शाबर मंत्र और शाबर मन्त्रों से जुड़े जरुरी तथ्य (Shabar Mantra Aur Shabar Mantron Se Judi Jaruri Tathya)
हिन्दू मान्यता तथा वैदिक ज्योतिष के अनुसार ईश्वर तक अपनी बात पहुँचाने के लिए जिस भाषारूपी माध्यम का उपयोग किया जाता है, वही “मंत्र ” है। मन्त्रों के द्वारा किसी विशेष कार्य को फलीभूत करने के लिए ईश्वर से लोग प्रार्थनाएँ करते है फिर चाहें वो विशेष कार्य इंसान की किसी विशेष इच्छा से जुड़ी हो या कोई मनोकामना पूर्ण करने के लिए हो। इंसान के जिंदगी में जो भी बाधाएं आती है उन सबका उपचार ही ये “मन्त्र” है। इन बाधाओं में शामिल सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि भूत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी तथा यक्ष और यक्षिणी भी है। इन्हीं मन्त्रों द्वारा हम अपने मन के बुरे विचार को त्याग कर अच्छे और धार्मिक विचार में बदल भी सकते है। मंत्र 3 प्रकार के होते है –
- वैदिक मंत्र (Vedic Mantra)
- तांत्रिक मंत्र (Tantrik mantra)
- शाबर मंत्र (Shabar Mantra)
आज हम शाबर मंत्र के ऊपर चर्चा करेंगे। आइये जानते है, शाबर मंत्र से जुड़ी जरुरी बातें :
शाबर मंत्र क्या है ? (Shabar Mantra Kya Hai?)
साधारण हिंदी भाषा में “शाबर मंत्र” वो है, जो पहले से ही स्वयंसिद्ध है और इनका प्रभाव भी आस्चर्यजनक रूप से अचूक है। शाबर मंत्र उतने कठिन भी नहीं होते जितने की “शास्त्रीय मंत्र” (संस्कृत भाषा में लिखे गए मंत्र) होते है तथा ये हर एक इंसान तथा जाती पर प्रभाव दिखाते है । थोड़े से जाप मात्र से ही शाबर मंत्र सिद्ध हो जाते है तथा लाभ देते है और मनोकामनाएं भी जल्दी ही पूर्ण हो जाती है।
“शाबर मंत्र स्वयंसिद्ध तथा जल्दी परिणाम दायक होते है। हर एक देव विशेष के लिए विशेष शाबर मंत्र होते है ।” जैसे की, हनुमान जी का शाबर मंत्र :
||हनुमान जाग किलकारी मार||||तू हुंकारे राम काज संवारे||
||ओढ़ सिंदूर सीता मैया का||||तू प्रहरी राम द्वारे||
||मैं बुलाऊं तु अब आ||||राम गीत तु गाता आ||
||नहीं आये तो हनुमाना||||श्री राम जी ओर सीता मैया कि दुहाई||
||शब्द साँचा पिंड कांचा फुरो मन्त्र ईश्वरोवाचा||
शाबर मंत्र के जनक (पिता) :
शाबर मन्त्रों के जनक – “गुरु मत्स्येन्द्र नाथ” तथा उनके शिष्य “गुरु गोरखनाथ” जी थे । शाबर मन्त्र का उपयोग “शैव पंथ” के नाथ समुदाय के आलावा भी आदिवासी, बंजारे, सपेरे, जादूगर तथा भारत देश की अन्य जनजातियां भी करते थे और अभी भी करते है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, शाबर मन्त्रों में “वज्रतारा” तथा “वज्रयान की वज्रडाकिनी” से भी निचली “तामसिक देवियों” से प्रार्थना की जाती है। उन्ही के आशीर्वाद से ये मंत्र फलीभूत होते है।
शाबर मंत्र भाषा :
शाबर मंत्र का दूसरा नाम है “प्राकृत मंत्र” अर्थात इसे संस्कृत भाषा में नहीं बल्कि प्राकृत भाषा में लिखी गयी है, जो की आम बोलचाल की भाषा है। पर प्राकृत भाषा के साथ-साथ कुछ मंत्र ऐसे भी है जिनमें संस्कृत, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, गुजरती, तमिल तथा अन्य ग्रामीण तथा क्षेत्रीय भाषाएँ शामिल है। सामान्यतः शाबर मन्त्र हिंदी भाषा में ही उपलब्ध है परन्तु कुछ ऐसे मंत्र है जिनमे उर्दू भाषा का भी समावेश देखा गया है तथा “सुलेमान मन्त्रों” का आविष्कार भी किया गया ।
शाबर मंत्रों के भाग (प्रकार) :
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार शाबर मन्त्रों में “आन तथा श्राप” और ” धमकी तथा श्रद्धा” दोनों का ही उपयोग किया जाता है। यहाँ “आन” शब्द का अर्थ है “सौगंध“। शाबर मंत्रों में इंसान अर्थात भक्त श्रद्धा के साथ-साथ अपनी जिद्द से भी “देवी-देवताओं” को खुश कर के अपना कार्य सिद्ध करवाते है। शाबर मन्त्रों में जिन-जिन देवी तथा देवताओं के नाम पर शपथ ग्रहण की जाती थी वो आज भी वैसे के वैसे ही जीवित तथा विश्वशनीय है।
शाबर मंत्र से देवता कैसे प्रसन्न होते है?
