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Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 7 to 12 ||

Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 7 to 12 ||

॥ दोहा 7 ॥

अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।
कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर ॥7॥

हिंदी अर्थ – हे सखा, सुनो मै ऐसा अधम नीच हूँ। तिस पर भी रघुवीरने कृपा कर दी, तो आप तो सब प्रकारसे उत्तम हो॥
आप पर कृपा करे इस में क्या बड़ी बात है। ऐसे प्रभु श्रीरामचन्द्रजी के गुणोंका स्मरण करनेसे दोनों के नेत्रोमें आंसू भर आये॥ 

हनुमानजी और विभीषण का संवाद

॥ चौपाई ॥

जानतहूँ अस स्वामि बिसारी।
फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी॥
एहि बिधि कहत रामगुन ग्रामा।
पावा अनिर्बाच्यबिश्रामा॥

हिंदी अर्थ – जो मनुष्य जानते बुझते है ऐसे स्वामीको छोड़ बैठते है। वे दूखी क्यों न होंगे?
इस तरह रामचन्द्रजीके परम पवित्र व कानोंको सुख देने वाले गुणग्रामको (गुणसमूहोंको) विभीषणके कहते कहते हनुमानजी ने विश्राम पाया॥

पुनिसब कथा बिभीषन कही।
जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥
तब हनुमंत कहा सुनुभ्राता।
देखी चहउँ जानकीमाता॥

हिंदी अर्थ – फिर विभीषण ने हनुमानजी से वह सब कथा कही, कि सीताजीजिस जगह, जिस तरह रहती थी। तब हनुमानजी ने विभीषण से कहा हे भाई सुनो, मैं सीता माताको देखना चाहता हूँ॥

जुगुति बिभीषन सकल सुनाई।
चलेउ पवनसुत बिदा कराई॥
करि सोइरूपगयउ पुनि तहवाँ।
बन असोक सीता रह जहवाँ॥

हिंदी अर्थ – सो मुझे उपाय बताओ। हनुमानजी के यह वचन सुनकर विभीषण ने वहांकी सब तदबिज सुनाई। तब हनुमानजी भी विभीषणसेविदा लेकर वहांसे चले॥
फिर वैसाही छोटासा स्वरुप धर कर हनुमानजी वहा गए कि जहा अशोकवनमें सीताजी रहा करती थी॥ 

हनुमानजी ने अशोकवन में सीताजी को देखा

देखि मनहि महुँ कीन्हप्रनामा।
बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
कृस तनु सीस जटा एक बेनी।
जपति हृदयँ रघुपति गुनश्रेनी॥

हिंदी अर्थ – हनुमानजी ने सीताजी का दर्शन करके उनको मनही मनमेंप्रणाम किया और बैठे। इतने में एक प्रहर रात्रि बीत गयी॥
हनुमानजी सीताजी को देखते है, सो उनका शरीर तो बहुत दुबलाहो रहा है। सरपर लटोकी एक वेणी बंधी हुई है। और अपने मनमें श्री राम के गुणों का जप कर रही है॥

निज पद नयन दिएँ मनरामपद कमल लीन।
परम दुखी भापवनसुत देखि जानकीदीन ॥8॥

हिंदी अर्थ – और अपने पैरो में दृष्टि लगा रखी है। मन रामचन्द्रजी के चरणों में लीन हो रहा है।
सीताजीकी यह दीन दशा देखकर हनुमानजीको बड़ा दुःख हुआ॥

अशोक वाटिका में रावण और सीताजी का संवाद

तरुपल्लव महँ रहा लुकाई।
करइ बिचार करौं का भाई॥
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा।
संगनारि बहु किएँ बनावा॥

हिंदी अर्थ – हनुमानजी वृक्षों के पत्तो की ओटमें छिपे हुए मनमें विचार करने लगे कि हे भाई अब मै क्या करू? ॥
उस अवसरमें बहुतसी स्त्रियोंको संग लिए रावण वहा आया। जो स्त्रिया रावणके संग थी, वे बहुत प्रकार के गहनों से बनी ठनी थी॥

