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भगवान विष्णु के 10 अवतार : विष्णु दशावतार की 10 पौराणिक कथाएं (Bhagwan Vishnu Ke 10 Avatar : Vishnu Dashavatara Ki 10 Pauranik Kathaye)

भगवान विष्णु के 10 अवतार : विष्णु दशावतार की 10 पौराणिक कथाएं (Bhagwan Vishnu Ke 10 Avatar : Vishnu Dashavatara Ki 10 Pauranik Kathaye)

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धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने 24 अवतार लिए थे जिनमें से 10 अवतार विशेष रूप से जाने और पूजे जाते है। आइये जानते है, भगवान श्री हरि विष्णु के 10 अवतार अर्थात दशावतार से जुड़ी पौराणिक कथाएं।

भगवान श्री हरि विष्णु के 10 अवतार :

1. मत्स्य अवतार : (Matsya Avatar)

हिन्दू धर्म पुराण के अनुसार, प्रभु श्री हरि विष्णु ने समस्त सृष्टि और मानव जाती को प्रलय से बचाने के लिए “मत्स्यावतार” लिया था। मत्स्य अवतार की पौराणिक कथा इस प्रकार है : 

सतयुग के राजा सत्यव्रत बहुत ही ज्ञानी और दयालु राजा थे। एक दिन की बात है जब राजा सत्यव्रत नदी में स्नान करने के बाद जब जलांजलि दे रहे थे। अचानक से उनकी अंजलि (हाथों) में एक छोटी सी मछली आ गई। मछली को देखते ही उन्होंने सोचा मछली को सागर में डाल दूं, लेकिन मछली राजा से कहने लगी – आप मुझे सागर में मत डालिए वरना मुझे बड़ी मछलियां खा जाएगी। तब, राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया और उसे लेकर अपने महल आ गए। जब मछली थोड़ी और बड़ी हो गई तो राजा ने उसे अपने ही सरोवर में रखवा दिया, देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई। यह सब देख राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण मछली नहीं है। तब राजा सत्यव्रत ने मछली से उसके वास्तविक स्वरूप में आने के लिए प्रार्थना की। राजा सत्यव्रत की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु, मछली का रूप छोड़ कर अपने चारभुजाधारी रूप को धारण कर लिए और राजा सत्यव्रत से कहने लगे कि – राजन ये मेरा मत्स्यावतार है। भगवान विष्णु ने सत्यव्रत से कहा कि हे राजन! आज से सात दिनों के बाद प्रलय आएगी। तब मेरे आशीर्वाद से एक विशाल नाव तुम्हारे समक्ष आएगी। तुम सप्तऋषि, औषधि, समस्त बीज व प्राणियों को लेकर उसमें बैठ जाना, जब भीषण प्रलय में सम्पूर्ण सृष्टि डूब जाएगी और तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मत्स्य के रूप में मैं तुम्हारे पास आऊंगा। तब तुम वासुकि नाग जी के द्वारा उस नाव को मेरे मत्स्यावतार से बांध देना। उस समय यदि तुम प्रश्न पूछोगे तो मैं तुम्हें उत्तर अवश्य दूंगा  और मेरी महिमा जो की “परब्रह्म” नाम से विख्यात है, तुम्हारे हृदय में प्रकट हो जाएगी। समय आने पर मत्स्य रूप धारण कर भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को “तत्वज्ञान” का उपदेश दिया, और वही उपदेश “मत्स्यपुराण” के नाम से विख्यात हुआ।

2. वराह अवतार : (Varaha Avatar)

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु ने “वराह” का लिया था। “वराह अवतार” से जुड़ी पौराणिक कथा इस प्रकार है – 

एक समय की बात है – दैत्यराज हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था तब ब्रह्मा जी के नाक से भगवान विष्णु वराह अवतार में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस दिव्य रूप को देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति और वंदना की। सबके आग्रह पर “भगवान वराह” ने पृथ्वी को ढूंढना आरम्भ कर दिया। वराह भगवान ने अपनी थूथनी की सहायता से पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र गहराई में जाकर पृथ्वी को अपने दांतों पर रखकर बाहर ले आए। हिरण्याक्ष ने ये सब देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह अवतार को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके पश्चात भगवान वराह ने अपने खुरों द्वारा जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित किया।

3. कूर्म अवतार : (Kurma Avatar)

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान विष्णु ने कूर्म अर्थात कछुए का अवतार लेकर समुद्र मंथन में मदद की थी। भगवान श्री हरि विष्णु के कूर्म अवतार को “कच्छप” अवतार भी कहा जाता है। कूर्म अवतार की कथा इस प्रकार है 

