श्री प्रेतराज चालीसा | Shri Pretraj Chalisa | Free PDF Download
॥ दोहा ॥
गणपति की कर वंदना, गुरु चरनन चितलाय ।
प्रेतराज जी का लिखूं, चालीसा हरषाय ॥
जय जय भूताधिप प्रबल, हरण सकल दु:ख भार ।
वीर शिरोमणि जयति, जय प्रेतराज सरकार ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय प्रेतराज जग पावन । महा प्रबल त्रय ताप नसावन ॥१॥
विकट वीर करुणा के सागर । भक्त कष्ट हर सब गुण आगर ॥२॥
रत्न जटित सिंहासन सोहे । देखत सुन नर मुनि मन मोहे ॥३॥
जगमग सिर पर मुकुट सुहावन । कानन कुण्डल अति मन भावन ॥४॥
धनुष कृपाण बाण अरु भाला । वीरवेश अति भृकुटि कराला ॥५॥
गजारुढ़ संग सेना भारी । बाजत ढोल मृदंग जुझारी ॥६॥
छत्र चंवर पंखा सिर डोले । भक्त बृन्द मिलि जय जय बोले ॥७॥
भक्त शिरोमणि वीर प्रचण्डा । दुष्ट दलन शोभित भुजदण्डा ॥८॥
चलत सैन काँपत भूतलहू । दर्शन करत मिटत कलि मलहू ॥९॥
घाटा मेंहदीपुर में आकर । प्रगटे प्रेतराज गुण सागर ॥१०॥
लाल ध्वजा उड़ रही गगन में । नाचत भक्त मगन हो मन में ॥११॥
भक्त कामना पूरन स्वामी । बजरंगी के सेवक नामी ॥१२॥
इच्छा पूरन करने वाले । दु:ख संकट सब हरने वाले ॥१३॥
जो जिस इच्छा से आते हैं । वे सब मन वाँछित फल पाते हैं ॥१४॥
रोगी सेवा में जो आते । शीघ्र स्वस्थ होकर घर जाते ॥१५॥
भूत पिशाच जिन्न वैताला । भागे देखत रुप कराला ॥१६॥
भौतिक शारीरिक सब पीड़ा । मिटा शीघ्र करते हैं क्रीड़ा ॥१७॥
कठिन काज जग में हैं जेते । रटत नाम पूरन सब होते ॥१८॥
तन मन धन से सेवा करते । उनके सकल कष्ट प्रभु हरते ॥१९॥
हे करुणामय स्वामी मेरे । पड़ा हुआ हूँ चरणों में तेरे ॥२०॥
कोई तेरे सिवा न मेरा । मुझे एक आश्रय प्रभु तेरा ॥२१॥
लज्जा मेरी हाथ तिहारे । पड़ा हूँ चरण सहारे ॥२२॥
या विधि अरज करे तन मन से । छूटत रोग शोक सब तन से ॥२३॥
मेंहदीपुर अवतार लिया है । भक्तों का दु:ख दूर किया है ॥२४॥
रोगी, पागल सन्तति हीना । भूत व्याधि सुत अरु धन छीना ॥२५॥
जो जो तेरे द्वारे आते । मन वांछित फल पा घर जाते ॥२६॥
महिमा भूतल पर है छाई । भक्तों ने है लीला गाई ॥२७॥
महन्त गणेश पुरी तपधारी । पूजा करते तन मन वारी ॥२८॥
हाथों में ले मुगदर घोटे । दूत खड़े रहते हैं मोटे ॥२९॥
लाल देह सिन्दूर बदन में । काँपत थर-थर भूत भवन में ॥३०॥
जो कोई प्रेतराज चालीसा । पाठ करत नित एक अरु बीसा ॥३१॥
प्रातः काल स्नान करावै । तेल और सिन्दूर लगावै ॥३२॥
चन्दन इत्र फुलेल चढ़ावै । पुष्पन की माला पहनावै ॥३३॥
ले कपूर आरती उतारै । करै प्रार्थना जयति उचारै ॥३४॥
उनके सभी कष्ट कट जाते । हर्षित हो अपने घर जाते ॥३५॥
इच्छा पूरण करते जनकी । होती सफल कामना मन की ॥३६॥
भक्त कष्टहर अरिकुल घातक । ध्यान धरत छूटत सब पातक ॥३७॥
जय जय जय प्रेताधिप जय । जयति भुपति संकट हर जय ॥३८॥
जो नर पढ़त प्रेत चालीसा । रहत न कबहूँ दुख लवलेशा ॥३९॥
कह भक्त ध्यान धर मन में । प्रेतराज पावन चरणन में ॥४०॥
॥ दोहा ॥
दुष्ट दलन जग अघ हरन, समन सकल भव शूल ।
जयति भक्त रक्षक प्रबल, प्रेतराज सुख मूल ॥
विमल वेश अंजिन सुवन, प्रेतराज बल धाम ।
बसहु निरन्तर मम हृदय, कहत भक्त सुखराम ॥
॥ इति श्री प्रेतराज चालीसा संपूर्णम् ॥
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