बहु बिधि खल सीतहि समुझावा।
साम दान भय भेददेखावा॥
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी।
मंदोदरी आदि सब रानी॥

हिंदी अर्थ – उस दुष्टने सीताजी को अनेक प्रकार से समझाया। साम, दाम, भय और भेद अनेक प्रकारसे दिखाया॥
रावणने सीतासे कहा कि हे सुमुखी! जो तू एकबार भी मेरी तरफ देख ले तो हे सयानी॥

तव अनुचरीं करउँ पन मोरा।
एक बार बिलोकु मम ओरा॥
तृन धरि ओट कहति बैदेही।
सुमिरि अवधपति परम सनेही॥

हिंदी अर्थ – जो ये मेरी मंदोदरी आदी रानियाँ है इन सबको तेरी दासियाँ बना दूं यह मेरा प्रण जान॥
रावण का वचन सुन बीचमें तृण रखकर (तिनके का आड़ – परदा रखकर), परम प्यारे रामचन्द्रजीका स्मरण करके सीताजीने रावण से कहा॥

सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा।
कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥
अस मन समुझु कहति जानकी।
खल सुधि नहिंरघुबीरबानकी॥

हिंदी अर्थ – की हे रावण! सुन, खद्योत अर्थात जुगनू के प्रकाश से कमलिनी कदापी प्रफुल्लित नहीं होती। किंतु कमलिनी सूर्यके प्रकाशसेहीप्रफुल्लित होती है। अर्थात तू खद्योतके (जुगनूके) समान है औररामचन्द्रजी सूर्यके सामान है॥
सीताजीने अपने मन में ऐसे समझकर रावणसे कहा कि रे दुष्ट! रामचन्द्रजीके बाणको अभी भूल गया क्या? वह रामचन्द्रजी का बाण याद नहीं है॥ 

सठ सूनें हरि आनेहि मोही।
अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥

हिंदी अर्थ – अरे निर्लज्ज! अरे अधम! रामचन्द्रजी के सूने तू मुझको ले आया। तुझे शर्म नहीं आती॥

आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।
परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥

हिंदी अर्थ – सीता के मुख से कठोर वचन अर्थात अपनेको खद्योतके (जुगनूके) तुल्य औररामचन्द्रजीकोसुर्यकेसमान सुनकर रावण को बड़ा क्रोध हुआ। जिससे उसने तलवार निकाल कर ये वचन कहे ॥

रावण और सीताजी का संवाद

सीता तैं मम कृत अपमाना।
कटिहउँ तव सिरकठिन कृपाना॥
नाहिं त सपदि मानु मम बानी।
सुमुखि होति न त जीवन हानी॥

हिंदी अर्थ – हे सीता! तूने मेरा मान भंग कर दिया है। इस वास्ते इस कठोर खडग (कृपान) से मैं तेरा सिर उड़ा दूंगा॥ हे सुमुखी, या तो तू जल्दी मेरा कहना मान ले, नहीं तो तेरा जी जाता है॥

स्याम सरोज दाम सम सुंदर।
प्रभुभुज करि कर सम दसकंधर॥
सो भुज कंठ कि तव असि घोरा।
सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥

हिंदी अर्थ – रावण के ये वचन सुनकर सीताजी ने कहा, हे शठ रावण, सुन, मेरा भी तो ऐसा पक्का प्रण है की या तो इस कंठपर श्याम कमलोकी मालाके समान सुन्दर और हाथिओ के सुन्ड के समान सुढार रामचन्द्रजी की भुजा रहेगी या तेरा यह महाघोर खडंग रहेगा। अर्थात रामचन्द्रजी के बिना मुझे मरना मंजूर है पर अन्यका स्पर्श नहीं करूंगी॥

चंद्रहास हरु मम परितापं।
रघुपतिबिरह अनल संजातं॥
सीतल निसित बहसि बर धारा।
कह सीता हरु मम दुख भारा॥

