जानिए शिव पुराण की 10 चमत्कारी बातें (Janiye Shiv Puran Ki 10 Chamatkari Baten)
हिन्दू धर्म में त्रिदेवों को सबसे अधिक पूजा जाता है। इन्ही त्रिदेवों में से एक है सृष्टि के संहारक भगवान शिव शंकर। हिन्दू धर्म में प्रत्येक ईश्वर से जुड़ा है कोई न कोई ग्रन्थ, पुराण या काव्य। इन ग्रंथों और काव्यों में उनसे सम्बंधित ईश्वर के रूपों और कर्मों की चर्चा होती है। आज हम बात करेंगे शिव पुराण की जो भगवान शिव के अवतारों और उनके कार्यों से सम्बंधित है और जानेंगे शिव पुराण में कही गयी 10 चमत्कारी बातें जो आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लेकर आएंगे । तो, चलिए शुरू करते है :
शिव पुराण की 10 चमत्कारी बातें :
शिव पुराण में भगवान शिव अर्थात भगवान भोलेनाथ के दिव्य अवतारों का वर्णन है। शिव पुराण में भगवान शिव की महिमा, उनकी भक्ति और शिव जी के सम्पूर्ण कार्यों और अवतारों पर प्रकाश डाला गया है। इसके साथ ही शिव पुराण में व्रत, जप – तप, मोक्ष और ज्ञान आदि के फलों के महिमा का भी उल्लेख किया गया है ।
शिव पुराण में तो कई चमत्कारी और ज्ञानवर्धक बातों का वर्णन किया गया है। लें आज हम जानेंगे 10 विशेष चमत्कारी बातों के बारे में। जो की इस प्रकार है :
- व्रत (भोजन का त्याग) :
शिव पुराण के अनुसार, शिवरात्रि जैसे पावन व्रत करने से शिवभक्त को भोग और मोक्ष – दोनों की प्राप्ति होती है। इसके साथ साथ व्यक्ति पुण्य का भागी भी बन जाता है। पुण्य कर्म करने से व्यक्ति का भाग्योदय होता है जो उसे परमसुख की प्राप्ति करवाता है।
- क्रोध व गुस्सा को त्यागना :
शिव पुराण के अनुसार, व्यक्ति को गुस्सा कभी भी नहीं करनी चाहिए और ना ही किसी के भी मन में क्रोध की भावना उत्पन्न करने वाली वचन बोलनी चाहिए। क्रोधित व्यक्ति का विवेक नष्ट हो जाता है और विवेक के नष्ट होने से व्यक्ति के जीवन में अनगिनत समस्याएं खड़ी हो जाती है।
- धन का संचय :
शिव पुराण के अनुसार, मनुष्य को हमेशा अच्छे और सत्य के मार्ग पर चल कर ही धन का संचय करना चाहिए। मनुष्य द्वारा जमा किये गए धन का 3 हिस्सा करना चाहिए। जिसमें एक हिस्सा धन वृद्धि, दूसरा हिस्सा उपभोग और तीसरा हिस्सा धर्म – कर्म के कार्यों के लिए रखना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सफलता और सुख की प्राप्ति होती है।
- सत्य वचन बोलना :
शिव पुराण के अनुसार, सत्य वचन बोलना ही सबसे बड़ा धर्म है। इसलिए मनुष्य को सत्य अर्थात सच का साथ देना भी चाहिए और हमेशा सच बोलना भी चाहिए। इसी प्रकार शिवपुराण में असत्य को सबसे बड़ा अधर्म बतलाया गया है।
- संध्या समय :
शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव का समय है सूर्यास्त से दिनअस्त तक का समय – जब भगवान शिव अपनी तीसरी आँख द्वारा तीनों लोकों अर्थात त्रिलोक्य को देख रहे होते है तथा नंदी और समस्त शिव गणों के साथ भ्रमण कर रहे होते है। शिव पुराण में इस समय की महत्ता बताई गई है कि अगर इस समय कोई भी मनुष्य क्रोध – कलह करता हो, कटु वचन कहता हो, यात्रा, भोजन, पाप, सहवास आदि करता हो तो उस मनुष्य का घोर अहित होता है।