– एक बार की बात है जब महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा देवराज इंद्र को श्राप देकर “श्रीहीन” कर दिया। तब देवराज इन्द्र भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने भगवान विष्णु से समुद्र मंथन करने का निवेदन किया और तब भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के लिए कूर्म अवतार लिया। समुद्र मंथन की प्रक्रिया में नागराज वासुकी को नेती तथा मंदराचल पर्वत को मथानी बनाया गया। देवता और असुरों ने समुद्र मंथन का लाभ उठाने के लिए अपना-अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़कर उसे समुद्र की ओर लेकर गए, लेकिन तब भी वे उसे अधिक दुरी तक नहीं ले जा सके। तब भगवान श्री हरि विष्णु ने मंदराचल पर्वत को समुद्र तट पर रख दिया। देवता और असुरों ने मंदराचल पर्वत को समुद्र में स्थापित कर नागराज वासुकि को नेती बनाया। लेकिन, मंदराचल पर्वत के नीचे कोई नीवं अथवा आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। यह देख प्रभु श्री हरि विष्णु ने विशाल कछुए का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के नीचे आकर आधार बन गए। भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घूमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन की प्रक्रिया संपन्न हुई। 

4. भगवान नरसिंह : (Bhagwan Narsingh)     

भगवान श्री हरि विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर असुरों के राजा हिरण्यकश्यप का वध किया था। भगवान नरसिंह की कथा इस प्रकार है – हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार असुरों का राजा हिरण्यकश्यप अपने आप को भगवान से भी अधिक शक्तिशाली और पराक्रमी मानता था। हिरण्यकश्यप को एक वरदान प्राप्त था कि – देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी, न-दिन में, न-रात में, न-धरती पर, न-आकाश में, न-अस्त्र से, न-शस्त्र से – किसी से भी उसकी मृत्यु संभव ना हो। हिरण्यकश्यप के राज्य में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसे दंड दिया जाता था। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र का नाम था प्रह्लाद। प्रह्लाद, विष्णु भक्त था और इसी कारण हिरण्यकश्यप अपने पुत्र पर क्रोधित हुआ करता था और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास करता था, लेकिन अनेकों बार समझाने पर जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने उसे मृत्युदंड दे दिया। लेकिन, हर बार भगवान श्री हरि विष्णु के आशीर्वाद और चमत्कार से प्रहलाद बच जाता था। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, इसलिए होलिका प्रहलाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब, भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद तो बच गया पर वरदान के बावजूद भी होलिका जल गई। इसके बाद हिरण्यकश्यप स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु ने भगवान नरसिंह का अवतार लिया और खंभे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।

5. वामन अवतार : (Vaman Avatar)

सतयुग में प्रहलाद के पौत्र असुर राज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार जमा लिया। सभी देवता इस विपत्ति को देखकर भयभीत हो गए और इससे बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए और भगवान विष्णु से निवेदन करने लगे। तब, भगवान विष्णु ने कहा कि “मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से जन्म लेकर तुम्हें स्वर्ग का राज पाट दिलाऊंगा।” और फिर कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।

एक बार की बात है जब असुर राज बलि ने यज्ञ का आयोजन किया था तब भगवान वामन बलि की यज्ञ में आये और राजा बलि से तीन पग धरती को दान में माँगा। राजा बलि के गुरुदेव शुक्राचार्य भगवान विष्णु की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को भूमि दान देने से मना कर दिया। लेकिन, बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प लिया। तब भगवान वामन ने विशालकाय रूप धारण कर, एक पग में पृथ्वी तथा दूसरे पग में स्वर्गलोक नाप लिया। जब भगवान वामन के पास तीसरा पग रखने के लिए कोई भी स्थान नहीं बचा तो राजा बलि ने भगवान वामन को अपने मस्तक पर पग रखने को कहा। बलि के मस्तक पर पग रखने से वो सुतल लोक पहुंच गए। राजा बलि की दानशील स्वभाव देखकर भगवान ने उसे सुतल लोक का स्वामी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्गलोक लौटा दिया।

6. श्री राम अवतार : (Shree Ram Avatar)

त्रेतायुग में असुरराज रावण का आतंक चारों ओर फैला था। रावण के आतंक से मनुष्य, देवता सभी डरते थे। रावण के आतंक को समाप्त करने के लिए तथा उसका वध करने के लिए ही भगवान श्री हरि विष्णु ने राजा दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र रूप के रूप में जन्म लिया। श्री राम अवतार में भगवान विष्णु ने अनेकों राक्षसों का वध किया और अपनी मर्यादा का पालन करते हुए जीवन यापन किया। अपने पिता राजा दशरथ की आज्ञा पर प्रभु श्री राम वनवास चले गए। वनवास के समय दानव राज रावण प्रभु श्री राम की पत्नी देवी सीता का हरण कर ले गया। देवी सीता की तलाश में भगवान श्री राम लंका गए, और वहां भगवान श्री राम और रावण के बीच युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया और इस प्रकार भगवान विष्णु ने श्री राम अवतार लेकर देवताओं को भय से मुक्त किया।

7. श्री कृष्ण अवतार : (Shree Krishna Avatar)