हिंदी अर्थ – सीता उस तलवार से प्रार्थना करती है कि हे तलवार! तू मेरा सिर उडाकर मेरे संताप को दूर कर क्योंकि मै रामचन्द्रजीकी विरहरूप अग्निसे संतप्त हो रही हूँ॥ सीताजी कहती है, हे असिवर! तेरी धाररूप शीतल रात्रिसे मेरे भारी दुख़को दूर कर॥

सुनत बचन पुनि मारन धावा।
मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई।
सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥

हिंदी अर्थ – सीताजीके ये वचन सुनकर, रावण फिर सीताजी को मारने को दौड़ा। तब मय दैत्यकी कन्या मंदोदरी ने नितिके वचन कह कर उसको समझाया॥
फिर रावणने सीताजीकी रखवारी सब राक्षसियोंको बुलाकर कहा कि तुम जाकर सीता को अनेक प्रकार से त्रास दिखाओ॥

मास दिवस महुँ कहा न माना।
तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना॥

हिंदी अर्थ – यदि वह एक महीने के भीतर मेरा कहना नहीं मानेगी तो मैं तलवार निकाल कर उसे मार डालूँगा॥जय सियाराम जय जय सियाराम

दोहा

भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥

हिंदी अर्थ – उधर तो रावण अपने भवनके भीतर गया। इधर वे नीच राक्षसियोंके झुंडके झुंड अनेक प्रकारके रूप धारण कर के सीताजीको भय दिखाने लगे॥

त्रिजटा का स्वप्न

चौपाई

त्रिजटा नाम राच्छसी एका।
राम चरन रति निपुन बिबेका॥
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना।
सीतहि सेइ करहु हितअपना॥

हिंदी अर्थ – उनमें एक त्रिजटा नाम की राक्षसी थी। वह रामचन्द्रजीकेचरनोंकी परमभक्त और बड़ी निपुण और विवेकवती थी॥ उसने सब राक्षसियों को अपने पास बुलाकर, जो उसको सपना आया था, वह सबको सुनाया और उनसे कहा की हम सबको सीताजी की सेवा करके अपना हित कर लेना चाहिए॥ 

सपनें बानर लंकाजारी।
जातुधान सेना सब मारी॥
खर आरूढ़ नगन दससीसा।
मुंडितसिर खंडित भुज बीसा॥

हिंदी अर्थ – क्योकि मैंने सपने में ऐसा देखा है कि एक वानरने लंकापुरीको जलाकर राक्षसों की सारी सेनाको मार डाला॥
और रावण गधेपर सवार होकर दक्षिण दिशामें जाता हुआ मैंने सपने में देखा है। वह भी कैसा की नग्नशरीर, सिर मुंडा हुआ और बीस भुजायें टूटी हुई॥

एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई।
लंका मनहुँ बिभीषन पाई॥
नगर फिरी रघुबीर दोहाई।
तबप्रभुसीता बोलि पठाई॥

हिंदी अर्थ – और मैंने यह भी देखा है कि मानो लंकाका राज विभिषणको मिल गया है॥
और नगरिके अन्दर रामचन्द्रजी की दुहाई फिर गयी है। तब रामचन्द्रजीने सीताको बुलाने के लिए बुलावा भेजा है॥

यह सपना मैं कहउँ पुकारी।
होइहि सत्य गएँ दिन चारी॥
तासु बचन सुनि ते सब डरीं।
जनकसुता के चरनन्हि परीं॥

हिंदी अर्थ – त्रिजटा कहती है की मै आपसे यह बात खूब सोच कर कहती हूँ की, यह स्वप्न चार दिन बितने के बाद सत्य हो जाएगा॥
त्रिजटाके ये वचन सुनकर सब राक्षसियाँ डर गई। और डरके मारे सब सीताजीके चरणों में गिर पड़ी॥

दोहा

जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥10॥

हिंदी अर्थ – फिर सब राक्षसियाँ मिलकर जहां तहां चली गयी। तब सीताजीअपने मनमें सोच करने लगी की एक महिना बितनेके बाद यह नीच राक्षस (रावण) मुझे मार डालेगा ॥