- अनावश्यक इच्छाओं को त्यागना :
शिव पुराण के अनुसार, मनुष्य का सबसे बड़ा दुःख उसकी स्वयं की इच्छा होती है। मनुष्य अपनी इच्छा के मोह जाल में इस प्रकार फंस जाता है कि अपना सब कुछ नष्ट कर लेता है। यहाँ तक की अपनी अनावश्यक इच्छाओं के लिए अपना सारा जीवन बिगाड़ लेता है इसलिए शिवपुराण अनुसार मनुष्य को अपने अनावश्यक इच्छाओं का त्याग करना चाहिए तभी मनुष्य महासुख की प्राप्ति कर सकता है ।
- निष्काम कर्म :
शिव पुराण के अनुसार, किसी भी कार्य या कर्म को करते समय मनुष्य को स्वयं के कर्मों का साक्षी अर्थात गवाह बनना चाहिए। कोई भी अच्छे या बुरे कार्य के लिए मनुष्य स्वयं जिम्मेदार होता है। ऐसा कभी भी नहीं सोचना चाहिए की मनुष्य द्वारा किये गए कार्यों को कोई भी नहीं देख रहा। यदि मनुष्य अपने मन में ऐसे भाव को रखेंगे तो कभी भी पाप कर्म की राह पर नहीं चलेंगे। शिव पुराण के अनुसार मनुष्य को, मन, वचन तथा कर्म तीनों से ही पाप कर्म नहीं करने चाहिए।
- मोह अथवा लगाव का त्याग :
शिव पुराण के अनुसार, सृष्टि के प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी चीज, मनुष्यया कोई परिस्थिति से मोह अथवा लगाव अवश्य होता है। यह लगाव ही मनुष्य की सबसे बड़ी पीड़ा है और यही असफलता का कारण भी है। शिव पुराण के अनुसार, निर्मोही अर्थात मन कोई लगाव रखे बिना ही निष्काम कर्म करने से सुख और सफलता की प्राप्ति होती है।
- सकारात्मक कल्पना व सोच :
शिव पुराण के अनुसार, मनुष्य जैसी कल्पना करता है अर्थात जैसी सोच रखता है वैसा ही बन जाता है। शिव पुराण में सपने को भी कल्पना ही माना गया है । भगवान शिव के अनुसार मनुष्य को हमेशा सकारात्मक कल्पना व सोच रखनी चाहिए ।
- पशु नहीं मनुष्य बनिए :
शिव पुराण के अनुसार, मनुष्य तब तक पशु समान है जब तक कि उसमें ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य, अपमान, राग, तथा हिंसक प्रवृत्ति रहती है। इसलिए मनुष्य को इस पशु समान आचरण से मुक्ति पाने के लिए ध्यान और भक्ति के मार्ग को अपनाना चाहिए। शिव पुराण के अनुसार, मनुष्य एक अजायबघर समान है। मनुष्य एक ऐसा अजायबघर है जिसमें प्रत्येक प्रकार के पशु और पक्षी के सारे गुण और अवगुण विद्यमान है। मनुष्य पूरी तरह से मनुष्य समान नहीं है। मनुष्य का मन बाकियों के तुलना में सबसे ज्यादा सक्रिय रहता है। अतः शिव पुराण के अनुसार मनुष्य को पशुओं के समान आचरण त्याग कर, सत्य वचन और सत्य का मार्ग अपनाते हुए प्रभु की ध्यान और भक्ति करनी चाहिए तभी मनुष्य परम सुख की प्राप्ति कर पाता है।
Frequently Asked Questions
1. शिव पुराण में किस देवता के अवतारों का वर्णन किया गया है ?
शिव पुराण में भगवान शिव के अवतारों का वर्णन किया गया है।
2. भगवान शिव अपनी तीसरी आँख से संध्याकाल में किसे देखते है ?
भगवान शिव अपनी तीसरी आँख से संध्याकाल में त्रैलोक्य को देखते है।
3. किस देव का दूसरा नाम आदिनाथ है ?
आदिनाथ भगवान शिव शंकर का दूसरा नाम है।
4. भगवान शिव के सवारी का क्या नाम है ?
भगवान शिव के सवारी का नाम नंदी है ।
5. भगवान शिव हमेशा किस मुद्रा में रहते है?
शिव जी हमेशा योग मुद्रा में रहते है।