शाबर मंत्रों द्वारा ईश्वर को बिल्कुल वैसे ही प्रसन्न किया जाता है जैसे – कोई अबोध बच्चा अपने माता-पिता के सामने जिद करके अपनी इच्छा को पूर्ण करवाता है। शाबर मंत्रों का उपयोग इंसान अपने जिद से तो करता है परन्तु ‘ईश्वर’ इंसानों की भक्ति तथा उनके निष्कपट भावना से प्रसन्न होकर ही इच्छा पूर्ण करते है। अत : निष्कपट भाव से शाबर मन्त्रों की साधना करने वाला प्रत्येक तरह के “लक्ष्य और सिद्धि” को प्राप्त कर लेता है।
शाबर मन्त्रों के कार्य :
हर एक शाबर मंत्र अपने आप में ही परिपूर्ण है। शाबर मंत्रों का उपयोग ज्ञान और मोक्ष के लिए नहीं बल्कि समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए की जाती है तथा इसका लाभ और उपयोग की दृष्टि से अलग और विशेष महत्व है। शाबर मंत्र बहुत जल्दी ही कार्य को पूरी करते है तथा ये बहुत ही विश्वसनीय है। शाबर मंत्र से कार्य सिद्धि के लिए हवन, अनुष्ठान या तर्पण की जरूरत नहीं पड़ती। शाबर मंत्रों का जप या साधना किसी भी जाती के पुरुष या स्त्री कर सकते है। शाबर मन्त्रों के साधना के समय किसी भी गुरु की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि ये मंत्र और इन मंत्रों के प्रवर्तक पहले से ही स्वयंसिद्ध थे लेकिन अगर आप इन मंत्रों का जप किसी योग्य गुरु के अंतर्गत करते है तो ये मंत्र जल्दी ही कारगर शाबित होंगे साथ-ही-साथ आप किसी भी अनहोनी से बच जायेंगे। मुख्य रूप से “षट्कर्मों की साधना” किसी भी योग्य गुरु के अनुपस्थिति में ना करें।
Frequently Asked Questions
1. क्या शाबर मंत्र स्वयंसिद्ध है?
जी हाँ, प्रत्येक शाबर मंत्र स्वयंसिद्ध।
2. शाबर मंत्रों के जनक कौन थे?
शाबर मंत्रों के जनक “गुरु मत्स्येन्द्र नाथ” तथा उनके शिष्य “गुरु गोरखनाथ” जी थे।
3. क्या प्रत्येक भगवान के लिए अलग-अलग शाबर मंत्र होते है?
जी हाँ, प्रत्येक भगवान के लिए अलग-अलग शाबर मंत्र होते है।
4. क्या शाबर मंत्र कार्य सिद्धि के लिए हवन, अनुष्ठान या तर्पण की जरूरत पड़ती है ?
जी नहीं, शाबर मंत्र कार्य सिद्धि के लिए हवन, अनुष्ठान या तर्पण की जरूरत नहीं पड़ती है।