सीताजी और त्रिजटा का संवाद

चौपाई

त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी।
मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥
तजौं देह करु बेगि उपाई।
दुसह बिरहु अब नहिंसहि जाई॥

हिंदी अर्थ – फिर त्रिजटाके पास हाथ जोड़कर सीताजी ने कहा की हे माता! तू मेरी सच्ची विपत्तिकी साथिन है॥
सीताजी कहती है की जल्दी उपाय कर नहीं तो मै अपना देह तजती हूँ। क्योंकि अब मुझसे अति दुखद विरहका दुःख सहा नहीं जाता॥

आनि काठ रचु चिता बनाई।
मातु अनल पुनि देहि लगाई॥
सत्य करहि मम प्रीति सयानी।
सुनै कोश्रवन सूल सम बानी॥

हिंदी अर्थ – हे माता! अब तू जल्दी काठ ला और चिता बना कर मुझको जलानेके वास्ते जल्दी उसमे आग लगा दे॥
हे सयानी! तू मेरी प्रीति सत्य कर। सीताजीके ऐसे शूलके सामान महाभयानाक वचन सुनकर॥ 

त्रिजटा ने सीताजी को सान्तवना दी

सुनतबचन पद गहि समुझाएसि।
प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी।
अस कहि सो निज भवन सिधारी॥

हिंदी अर्थ – त्रिजटा ने तुरंत सीताजी के चरणकमल गहे और सिताजीको समझाया और प्रभु रामचन्द्रजी का प्रताप, बल और उनका सुयश सुनाया॥
और सिताजीसे कहा की हे राजपुत्री! अभी रात्री है, इसलिए अभी अग्नि नहीं मिल सकती। ऐसा कहा कर वहा अपने घरको चली गयी॥

कह सीता बिधि भा प्रतिकूला।
हिमिलि न पावक मिटिहि न सूला॥
देखिअत प्रगट गगन अंगारा।
अवनि न आवत एकउ तारा॥

हिंदी अर्थ – तब अकेली बैठी बैठी सीताजी कहने लगी की क्या करू दैवही प्रतिकूल हो गया। अब न तो अग्नि मिले और न मेरा दुःख कोई तरहसे मिट सके॥
ऐसे कह तारोको देख कर सीताजी कहती है की ये आकाशके भीतर तो बहुतसे अंगारे प्रकट दीखते है परंतु पृथ्वीपर पर इनमेसे एकभी तारा नहीं आता॥

पावकमय ससि स्रवत न आगी।
मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥
सुनहि बिनय मम बिटप असोका।
सत्य नाम करु हरु मम सोका॥

हिंदी अर्थ – सीताजी चन्द्रमा को देखकर कहती है कि यह चन्द्रमा का स्वरुप साक्षात अग्निमय दिख पड़ता है पर यहभी मानो मुझको मंदभागिन जानकार आगको नहीं बरसाता॥
अशोकके वृक्ष को देखकर उससे प्रार्थना करती है कि हे अशोक वृक्ष! मेरी विनती सुनकर तू अपना नाम सत्य कर। अर्थात मुझे अशोक अर्थात शोकरहित कर। मेरे शोकको दूर कर॥

नूतन किसलय अनल समाना।
देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
देखि परम बिरहाकुल सीता।
सो छन कपिहि कलप सम बीता॥

हिंदी अर्थ – हे अग्निके समान रक्तवर्ण नविन कोंपलें (नए कोमल पत्ते)! तुम मुझको अग्नि देकर मुझको शांत करो॥
इस प्रकार सीताजीको विरह से अत्यन्त व्याकुल देखकर हनुमानजीका वह एक क्षण कल्पके समान बीतता गया॥

कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिकाडारितब।
जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ ॥12॥

हिंदी अर्थ – उस समय हनुमानजीने अपने मनमे विचार करके अपने हाथमेंसेमुद्रिका (अँगूठी) डाल दी। सो सीताजी को वह मुद्रिका उससमय कैसी दिख पड़ी की मानो अशोकके अंगारने प्रगट हो कर हमको आनंददिया है (मानो अशोक ने अंगारा दे दिया।)। सो सिताजीने तुरंत उठकर वह मुद्रिका अपनेहाथमेंलेली ॥

