केमद्रुम योग क्या है: किन परिस्थितियों में बन जाता है राज योग
यदि आपकी जन्म कुण्डली में चन्द्रमा उस स्थान पर है जहाँ दोनों ओर कोई ग्रह नहीं है, तो इस गठन को केमद्रुम योग कहा जाता है। इस योग के साथ यदि चन्द्रमा दूसरे या बारहवें भाव में स्थित हो तो यह बहुत ही अशुभ माना जाता है। केमद्रुम योग के बारे में कहा जाता है कि यह योग जिस जातक की कुंडली में निर्मित होता है उसे आजीवन संघर्ष और अभाव में ही जीवन गुजारना पड़ता है। इसीलिए ज्योतिष के अनेक विद्वान इसे ‘दुर्भाग्य का प्रतीक’ कहकर परिभाषित करते हैं। लेकिन यह अवधारणा पूर्णतः सत्य नहीं है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में कतिपय ऐसे योगों का उल्लेख देखने को मिलता है जिनके प्रभाव से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में बदल जाता है।
ऐसा पाया गया है कि कुंडली में गजकेसरी, पंचमहापुरुष जैसे शुभ योगों की अनुपस्थिति होने पर भी केमद्रुम योग से युक्त कुंडली के जातक कार्यक्षेत्र में सफलता के साथ-साथ यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त करते हैं।
यदि हम इसके सकारात्मक पक्ष का गंभीरतापूर्वक विवेचन करें तो हम पाएंगे कि कुछ विशेष योगों की उपस्थिति से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में परिवर्तित हो जाता है। शास्त्रों में कतिपय ऐसे योगों का उल्लेख भी मिलता है जिनके प्रभाव से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में बदल जाता है।
केमद्रुम योग को भंग करने वाले प्रमुख योग निम्नलिखित हैं –
- चंद्रमा पर बुध या गुरु की पूर्ण दृष्टि हो अथवा लग्न में बुध या गुरु की स्थिति या दृष्टि हो।
- चंद्रमा और गुरु के मध्य भाव-परिवर्तन का संबंध बन रहा हो।
- चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी चंद्रमा पर दृष्टि डाल रहा हो।
- चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी लग्न में स्थित हो।
- चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी गुरु से दृष्ट हो।
- चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी चंद्रमा से भाव परिवर्तन का संबंध बना रहा हो।
- चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश या नवमेश के साथ युति या दृष्टि संबंध बना रहा हो।
- लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश और नवमेश में से कम से कम किन्ही दो भावेशों का आपस में युति या दृष्टि संबंध बन रहा हो।
- लग्नेश बुध या गुरु से दृष्ट होकर शुभ स्थिति में हो।
- चंद्रमा केंद्र में स्वराशिस्थ या उच्च राशिस्थ होकर शुभ स्थिति में हो
केमद्रुम योग से बचने के कुछ अन्य उपाय
- पूर्णिमा के दिन जातक को 4 वर्ष तक उपवास रखना चाहिए।
- जातक को सोमवार से व्रत प्रारंभ करना चाहिए।
- भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें।
- सोमवार के दिन शिव मंदिर जाएं और शिवलिंग पर दूध चढ़ाएं।
- शिव मंत्र का जाप करें।
- व्यक्ति को चंद्रमा से संबंधित चीजों का दान करना चाहिए। जैसे दूध, दही, आइसक्रीम, चावल, पानी आदि।
- जातक को अपने साथ चांदी का चौकोर टुकड़ा रखना चाहिए।
- जातक नियमित रूप से श्री सूक्त का पाठ कर सकता है।
- घर में पूजा स्थल पर गंगाजल जरूर रखें।
- जातक को दक्षिणावर्ती शंख घर में रखना चाहिए।
- मां लक्ष्मी को एक खोल में जल चढ़ाएं।
- चांदी के श्री यंत्र को मोती के साथ धारण कर सकते हैं।
- रुद्राक्ष की माला धारण कर सकते हैं।