
यह चरित कलि मलहर जथामति दास तुलसी गायऊ॥
सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना।
तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना॥
हिंदी अर्थ – समुद्र तो ऐसे प्रार्थना करके अपने घर को गया। रामचन्द्रजी के भी मन में यह समुद्र की सलाह भा गयी।
तुलसीदासजी कहते हैं कि कलियुग के पापों को हरने वाला यह रामचन्द्र जी का चरित मेरी जैसी बुद्धि है वैसा मैंने गाया है; क्योंकि रामचन्द्रजी के गुणगाण (गुणसमूह) ऐसे हैं कि वे सुखके तो धाम हैं, संशयके मिटाने वाले है और विषाद (रंज) को शांत करने वाले है सो जिनका मन पवित्र है और जो सज्जन पुरुष है, वे उन चरित्रों को सब आशा और सब भरोसों को छोड़ कर गाते हैं और सुनते हैं॥
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान ॥60॥
हिंदी अर्थ – सर्व प्रकार के सुमंगल देनेवाले रामचन्द्रजीके गुणोंका जो मनुष्य गान करते है और आदर सहित सुनते हैं वे लोग संसार समुद्र को बिना नाव पार उतर जाते हें ॥60॥
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने पंचमः सोपानः समाप्तः।
हिंदी अर्थ – कलियुग के समस्त पापों का नाश करने वाले श्री रामचरित मानस का यह पाँचवाँ सोपान समाप्त हुआ।