द्वापर युग में प्रभु श्री हरि विष्णु ने श्री कृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों और दुराचारियों का नाश किया। प्रभु श्री कृष्ण का जन्म वासुदेव और माता देवकी के पुत्र के रूप में कारागार में हुआ था। इस अवतार में प्रभु श्री कृष्ण ने धर्म की स्थापना के लिए अनेकों चमत्कार किए तथा दुष्टों का सर्वनाश किया। दुराचारी कंस का वध भी भगवान श्रीकृष्ण के हाथों ही हुआ। इसके पश्चात, महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनकर पूरी दुनिया को गीता का ज्ञान दिया। इस युद्ध के पश्चात, श्री कृष्ण ने पांडु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर धर्म की नींव रखी। भगवान विष्णु का श्री कृष्ण अवतार सभी अवतारों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

8. परशुराम अवतार : (Parshuram Avatar)

हिन्दू धर्म शास्त्रों और ग्रंथों के अनुसार,  भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक था परशुराम का अवतार। भगवान परशुराम के जन्म के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित हैं। हरिवंश पुराण के अनुसार उन्हीं में से एक कथा इस प्रकार है-

प्राचीन काल में महिष्मती नगरी पर हैहयवंशी क्षत्रिय कार्तवीर्य सहस्त्रबाहु का आधिपत्य था। सहस्त्रबाहु बहुत ही अभिमानी और अत्याचारी था। एक बार की बात है जब अग्निदेव ने सहस्त्रबाहु से भोजन करवाने का निवेदन किया। लेकिन, सहस्त्रबाहु ने घमंड में आकर कह दिया कि आप जहां पर भी चाहें, भोजन प्राप्त कर सकते हैं, सभी ओर मेरा ही राज है। यह सुनकर अग्निदेव ने जंगलों को जलाना आरम्भ कर दिया। अग्नि देव ने एक ऐसे वन को जला दिया जहाँ पर ऋषि आपव तपस्या कर रहे थे।  यह देख ऋषि आपव क्रोधित हो उठे और ऋषि आपव ने सहस्त्रबाहु को श्राप दे दिया कि – परशुराम के रूप में जन्म लेकर भगवान विष्णु सहस्त्रबाहु का वध करेंगे और साथ में समस्त क्षत्रियों का भी सर्वनाश करेंगे और इसी कारण भगवान विष्णु ने भार्गव कुल में महर्षि जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्म लिया।

9. बुद्ध अवतार : (Buddha Avatar)

धर्म ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के एक अवतार गौतम बुद्ध भी थे। भगवान बुद्ध देव का जन्म बिहार के गया के समीप कीकट में हुआ था और उनके पिता का नाम अजन बताया था। एक कथा के अनुसार,

एक बार की बात है जब दैत्यों की शक्ति और आतंक बहुत बढ़ गई थी। देवता गण भी दानवों के भय से कांपने लगे थे। दैत्यों ने राज्य की कामना से देवराज इन्द्र से पूछा कि क्या करें हम कि हमारा साम्राज्य स्थिर रहे। तब, देवराज इन्द्र ने शुद्ध भाव से बताया कि इसके लिए यज्ञ एवं वेदविहित आचरण अपनाना आवश्यक है। फिर दैत्य वैदिक आचरण तथा यज्ञ करने लगे, जिससे उनकी शक्ति और भी ज्यादा बढ़ने लगी। तब समस्त देवता गण भगवान विष्णु के पास गए और तब भगवान विष्णु ने देवताओं और मनुष्यों के हित के लिए बुद्ध का रूप धारण किया। भगवान बुद्ध के हाथ में मार्जनी थी और वो मार्ग को बुहारते हुए चलते थे। इस तरह भगवान बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे और उपदेश दिए कि यज्ञ करना पाप है। यज्ञ के कारण जीव हिंसा और हत्या होती है। भगवान बुद्ध के उपदेश से दैत्य गण प्रभावित हुए और उन्होंने यज्ञ करना छोड़ दिया। जिसके कारण धीरे-धीरे उनकी शक्ति कम होती गई और इसके फलस्वरूप देवताओं ने दैत्यों पर हमला कर अपना राज्य फिर से प्राप्त कर लिया।

10. कल्कि अवतार :

(Kalki Avatar)हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्री हरि विष्णु कलयुग में कल्कि अवतार के रूप में जन्म लेंगे। कलयुग तथा सतयुग के संधिकाल अर्थात मध्य में कल्कि अवतार होगा। कल्कि अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों और मान्यताओं के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक गाँव में विष्णुयश नाम के एक तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान विष्णु, कल्कि के रूप में जन्म लेंगे। देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर कल्कि संसार से सभी पापियों का विनाश कर वापस धर्म की स्थापना करेंगे, और तभी सतयुग का आरम्भ होगा।

Frequently Asked Questions

1. भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार कौन से युग में लिया था?

भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार सतयुग में लिया था।

2. भगवान विष्णु ने श्री राम अवतार कौन से युग में लिया था?

भगवान विष्णु ने श्री राम अवतार त्रेता युग में लिया था।

3. भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण अवतार कौन से युग में लिया था?

भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण अवतार द्वापर युग में लिया था।

4. भगवान विष्णु ने कल्कि अवतार कौन से युग में लिया था?

कलियुग तथा सतयुग के संधिकाल अर्थात मध्य में भगवान कल्कि का अवतार होगा।