हनुमान सीताजी से मिले

तब देखीमुद्रिका मनोहर।
रामनाम अंकित अति सुंदर॥
चकित चितव मुदरी पहिचानी।
हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥

हिंदी अर्थ – फिर सीताजीने उस मुद्रिकाको देखा तो वह सुन्दर मुद्रिका रामचन्द्रजीके मनोहर नामसे अंकित हो रही थी अर्थात उसपर श्री राम का नाम खुदा हुआ था॥
उस मुद्रिकाको देखतेही सीताजी चकित होकर देखने लगी। आखिर उस मुद्रिकाको पहचान कर हृदय में अत्यंत हर्ष और विषादको प्राप्त हुई और बहुत अकुलाई॥

जीति को सकइ अजय रघुराई।
माया तें असि रचि नहिं जाई॥
सीता मन बिचार कर नाना।
मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥

हिंदी अर्थ – यह क्या हुआ? यह रामचन्द्रजीकी नामांकित मुद्रिका यहाँ कैसे आयी? या तो उन्हें जितनेसे यह मुद्रिका यहाँ आ सकती है, किंतु उन अजेय रामचन्द्रजीको जीत सके ऐसा तो जगतमे कौन है? अर्थात उनको जीतनेवाला जगतमे है ही नहीं। और जो कहे की यह राक्षसोने मायासे बनाई है सो यह भी नहीं हो सकता। क्योंकि मायासे ऐसी बन नहीं सकती॥
इस प्रकार सीताजी अपने मनमे अनेक प्रकार से विचार कर रही थी। इतनेमें ऊपरसे हनुमानजी ने मधुर वचन कहे॥

रामचंद्र गुन बरनैं लागा।
सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई।
आदिहु तें सब कथा सुनाई॥

हिंदी अर्थ – हनुमानजी रामचन्द्रजीके गुनोका वर्णन करने लगे। उनको सुनतेही सीताजीका सब दुःख दूर हो गया॥
और वह मन और कान लगा कर सुनने लगी। हनुमानजीने भी आरंभसे लेकर सब कथा सीताजी को सुनाई॥ 

श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई।
कही सो प्रगट होति किन भाई॥
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ।
फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ॥

हिंदी अर्थ – हनुमानजीके मुखसे रामचन्द्रजीका चरितामृत सुनकर सीताजीनेकहा कि जिसने मुझको यह कानोंको अमृतसी मधुर लगनेवाली कथा सुनाई है वह मेरे सामने आकर प्रकट क्यों नहीं होता?
सीताजीके ये वचन सुनकर हनुमानजी चलकर उनके समीप गए तो हनुमानजी का वानर रूप देखकर सीताजीके मनमे बड़ा विस्मय हुआ की यह क्या! सो कपट समझकर हनुमानजी को पीठ देकर बैठ गयी॥

राम दूत मैं मातु जानकी।
सत्य सपथ करुनानिधान की॥
यह मुद्रिका मातु मैं आनी।
दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥

हिंदी अर्थ – तब हनुमानजीने सीताजीसे कहा की हे माता! मै रामचन्द्रजीका दूत हूं। मै रामचन्द्रजीकी शपथ खाकर कहता हूँ की इसमें फर्क नहीं है॥
और रामचन्द्रजीने आपके लिए जो निशानी दी थी, वह यह मुद्रिका (अँगूठी) मैंने लाकर आपको दी है॥

नर बानरहि संग कहु कैसें।
कही कथा भइ संगति जैसें॥

हिंदी अर्थ – तब सिताजी ने कहा की हे हनुमान! नर और वानरोंके बीच आपसमें प्रीति कैसे हुई वह मुझे कह। तब उनके परस्परमे जैसेप्रीति हुई थी वे सब समाचार हनुमानजी ने सिताजीसे कहे॥